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प्रकृति बंध
नं.
प्रकृति
३२ मादर
३३ सूक्ष्म २४ पर्याश ३५ अपर्याप्त ३६ स्थिर
३७ अस्थिर ३८ आदेय
३६ अनादेय
४० यश कीर्ति
मार्गणा गुण
स्थान
१-२ पृथिनी पर्या ४-६,
37
७ पृथिवी पर्याप्त
१ पृथिवी अप०
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१
४
५. बन्धयुच्छित्ति आदेश प्ररूपणा
१
२-४
१
२
प्रकृति
स्थिति
. अंत को को
१
the the the other the amhas the ath
४
नहीं
है
नही
नहीं
नहीं
है
बन्ध
अनुभाग |
चतु स्थान
नहीं
चतु'स्थान
नहीं
नहीं
अंत को को. नहीं
अंत को. को, नहीं
अंत को.को. नहीं
चतु स्थान
नहीं
अंत को को. चतुस्थान
चतुःस्थान नहीं
व्युच्छित्तिकी प्रकृतियाँ
मिथ्या झुंड, नपुं०. सृपाटिका
ओघवत
ओघवत
-४ - २५
१०
१००
प्रदेश
अनुत्कृष्ट
नहीं
अनुत्कृष्ट
नहीं
अनुकृष्ट
नहीं
अनुत्कृष्ट
नहीं
अनुत्कृष्ट
मिथ्याव, हुडक, नपुं०, सृपाटिका + सासादनकी २५
तिर्यगायु -२८ ओधवत् ९० - मनुष्यायु = १
अबन्ध
१ गतिमार्गणा
१ नरक गति (म.नं. १४३०/४१ ) ( सामान्य बन्ध योग्य - १२० ( देव त्रिक, वैक्रि० द्वि, आहा० द्वि०, १-४ इन्द्रिय, स्थावर, आतप, सूक्ष्म, अप०, साधारण, नरकत्रिक )
/सू. ४३-१२/१३-११२) (गो.क./१०१-१००/१२)
१६- १२०-१६ - १०९: गुण स्थान -४
तीर्थंकर
मनुष्यायु
प्रकृति
| ४१ | अयश कीर्ति
४२ तीर्थंकर
प्रथम पृथिवी पर्यावत्
७ गोत्र -
बन्ध योग्य - १०१ -- तीर्थंकर = १००, गुणस्थान - 8 मिथ्या, हुंडक, नपुं०,
स्पाटिका-४
उच्च
(म पृ० में ही नीच
८ अन्तराय
पाँचों
- सामान्यवत्
तीर्थंकर
पुनः बन्ध
उच्च, मनु० दि०
बन्ध योग्य - १०१ - मनुष्यायु, तीर्थंकर ६६; गुणस्थान ४
*
मनुष्यायु तीर्थ
उच्च,
मनु०
दि०
तीर्थंकर
जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश
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१०१
24
७१
७०
१००
मियाल
"
सृपाटिका, तिर्यगायु -- ओघवत् २५ - तिर्यगायु - २४
ओघवत् १० - मनुष्यायु -
बन्धयोग्य - १०१ - मनुष्य व तिर्यगायु ( मिश्रयोगमें आयु नहीं बँधे ) - ६६; गुणस्थान = २;
(नरक अपर्याप्त सासादन न होय )
कुल
बन्ध अबन्ध योग्य
७. प्रकृति बन्ध विषयक प्ररूपणाएँ
प्रकृति | स्थिति
नहीं
६६
११
६७
७०
है
६६
७०
है अंश को. को. चतुस्थान
अनुभाग
नही नहीं
३
33
१
बन्ध
अंत को को द्वि स्थान
पुन. बन्ध
१
अनुत्कृष्ट
द्वि स्थान उत वा अनु
बन्ध
१००
§ m
७०
१००
Www
७१
२५
ब्युच्छि - त्ति
१०
६६
५
६१ २४
७०
७०
४
प्रदेश
नहीं
६
२८
35
अनुत्कृष्ट
शेष बन्ध योग्य
ह
७१
७०
६२
*
६१ ६७
७०
६१
७०
६२
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