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जीव
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सूचीपत्र
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जीव एक ब्रह्मका अंश नहीं है। पूर्वोक्त लक्षणोंके मतार्थ । जीवके भेद-प्रमेदादि जाननेका प्रयोजन ।
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३। जीवके गुण व धर्म
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१ । जीवके २१ सामान्य विशेष स्वभाव ।
जीवके सामान्य विशेष गुण । जीवके अन्य अनेकों गुण व धर्म । शानके अतिरिक्त सर्वगुण निर्विकल्प हैं -दे० गुण/२ जीवका कथंचित् कर्ता अकर्तापना -दे० चेतना/३ जीवमें सूक्ष्म, महान् आदि विरोधी धर्म। विरोधी धर्मोंकी सिद्धि व समन्वय -दे० अनेकान्त/५ जीवमें कथंचित् शुद्धत्व व अशुद्धत्व । जीव ऊर्ध्वगमन स्वभावी है -दे० गति/१ जीव क्रियावान् है।
--दे० द्रव्य/३ जीव कथंचित् सर्वव्यापी है। जीव कथंचित् देह प्रमाण है। सर्वव्यापीपनेका निषेध व देहप्रमाणत्वकी सिद्धि । जीव संकोच विस्तार स्वभावी है। संकोच विस्तार धर्मकी सिद्धि । जीवकी स्वभावव्यंजनपर्याय सिद्धत्व है
-दे० सिद्धत्व जीवमें अनन्तों धर्म हैं
-दे० गुण/३/१०
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भेद. लक्षण व निर्देश जीव सामान्यका लक्षण। जीवके पर्यायवाची नाम। जीवको अनेक नाम देनेकी विवक्षा। जीवके भेदप्रभेद ( संसारी, मुक्त आदि )। जीवोके जलचर थलचर आदि भेद । जीवोंके गर्भज आदि भेद । गर्भज व उपपादज जन्म निर्देश
-दे० जन्म सम्मूर्छिम जन्म व जीव निर्देश -दे० संमूर्छन जन्म, योनि व कुल आदि दे वह वह नाम मुक्त जीवका लक्षण व निर्देश
-दे० मोक्ष | संसारी, स, स्थावर व पृथिवी आदि
-दे० वह वह नाम संशी असंशी जीवके लक्षण व निर्देश -दे० संज्ञी षटकाय जीवके भेद निर्देश
-दे० काय/२ सूक्ष्म-बादर जीवके लक्षण व निर्देश -दे० सूक्ष्म एकेन्द्रियादि जीवोंके भेद निर्देश -दे० इन्द्रिय/४ प्रत्येक साधारण व निगोद जीव -दे० वनस्पति कार्यकारण जीवका लक्षण । पुण्यजीव व पापजीवके लक्षण । | नो जीवका लक्षण। षद्रव्योंमे जीव-अजीव विभाग -दे० द्रव्य/३ जीव अनन्त है।
-दे० द्रव्य/२ अनन्त जीवोंका लोकमें अवस्थान -दे० आकाश/३ जीवके द्रव्य भाव प्राणों सम्बन्धी -दे० प्राण/२ जीव अस्तिकाय है
__-दे०अस्तिकाय जीवका स्व व परके साथ उपकार्य उपकारक भाव
-दे० कारण/III/R | संसारी जीवका कथंचित् मूर्तत्व -दे० मूर्त।१०
जीव कर्मके परस्पर बन्ध सम्बन्धी -दे० बन्ध जीव व कर्ममें परस्पर कार्यकारण सम्बन्ध
-दे० कारण/III/३.५ *जीव व शरीरकी भिन्नता
-दे० कारक/२ जोवमें कथंचित् शुद्ध अशुद्धपना तथा सर्वगत व दहप्रमाणपना
-दे० जीव/३ * जीव विषयक सत्, संख्या, क्षेत्र, स्पर्शन, काल,
अन्तर, भाव व अल्पबहुत्व -दे० वह वह नाम
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जीवके प्रदेश जीव असंख्यात प्रदेशी है। जीवके प्रदेश कल्पना में युक्ति -दे० द्रव्य/४ संसारी जीवके आठ मध्यप्रदेश अचल है और
शेष चल व अचल दोनों प्रकारके। | शुद्धद्रव्यों व शुद्धजीवके प्रदेश अचल ही होते हैं। विग्रहगतिमें जीव प्रदेश चल ही होते हैं। जीवपदेशोंके चलितपनेका तात्पर्य परिस्पन्दन व भ्रमण आदि । जोवप्रदेशोंकी अनवस्थितिका कारण योग है। अचलप्रदेशोंमें भी कर्म अवश्य बॅधते हैं
-दे० योग/२ चलाचल प्रदेशों सम्बन्धी शंका समाधान । जीव प्रदेशोंके साथ कर्मप्रदेश भी तदनुसार चल अचल होते है। जीव प्रदेशोंमें खण्डित होने की सम्भावना
-दे० वेदनासमुद्धात/४
२ निर्देश विषयक शंकाएँ व मतार्थ आदि
मुक्तमें जीवत्व वाला लक्षण कैसे घटित हो। | औपचारिक होनेसे सिद्धोंमें जीवत्व नहीं है। ३ मार्गणास्थान आदि जीवके लक्षण नहीं हैं। ४. तो फिर जीवकी सिद्धि कैसे हो।
जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश
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