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ज्योतिष लोक
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ज्योतिष लोक
द्वीप या प्रत्येक प्रत्येक सामरकानामनदीपादि में चारक्षेत्र मे
चन्द्र या सूर्य निर्देश कुल चद्र वसूर्य | कुलचारक्षेत्र । चन्द्रव सूर्य
विस्तार
प्रत्येक गली का विस्तार
मेरुसेया अनतर एक ही दीपदसागर चारक्षेत्रो वारक्षेत्र की दोनों की की जगत्तियों से गलियों गलियों में चारक्षेत्रोंका में परस्पर परस्पर । अन्तराल अन्तराल अन्तराल
यो. योजन योजन | योजन AB8t२० - ३५
जंबू द्वीप चन्द्र
(११६) ०(११६) (G१६)
दोनों सूर्य अभ्यन्तर वीथी से बाह्य वीथी पर्यंत ६० मुहूर्त में भ्रमण करते है ।२६७-२६८। द्वितीयादि वीथियों में चन्द्र व सूर्य दोनौका गति वेग क्रमसे बढ़ता चला जाता है, जिससे उन वीथियोंकी परिधि बढ़ जाने पर भी उनका अतिक्रमण काल वह का वह ही रहता है ।१८५-१६६ तथा २७०-२७१। ति.प./७/गा. सब नक्षत्रोंके गगनखण्ड ५४६०० (चन्द्रमासे आधे) हैं। इससे
दूने चन्द्रमाके गगनखण्ड हैं और वही नक्षत्रोंकी सीमाका विस्तार है १५०४-५०॥ सूर्यको अपेक्षा नक्षत्र ३० मुहूर्त में हरे मुहूर्त अधिक वेगवाला है ।५१३ अभिजित नक्षत्र सूर्य के साथ ४ अहोरात्र व छः मुहूर्त तथा चन्द्रमाके साथ ९ मुहूर्त काल तक गमन करता है ।।१६,५२११ शतभिषक, भरणी, आर्द्रा, स्वाति, आश्लेषा तथा ज्येष्ठा येः नक्षत्र सूर्यके साथ ६ अहोरात्र २१ मुहूर्त तथा चन्द्रमाके साथ १५ मुहूर्त तक गमन करते हैं ।५१७,५२२। तीनों उत्तरा, पुनर्वसु, रोहिणी और विशाखा ये छ: नक्षत्र सूर्य के साथ २० अहोरात्र ३ मुहूर्त तथा चन्द्रमाके साथ ४५ मुहूर्त तक गमन करते हैं ।५१८,५२४॥ शेष १५ नक्षत्र सूर्यके साथ १३ अहोरात्र १२ मुहूर्त और चन्द्रके साथ ३० मुहूर्त तक गमन करते है ।५१६,५२३॥ (त्रि.सा./३६८-४०४) ।
लवण समुद्र, धातकीखण्ड, कालोद समुद्र, और पुष्कराद्ध द्वीपमें स्थित चन्द्रों, सूर्यों व नक्षत्रोंका सर्व वर्णन जम्बूद्वीपके समान समझना ।५७०,५६३,५१८॥
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कालोद
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पुष्कराई | चन्द्र
अन्तर
पर-३५
- पेन्द्र की प्रत्या
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प्रत्येक गली में
यो
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मेरु
लवण समुद्र सूर्य चन्द्र की गतिविधिः- पलिम
नवणसागर में वीबिया
धातुकी रखण्ड
दक्षिण
लवणसाग
१
इसी प्रकार
७. चर ज्योतिष विमानोंकी गति विधि ति.प./७/गा. चन्द्र, सूर्य, नक्षत्र, ग्रह और तारा ये सब अपने अपने पथों
की प्रणिधियों ( परिधियों ) में पंक्तिरूपसे नभरखण्डोंमें संचार करते हैं ।६१०। चन्द्र व सूर्य बाहर निकलते हुए अर्थात् बाह्य मार्गकी ओर आते समय शीघ्र गतिबाले और अभ्यंतर मार्गकी ओर प्रवेश करते हुए मन्द गतिसे संयुक्त होते हैं। इसी लिए वे समान कालमें असमान परिधियोंका भ्रमण करते हैं ।१७६। चन्द्रसे सूर्य, सूर्य से ग्रह, ग्रहोंसे नक्षत्र और नक्षत्रोंसे भी तारा शीम गमन करनेवाले होते हैं 18 उन परिधियोंमेसे प्रत्येकके १०६८०० योजन प्रमाण गगनखण्ड करने चाहिए ।१८०,२६६। चन्द्र एक मुहूर्त में १७६८ गगनखण्डोंका अतिक्रमण करते हैं, इसलिए ६२३३ मुहूर्त में सम्पूर्ण गगनखण्डोंका अतिक्रमण कर लेते हैं । अर्थात् दोनों चन्द्रमा अभ्यन्तर वीथीसे बाह्य वीथी पर्यन्त इतने कालमें भ्रमण करता है ।१८१-१८३। इस प्रकार सूर्य एक मुहूर्त में १८३० गगनखण्डोंका अतिक्रमण करता है । इसलिए
RA
सूर्य की गति
सममानाअन्तर इतना कि उसका प्रवेश ईशानव नैऋत्य दिशा
सेहोता है।
जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश
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