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________________ प्रकृति बंध ९९ 9. सातिशय मिथ्यादृष्टिमें प्रकृतियोंका चतुःबन्ध (ध. ६/२००-२१३ ) संकेत–उत, उत्कृष्ट; अनु. - अनुत्कृष्ट; द्विस्थान - निम्ब व काजीर रूप अनुभाग, चतुःस्थान- गुड, खाण्ड, शर्करा, अमृतरूप अनुभाग; अन्त को, को, अन्तः कोटाकोटी सागर । नं. प्रकृति १] [दानावरणीय | २ दर्शनावरणीय पाँचौ १- ३ स्त्यान० त्रिक २४-६ शेष ६ १ वेदनीय ९ साता २ असाता ४ मोहनीय दर्शन मोह १) सम्यक्त्व प्रकृति २ मिथ्यात्व ३ सम्यग्मिथ्यात्व चारित्र मोह - १ अनन्तानु० चतु० २ अप्रत्या० चतु० ३ प्रत्या० चतु० ४ संज्व० चतु० १७ स्त्री वेद १८ पुरुष वेद १६ नपुंसक वेद २०- हास्य, रति २१ २२- अरति शोक " २३ २४ - भय, जुगुप्सा |२५| ५ आयु | चारों ६ नाम १ नरक गति प्रकृति स्थिति 39 D Jain Education International नहीं नहीं है shy == : we and नहीं नहीं नहीं नहीं 19 २ १-४ इन्द्रिय जाति नहीं पंचेन्द्रिय जाति अंत को को द्वि स्थान 2 नहीं כ अंत को को नहीं बन्ध 39 अनुभाग नहीं ६७. 32 'चतु. स्थान नहीं देवगति तिच मनुष्य धते है, देवनारकी नहीं। तिर्यंच । अंत को को द्वि स्थान उत वा अनु. अनुत्कृष्ट " 39 नहीं नहीं अंत को को द्विस्थान नहीं द्वि स्थान उत वा अनु नहीं नहीं " नहीं अंत को को द्वि स्थान नहीं नहीं अंत को को द्वि स्थान नहीं " तिच गति अंत को को द्वि स्थान सप्तम पृथिवीके नारकीको ही बँधती है अन्यको नहीं । मनुष्य गति अंत को को] चतुस्थान | है देवनारकी हो बाँधते है सियंच नहीं। है | अंत को को द्विस्थान प्रदेश अनुत्कृष्ट उत वा अनु. अनुत्कृष्ट नहीं नही अंत को को. चतु स्थान 35 नहीं 39 नहीं अनुत्कृष्ट नह अनुत्कृष्ट नहीं अनुत्कृष्ट नहीं ט अनुत्कृष्ट नं. ਸਾਰਿ ३ औदारिक शरीर देव नारकीका 4. ति मनु को बा तेजस पशरीर | कार्याण अनुत्कृष्ट ४ ५ ६ अगोपांग निर्माण बन्धन संघात १४ समचतुरस्र, सं. शेष पाँच संस्थान ६ संहनन (देव न नारकी हीको) वज्र ऋषभ नाराच वज्र नाराच शेष चार १०- स्पर्शादि चतु प्रश १३ नरकानुपूर्वी (सप्त पृथिवी में ही ) तिर्यगानुपूर्वी (देव व नारकीको ही मनुष्यानुपूर्वी तिर्म मनुष्यको ही देवानुपूर्वी १५ अगुरुलघु १६ उपघात ११७ अप्र. परधात १८ आतप १६ (सप्त पृथिवी में ही) उद्योत २० उच्छ् वास २१ विहायोगति ग्र 11 २२ प्रत्येक २३ साधारण २४ त्रस २५ स्थावर २६ सुभग सुस्वर २७ दुर्भग अनुत्कृष्ट २८ २६ दु. स्वर नहीं |३० शुभ ३१ अनुत्कृष्ट अशुभ अप्र. जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश For Private & Personal Use Only बन्ध स्थिति | अनुभाग प्रकृति हैं अंत को को. चतु स्थान 49 नहीं है " 99 34 91 -स्वस्व शरीरवत्--- है अंत को को. चतुःस्थान | अनुत्कृष्ट | 1 -स्व स्व शरीरवस -- 19 है अंत को को. चतुःस्थान उत वा अनु नहीं नहीं नहीं नहीं .. ७. प्रकृति बन्ध विषयक प्ररूपणाएँ *• = = नहीं pic/abc/ = the feathers the athew the answer they the athew othe नहीं नहीं नहीं है " नहीं अंत को को. नहीं है अंत है " नहीं नहीं 15 अंत को को. चतु. स्थान उत वा अनु. द्वि स्थान " 39 נו नहीं " नहीं चतुःस्थान अनुत्कृष्ट " अंत को को चतुस्थान द्वि स्थान 33 33 चतुःस्थान द्वि स्थान 33 22 नहीं अंत को को. 'चतुस्थान नहीं है अंत को को चतुःस्थान अत को.को. चतुःस्थान चतुःस्थान ཝཱ, ? प्रदेश अनुष्कृष्ट उत वा अनु नहीं 33 " उत वा अनु. अनुत्कृष्ट " नहीं 13 नहीं को को चतुस्थान नहीं चतु. स्थान नहीं नहीं है अंत को को. चतुःस्थान नहीं नहीं नहीं अंत को को पशु-स्थान नहीं 15 नहीं नहीं अनुष्कृष्ट उत वा अनु ע अनुत्कृष्ट " " 33 नहीं नहीं FETTERE नहीं अनुरपृष्ट अनुत्कृष्ट नहीं अनुत्कृष्ट नहीं नहीं अनुत्कृष्ट नहीं www.jainelibrary.org
SR No.016010
Book TitleJainendra Siddhanta kosha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2002
Total Pages639
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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