________________
प्रकृति बंध
११०
७. प्रकृतिबन्ध विषयक प्ररूपणाएँ
५. नाम कर्म प्ररूपणा सम्बन्धी संकेत
समूहीकरण
सकेत
कुल बन्ध प्रकृति प्रकृति
प्रकृतियोंका विवरण
ध/8
धू व बन्धी प्रतिपक्षी युगल
यु०
३
समूहों में से अन्यतम
समूह/५
त्रस/२
वस सहित ही बंधने
योग्य समूह त्रसमें बंधने योग्य त्रस स्थावर दोनोंको विशेष प्रकृतियाँ
तैजस, कार्माण, अगुरुलघु, उपघात, निर्माण, वर्ण, रस, गन्ध, स्पर्श त्रस-स्थावर, बादर-सूक्ष्म, पर्याप्त-अपर्याप्त, प्रत्येक-साधारण, स्थिरअस्थिर, शुभ-अशुभ, सुभग-दुर्भग, आदेय-अनादेय, यश-अयश, (इन । युगलोंको १८ में से प्रतियुगल अन्यतम अन्ध होनेसे-६) चार गति, पाँच जाति, तीन शरीर, ६ संस्थान, चार आनुपूर्वी ( अन्यतम बन्ध होनेसे ५) छ सहनन, ३ अंगोपांग (सकी बन्धने योग्य २) (संहनन औदारिकके साथ बँधते है। दुस्वर-सुपर, प्रशस्त-अप्रशस्त विहायोगति, ( इनमें से २)। उश्वास, परघात। तीर्थकर व आहारक द्वय ( देव नारकके मनुष्य सहित व मनुष्यके देवगति सहित ही बंधे)। आतप (पृथ्वी काय बादर पर्याप्त सहित ही बंधे) उद्योत (पृथ्वी, अप, प्रत्येक वनस्पति, बादर पर्याप्त व त्रस सहित ही
त्रस यु/२ उ, परघात/२ ती. आ./३
पृ.बा/१ उद्योत/१
१०. नाम कर्म बन्धके पाठ स्थानोंका विवरण (पं.सं /प्रा./-४/२५६-३०४/५/५३-६६); (गो, क./५३० १६८८ );(पं स /स./४/१३६-१८८); (पं. सं./सं/५/६२-१११); नोट-ध्र व/ आदि संकेत-दे० सारणी नं०६
प्रत्येक भगमें प्रकृतियो व स्वामियोका विवरण भंग नं. प्रकृतियाँ भंग | स्वामी नं०
प्रकृतियोंका विवरण
स्वामियोंका विवरण
Ho स्थानमें
यश-कीर्ति
4/७,६,१० गुणस्थान धु-JE, स्थावर, अपर्याप्त, सूक्ष्म, साधारण, । सूक्ष्म अप०(पृथिवी, अप, तेज, वायु)+ अस्थिर, अशुभ, दुर्भग, अनादेय, अयश, साधारण बनस्पति के बन्धक तिर्य० द्वि०, एकेन्द्रिय, औ० शरीर हुडक =२३ / उपरोक्त २३-सूक्ष्म+ बादर
-२३ बा० अप पृ०, तेज, अप०, वायु)+गाधा.
बन०के बन्धक -सूक्ष्म, साधारण+बादर, प्रत्येक =२३ । बा० अप० प्रत्येक वनस्पतिके बन्धक -१ ध्रु./8, स्थावर, पर्याप्त, सूक्ष्म, साधारण, सू०प० प्र०(पृ०,तेज,अप,वायु,)+ साधा. स्थिर, शुभ या अस्थिर अशुभ, दुभंग, बन के बन्धक अनादेय, अयश., तिर्य द्वि०, एकेन्द्रिय, औ० शरीर, हुंडक (स्थिर, अस्थिर, शुभ व अशुभ, इन दो युगलोंकी अन्यतम दो से चार भंग) उपरोक्त २५-सूक्ष्म+बादर उपरोक्तवत् ४ भग। भा०प० साधारण वनस्पतिके बन्धक १ |
-२५
उपरोक्त (स्थिर, शुभ, यश इन तीन युगलोंसे
भंग -२५
आतप रहिताबा०प०( पृ० अप, तेज वायु )
जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org