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प्रकृति बंध
७. प्रकृति बन्ध विषयक प्ररूपणाएँ
प्रत्येक भंगमें प्रकृतियों व स्वामियों का विवरण
स्थान नं० में
| प्रकृति
कुल भग | स्वामी
Fol
भंग नं०
प्रकृतियो व भंगोंका विवरण
स्वामियों का विवरण
६२८१- ६२८१-१२४८०
| ध/स, बादर, पर्याप्त, प्रत्येक, सुभग, आदेय, | देवगति व तीर्थ करके बन्धक
स्थिर, शुभ, यश इन ३ युगलोंमें अन्यतम ३ के ८ भंग, देव द्वय, वैक्रि० द्वय, पंचेन्द्रिय, समचतुरस्त्र, सुस्वर, प्रशस्त विहायो०, उच्छ्वास, परघात, तीर्थकर (३२०० भंग) (८ भग) =२६
६२८८
|७| ३० | १२८६
१-३२
(नं ६/1 की २६+ उद्योत) (उसीवत् भंग-३२)
| प० द्वी, त्री; चतुः, असंज्ञी पं.(उद्योतयुत)-४
1 ३३-३२० ध्र.हि त्रस, बादर, पर्याप्त, प्रत्येक, स्थिर, शुभ, मनुष्य व तीर्थकरका बन्धक
सुभग, यश, आदेश, अनादेयमें अन्यतम १ के २ भंग, मनुष्य द्वय, औ०द्वय, पंचेन्द्रिय, ६ सस्थानों में अन्यतम १ के ६ भंग, ६ सहननोमें अन्यतम १ केभग, स्वर द्वय, विहायोगति द्वय इन दो युगलोमें अन्यतम २ से चार भंग, उच्छ्वास,
परघात-(२x६x६x४-२८८ भंग)+तीर्थ.-३० ३२१-३३८ नं ६/1v की २६-तीर्थकर + आहार० द्वि० | देव व आहारक का बन्धक
| ( उसीवत भग-८) Helv की २६+ आहार० द्वि०, (उसी वद देव गति,आहारक व तीर्थकर काबन्धक-१ भंग ८)
११. नाम कर्म बन्ध स्थान ओध प्ररूपणा-(प. सं./प्रा./५/४०३-४१७) (प. सं सं./५१४१६-४२८)
गुण
गुण स्थान
गुण स्थान
बन्ध स्थान
बन्ध स्थान
स्थान
बन्ध स्थान
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| २३/1-111, २५/1-V1, २६/1-1ii,
२८/1-11, २६/1-111, ३०/२८/1, २६/1-111, ३०/२८/1, २६/17 २८/1, २६/1v, ३०/11
२८/1, २६/1v २८/1, २६/v २८/1, २६/1v, ३०/111, ३१/1 २८/1, २६/1v, ३०/11, ३१/३, १/1
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नोट-इनकी विशेषता यथायोग्य सत्त्व तथा व्युच्छित्ति वाला सारणियोसेजानना आदेशकी अपेक्षा भी यथायोग्य लगा लेना।
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१२. जीव समासों में नामकर्म बन्ध स्थान प्ररूपणा-(गो. क /७०४-७११/८७८-८८१)
कुल
जीव समास
कुल स्थान
प्रति स्थान प्रकृतियाँ
स०
जीव समास
प्रति स्थान प्रकृतियाँ
स्थान
२३,२५,२६,२६,३०
५
२३,२५,२६,२६.३०
अपर्याप्त सातौ जीव समास पर्याप्त एकेन्द्रिय सुक्ष्म
10730
एकेन्द्रिय बादर विकले न्द्रिय असंज्ञी पंचेन्द्रिय सज्ञी पंचेन्द्रिय
२३,२५,२६,२८,२६,३० २३,२५,२६,२८,२६,३०,३१,१
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जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश
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