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गुणस्थान
उत्कृष्ट
به مه سه
له
| अप
चरक
जन्म
६. गति अगति चूलिका ३. मनुष्य व तिथंच गतिसे चयकर देवगतिमें उत्पत्ति १. नरकगतिमें उत्पत्तिकी विशेष प्ररूपणा की विशेष प्ररूपणा
(म्.आ./११५३-११५१ ); (ति.प./२/२८४-२८६); ( रा.वा./३/६/७/ अर्थात-किस भूमिका वाला मनुष्य या तिथंच किस प्रकारके देवों
१६८/१५); ( ह.पु./४/३७३-३७७ ), (त्रि.सा/२०५ ) । में उत्पन्न होता है।
अर्थात्-किस प्रकारका मनुष्य या तिथंच किस नरकमें उपजै और
उत्कृष्ट कितनी बार उपज किस मू. आ/| ति. ५/ रा. वा। ह. पु./ त्रि./सा./ प्रकारका | ११६६- ८/५५६-४/२१/१० /१०३- ५४५
कौन जीव नरक
कौन जीव नरक FI जीव । ११७७ । १६४ । ५३७/५ । १०७ १४७
। बार १ संज्ञी- भ०,व्यन्तर भवनत्रिक सहस्रार
असं. पं. ति.
भुजंगादि सामान्य (३/२००) तक
सरीसृप.
सिंहादि सं.ति. - सहस्रारतक
(गोह, केटा
स्त्री असंख्या, भवनत्रिक - भवन त्रिक - भवन त्रिक
आदि) असंज्ञी भ०,व्यन्तर भवनत्रिक भ०,व्यन्तर ---
पक्षी (भेरुण्ड
मनुष्य व निर्ग्रन्थ उपरि. प्रैवे. उपरि. ग्रैवे. उपरि प्रैवे. उपरि, प्रैवे. प्रैवेयक आदि)
मत्स्य दूषित
धरित्री ऋद्धिक क्रूरउन्मार्गों
सनिदान मन्दकषायी
५. गतियों में प्रवेश व निर्गमन सम्बन्धी गुणस्थान मधुरभाषी भवनसे
ब्रह्मोत्तर
अर्थात्-किस गतिमें कौन गुणस्थान सहित प्रवेश सम्भव है, तथा ब्रह्मतक
किस विवक्षित गुणस्थान सहित प्रवेश करने वाला जीव वहाँसे किस परिबाजक ब्रह्मतक ब्रह्मतक ब्रह्मतक
गुणस्थान सहित निकल सकता है। (प.वं.६/१,६-६/सू.४४-७५/ संन्यासी
४३७-४४६); (रा.बा/३/६/७/१६/१८) । आजीवक | सहसार भवनसे सहसार सहस्रार अच्युत
तक अच्युत तक तक तक तापस भवनत्रिक भवनत्रिक | ज्योतिषी 'भवनत्रिक ||
निर्गमन गति 15 विशेष FE गुणस्था.
गुणस्था. २ ति संख्या जन्म/६/६
सहसारतक ति.असंख्य
भवनत्रिक
नरक गतिमनु. संख्य
ग्रैवेयक तक
म प्रथम ४४-४६१ ६१ मनुष्यणी ६१-६३ १ | १,२,४ मनु.असंख्य
भवनत्रिक ३ सं.पं.ति.
| सौधर्मसे - अच्युत संख्य० जन्म ६/६ अच्युत
देवगतिअसंख्य - देव - सौधर्म
सौधर्म- || तियंच गति
भवनत्रिक ६१-६३११,२,४ ति जन्म ६/६ ईशान द्विक |10 पं. ति. ५३-१५ १
देव देवियों ६४ | २ मनु-संख्यः " - सर्वार्थ सिद्रितक
पं.ति.प. ५६-५७ २
सौधर्मद्वि. __ - सौधर्म द्विकतक ६० पं.ति.अप ५७४
की देवियाँ अच्युत । सौधर्मसे । सौधर्म से । सौधर्मसे, अच्युत
१.ति. | (श्रावक)| तक अच्युत अच्युत अच्युत कल्प
६५-६४ १ | १,२,४ ६६) सौधर्मसे -८१ | १.२,४
| योनिमति । स्त्री अच्युततक - - -
वेयक ६-७१/२
७२-७४४ सामान्य उ.ग्रे.से. उz.से. उगै.से, उ.प्रै से उ.. से. अप. पृ.४४४१
सर्वार्थ सि. सर्वार्थसि. सर्वार्थ सि. सर्वार्थ सि. सर्वार्थ सि. दशपूर्वसौधर्मसे -
मनुष्यगति--
५) अनूदिशसे । ७५४ | ४ धर सर्वार्थ
६) मनुष्य सा.६६-६८ १ १,२,४ सर्वार्थ चतुर्दश लान्तवसे । -
मनु. प. ६९-७१२ १,२,४ पूर्वधर सर्वार्थ
मनु. अष. १७२-७४/४ | १,२,४
तक
। निर्गमन
गति
प्रवेशकालीन गुणस्थान
विशेष
प्रवेशकालीन गुणस्थान
ह कालीन
मनु.असंख्य
७ पुलाकवकुश || आदि
दे, साधु/५.
-
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