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________________ गुण न च वृ./११ दव्त्राणं सहभूदा सामण्णविसेसदो गुणा गेया । = सामान्य विशेष गुण द्रव्यो सह जानने चाहिए। सहभूत आप./६ सहभावा गुणाः । गुण द्रव्यके सहभाव होते हैं। = २. गुण द्रव्यके अन्वयी विशेष हैं स./ सि./५/३८/३०६/५ अन्वयिनो गुणा । गुण अन्वयी होते है । (१.)टी/१/४०/५4) (प्र.सा./ता वृ/१२/१२९/९१), (अध्यात्म कमल मार्त०४/२/६), (पं.अ./पू./१६८० प्र. सा /त.प्र./८० तत्रान्वयो द्रव्यं, अन्वयविशेषणं गुण. । = वहाँ अन्वय द्रव्य है । अन्वयका विशेषण गुण है। २४३ ४. द्रव्यके आश्रय गुण रहते हैं पर गुणके आश्रय अन्य गुण नहीं रहते येथे द०/१-२ / सूत्र १४ प्रन्याश्रयगुणवात् संयोगविभाष्यकारणमनपे इति गुणलक्षणम् ।१६। द्रव्यके सहारे रहनेवाला हो, जिसमें कोई अन्य गुण न हो, और वस्तुओं के संयोग व विभाग में कारण न हो। क्रिया व विभागकी अपेक्षा न रखता हो । यही गुणका लक्षण है 1 त. सू. /५/४१ द्रव्याश्रया निर्गुणा गुणाः ।४१। जो निरन्तर द्रव्यमे रहते है और अन्य गुण रहित है वे गुण है। ( अध्यात्म कमल मार्तण्ड / २ / ६ ) प्र. सा. वि.प./ १२० व्यमावि परानाश्रयत्वेन वर्तमाने चि गम्यते द्रव्यमेतैरिति लिङ्गानि गुणा । द्रव्यका आश्रय लेकर और परके आश्रयके बिना प्रकर्तमान होनेसे जिनके द्वारा द्रव्य निगित ( प्राप्त ) होता है, पहचाना जा सकता है, ऐसे लिंग गुण हैं । (प्र. सा./त.प्र./०७) ५. द्रव्यों में सामान्य गुणोंके नाम निर्देश न. च.वृ./११ - १६ सव्वेसि सामण्णा दह...|११| अत्थित्तं वत्युत्तं दव्वत्तं पय अगुरुगुतं । देसतं चेदपिदरं मुत्तममुखं विधाणेहि । १२ एक्क्का अट्टा सामण्णा हुंति सव्वदव्वाणं |१५| १ न. च. वृ./१६ को टिप्पणी - कौ द्वौ द्वौ गुणौ होनौ । जीवद्रव्येऽचेतनत्वं मूर्त त्वं च नास्ति, पुद्गलद्रव्ये चेतनत्वममूर्तत्वं च नास्ति । धर्माधर्माकाशकालद्रव्येषु चैतनत्वममूर्तत्वं च नास्ति । एवं द्विद्विगुणजिले अटो अष्टी सामान्यगुणा प्रत्येक भवति सर्वही सामान्य गुण दस है-अस्तित्व, वस्तुत्व द्रव्यत्व, प्रमेयत्व, अगुरुसत्य प्रवेशत्व चैतगल अचेतनत्य मूर्त अमूर्त। इनमें से प्रत्येक द्रव्यमें आठ आठ होते हैं। प्रश्न-वे दो दो गुण कौनसे कम है उत्तरजीव्य में अचेतन नर्त नहीं है। पुद्गल इन्यमें चेतनत्व व अमूर्तत्व नहीं हैं। धर्म, अधर्म, आकाश व काल द्रव्योमें चेतनत्व व मूर्तश्व नहीं हैं। इस प्रकार दो गुण वर्जित आठ-आठ सामान्य गुण प्रत्येक द्रव्यमे है । ( आ. १/२ ); (प्र. प / टी०/१/५८/ ५९/८ ) । प्र. खा./त.प्र १५ तत्रास्तित्वं नास्तित्वमेकमन्यदपत्यं पर्यासर्वगत्सर्वगतत्वं प्रदेश प्रदेशस्वं मूर्त मूर्त सकि यत्वमकिचेनमन तुम भोक्तृत् 1= C गुरु पादय सामान्यगुणा । ( तहाँ दो प्रकारके गुणों में ) अस्तित्व, नास्तित्व, एकत्व, अन्यत्व, द्रव्यत्व, पर्यायत्व, सर्वगतत्व, असर्वगतत्व, सप्रदेशत्व, अप्रदेशत्व, मूर्तख, अमूर्तत्व, सक्रियत्व, अक्रियत्व, चेतनत्व, अचेतनत्व, कर्तृत्व, अकतृत्व, भोक्तृत्व, अभोक्तृत्व, अगुरुलघुत्व इत्यादि सामान्य गुण हैं । (नोट -- इनमें कुछ आपेक्षिक धर्मोक भी नाम है-जैसे नास्तिल, एकल अभ्या कर्तृव अतु, भीमतृत्व अभ " Jain Education International ३. द्रव्य गुण सम्बन्ध ६. द्रव्यों में विशेष गुणक नाम निर्देश नच. वृ/ ११,१३, १५ सव्वेसि सामण्णा दह भूणिया मोलस बिसेसा | ११ | मासमहतिरूपरफास हिंदी गाणहेडं मुत्तम मुत्तं खलु चेदणिदरं च । १३। छवि जीवपोग्गलाणं इयराण वि सेस सितिमेवा - सर्व इन्होने विशेष गुण सोलह कहे हैं११० - ज्ञान, दर्शन, सुख, बीर्य, रूप, रस, गन्ध, स्पर्श, गतिहेतुत्व, स्थितिहेतुत्य वर्तन हेतु अजगाहनाहेतुल, मूर्तल, अमूर्त चेतन और अचेतनत्य ॥१३॥ तिनिमे से जीव गमे तो ह छह है और शेष चार द्रव्योमें तीन-तीन ( विशेष देखो उस उस द्रव्यका नाम ); ( आ. प / २ ) । . " प्र. सा/त.प्र / ६५ अवगाहनाहेतुत्य गतिनिमित्तता स्थितिकारणत्वं वर्तनायतनवं रूपादिमत्ता चेतनत्वमिष्याविशेषगुणा-अबमानातुल, गतिहेतु, स्थितिहेतुत्व, वर्तनात् रूपरसगन्धा दिमसां चेतनत्वमादि विशेष गुण है। ७. द्रव्योंमें साधारणासाधारण गुणोंके नामनिर्देश न. च. वृ/१६ चेदणमचेदणा तह मुत्तममुत्ता वि चरिमे जे भणिया । समण्णा सजाई तेवि मिसेसा बजाई १६। अन्तमे कहे गये जो चार सामान्य या विशेष गुण, अर्थात् मूर्तत्व, अमूर्तत्व, चेतनत्व अचेतनत्व ये स्वजातिकी अपेक्षा तो साधारण हैं और विजातिकी अपेक्षा विशेष हैं। यथा-( देखो निचला उद्धरण ) । प. प्र. /टी/१/५८/५८/८ जीवस्य तावदुच्यन्ते । ज्ञानसुखादय स्वजातौ साधारणा अपि विजात पुनरसाधारणा अमूर्त त्वं पुद्गलद्रव्यं प्रत्यसाधारणमाकाशादिकं प्रति साधारणम् । प्रदेशत्वं पुन कालद्रव्यं प्रति पुद्गलपरमाणुद्रव्यं च प्रत्यसाधारणं शेषद्रव्यं प्रति साधारणमिति संक्षेपव्याख्यान एवं शेषव्याणामपि यथासंभवं ज्ञातव्यमिति भावार्थ- पहले जीनकी अपेक्षा कहते हैं।... ज्ञानसुखादि गुण स्वजातिकी अपेक्षा साधारण होते हुए भी विजातिकी अपेक्षा असाधारण हैं । ( सर्व जीवों में सामान्यरूपसे पाये जानेके कारण जीव द्रव्यके प्रति साधारण है और शेष द्रव्योंमें न पाये जानेसे उनके प्रति असाधारण हैं ) । अमूर्तस्व गुण पुद्गलद्रव्य के प्रति असाधारण है। परन्तु आकाशादि अन्य द्रव्योंके प्रति साधारण है। प्रदेशत्व गुण काल द्रव्य व पुद्गल परमाणुके प्रति साधारण है परन्तु शेष द्रव्योंके प्रति असाधारण है । इस प्रकार जीवके गुणोंका संक्षेप व्याख्यान किया। इसी प्रकार अन्य द्रव्योंके गुणोंका भी यथासंभव जानना चाहिए । ८. योंमें अनुजीव और प्रतिभीवी गुणोंके नाम निर्देश ७४. अस्ति वैभाविक शक्तिस्योपजीविनी । ज्ञानानन्दी पितो धर्मो निस्यो द्रव्योपजीविनी देहेन्द्रियाद्यभावेऽपि नाभावस्तरिति 10 वैभाविकी शक्ति उस उस द्रव्यके अर्थात् जीव और पुद्गल के अपने अपने लिए उपजीविनी है |७४ | ज्ञान व आनन्द ये दोनों चेतन-धर्म नित्य द्रव्योपजोवी हैं, क्योंकि देह व इन्द्रियोंका अभाव हो जानेपर भी उसका अभाव नहीं हो जाता । ३७१। जैन सिद्धान्त प्रवेशिका / १०८ १०६. भावस्वरूप गुणोंको अनुजीवीगुण कहते है जैसे सम्यक् चारित्र मुख्य चेतना, स्पर्श, रस, गन्ध, वर्ण आदिक ॥१७८॥ वस्तुके अभावस्वरूप धर्मको प्रतिजीवी गुण कहते हैं। जैसे अन श्लो. वा./भाषा/१/४/५३/१५८/८ प्रागभाव प्रध्वंसाभाव, अत्यन्ताभाव और अन्योन्याभाव ये प्रतिजीवी गुणस्वरूप अभाव अंश माने जाते है । जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016009
Book TitleJainendra Siddhanta kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2002
Total Pages648
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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