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जन्म
आराधना अल्पकालमें ही मोक्ष प्राप्त किया है। ध. ६/१,६०,११/ २४७/४ ) ।
ब्र.सं./टी./३६/१०६/६ अनुपमद्वितीयमनादिमिध्यादृशोऽपि भरतपुत्रास्त्रयो विशत्यधिकन शतपरिमाणास्ते च निव्यनिगोदवासिनः क्षपितकर्माणः इन्द्रगोपा' संजातास्तेषां च भूतानामुपरि भरतहस्तिना पादो दन्तस्ततर मुख्मापि न मानकुमारादयो भरतपुत्रा जातास्ते... तपो गृहीत्वा क्षणस्तोककालेन मोक्षं गताः । यह वृत्तान्त अनुपम और अद्वितीय है कि नित्य निगोदवासी अनादि मिध्यादृष्टि १२३ जीन कर्मोकी निर्जरा होनेसे इन्द्रगोप हुए सो उन सबके डेरपर भरतके हाथीने पैर रख दिया। इससे वे मरकर भरतके वर्द्ध मान कुमार आदि पुत्र हुए। वे तप ग्रहण करके थोड़े ही कालमें मोक्ष चले गये ।
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देखो
६/११ सूक्ष्मध्यपर्यात व निगोदको आदि लेकर सभी ३४ प्रकारके तियंच अनन्तर भयमे मनुष्यपर्याय प्राप्त करके मुक्त हो सकते है, पर शलाकापुरुष नहीं बन सकते ) ।
ध./१०/४,२,४,५६/२७६/४ मुहुमणिगोदेहितो अण्णस्थ अणुपज्जिय मणुस्से उष्पण्णस्स संजमा संजम समन्ताणं चेत्र गाहणपाओग्गसुबल भादो .... सुन गिदेहिको विग्गयरस सख्य हुए कालेय, संजमा जम ग्रहणाभावादो। सूक्ष्म निगोद जीवोंमेंसे अन्यत्र न उत्पन्न होकर मनुष्यों में उत्पन्न हुए जीन के संयमासंयम और सम्यकरण के ही ग्रहण की योग्यता पायी जाती है। सूक्ष्म निगोदोमेंसे निकले हुए जीवके सर्वलघु काल द्वारा संयमासंयमका ग्रहण नहीं पाया जाता ।
8. कौनसी कषायमै मरा हुआ जीव कहाँ जन्मता है ध./४/१.५,२५०/४४५/५ को मदो पिरयगदीए. उप्पादे दो तत् पणजीमा पठ कोधोदयस्तंभा गाणेण मदो मगुरुगदीए ण उपवेदव्यपणा पढमसमर मानोदय नियमोसा मायाए मदो तिरिक्खगदी ण उप्पादेदव्वो, तत्युप्पणाण पढमसमए मायोदय जियमोसा सोमेण मदो देवी उप्पादेदव्बो, तत्ध्यपानं पर्म पेय सोहाइओ होदिति आइरियपरंपरागदुदेसा कोष क्रोध कषाय के साथ मरा हुआ जीव नरक गतिमें नहीं (1) उत्पन्न कराना चाहिए, क्योंकि नरकोंमें उत्पन्न होनेवाले जीवोंके सर्व प्रथम क्रोध कषायका उदय पाया जाता है। मानकषायसे मरा हुआ जीव मनुष्यगति नहीं (1) उत्पन्न कराना चाहिए, क्योंकि मनुष्यो में उत्पन्न हुए के प्रथम समय में मानकषायके उदयका उपदेश देखा जाता है । माया कषाय से मरा हुआ जीव तिर्यग्गतिमे नही (1) उत्पन्न कराना चाहिए, क्योंकि तिर्यंचोंके उत्पन्न होनेके प्रथम समयमे माया कषाय के उदयका नियम देखा जाता है। लोभकषायसे मरा हुआ जीव देवगति में नहीं (1) उत्पन्न कराना चाहिए, क्योंकि उनमें उत्पन्न होनेवाले जीवों के सर्वप्रथम लोभ कषायका उदय होता है; ऐसा आचार्य परम्परागत उपदेश हैं ।
देखो जन्म / ६ / ११ ( सभी प्रकारके सूक्ष्म या बादर तिर्यच अनन्तर भव से मुक्ति के योग्य हैं ।)
देखो कषाय / २ / ६ उपरोक्त कषायोके उदयका नियम कषायप्राभृत सिद्धान्त के अनुसार है, भूतत्रलिके अनुसार नहीं | नोट - (उपरोक्त कथनमें विरोध प्रतीत होता है। सर्वत्र हो 'नहीं' शब्द नहीं होना चाहिए ऐसा लगता है। शेष विचारज्ञ स्वयं विचार ले । )
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६. गति अगति चूलिका
७. लेश्याओंमें जन्म सम्बन्धी सामान्य नियम गो.जी./भाषा/२०/३२६/१० जिस गति सम्बन्धी पूर्वी आयु मान्दा होद तिस ही गति बिषे जो मरण होते लेश्या हो ताके अनुसार उप है, जैसे मनुष्य पूर्वे देवासुका बन्ध भया, बहुरि मरण होते कृष्णादि अशुभ लेश्या होइ तौ भवनत्रिक विषै ही उपजे है, ऐसे ही अन्यत्र
जानना ।
दे. सल्लेखना / २/२ [जिस लेश्या सहित जीवका मरण होता है, उसी लेश्या सहित उसका जन्म होता है ।]
६. गति अगति चूलिका
१. ताहिकाओं में प्रयुक्त संकेत
प. पर्या
-
सू. -सूक्ष्म:
एके. एकेन्द्रिय;
चतु चतुरिन्द्रिय; जल-अप् वन. वनस्पति; मनु. मनुष्यः
प्र. = प्रत्येकः
वि. विकलेन्द्रि संख्य संख्यातवर्षायुष्क अर्थात् कर्मभूमिज । असंख्य असंख्यात वर्षायुष्क अर्थात भोगभूमिज । सी-सौधर्म; सौ. द्विसौधर्म, ईशान स्वर्ग
E
एम
गुण
स्थान
नरक गति
२. गुणस्थानसे गति सामान्य
अर्थात् - किस गुणस्थानसे मरकर किस गतिमें उत्पन्न हो सकता है। और किसमें नहीं।
संख्या
मिथ्या हाँ हाँ
सासा.. दृष्टि. १.x
दृष्टि. २. x
मिश्र अविरत प्रथम हाँ
अप. अपर्याप्त;
सं, संज्ञी;
तिर्वच गति
असंख्या
हॉ
x एके, पृ, अप हॉ प्र-वन, वि.
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X
नरक देशविरत x X
प्रमत्त X X
७-१२
ही. हीन्द्रियः
पं. पंचेन्द्रिय;
से. तेज;
5
=
सं. असं पंचें
मरणका अभाव
X
X X
पंच. हॉहॉ
मरणका अभाव
बा. = बादर
असं. असंज्ञी
श्री. प्रीन्द्रिय
मनु गति | देव गति सं- असं- सामा विशेष ख्या ख्या न्य
हॉ हॉ हॉ
हॉ
the the X X
पृ०-पृथिवी
वायुवायु ति. = तियंच
ग. गर्भज
X X
हाँ हाँ हाँ
X ho ho ho
x हॉ
विशेष देखो आगे जन्म ६/३.
देखो
गोजी/जी प्र १२७/३३८
मरण / ३ जन्म / ३
जन्म /५
नरकगतिकी विशेष प्ररूपणा के लिए देखो आगे ( जन्म / ६ / ४ )
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