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गणित
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11 गणित (प्रक्रियाएँ)
गणितको अपेक्षा प्रथम प्रस्तारमे ११ (स्थापा )x२५ (विकथाकी संख्या )}-८ (मूर्व कथासे आगे ८ कोठे या भंग शेष है) = १७ इसी प्रकार १७४२५ ( कषाय )-२४ -४०१ ४०१x६ (इन्द्रिय)-१
-२४०६ २४०६४५ (निद्रा) -१
= १२०२६ १२०२६४२ (प्रणय)-१
= २४०५७ वॉ अक्ष इसी प्रकार द्वितीय प्रस्तारमे भी जानना। केवल क्रम बदल देना । पहिले प्रणयको २ संख्यासे '१' को गुणा करना, फिर निद्राकी पाँच संख्यासे इत्यादि। तहाँ (२४२)-१-१; (१४५)-१-४; (४४६)-०-२४, (२४४२५)-२४-५७६ (५७६४२५)- ८=१४३६२
४. त्रैराशिक व संयोगी भंग गणित निर्देश
१. द्वि नि आदि संयोगी भंग प्राप्ति विधि
गो. क./जी. प्र/GEE/१७७ का भाषार्थ-जहाँ प्रत्येक द्विसयोगी त्रिसंयोगी इत्यादि भेद करने होंहि तहाँ विवक्षितका जो प्रमाण होहि तिस प्रमाणत लगाय एक एक घटता एक अंक पर्यत अनुक्रमत लिखने, सो ए तौभाज्य भए । अर तिनिके नीचे एक आदि एक एक बॅधता तिस प्रमाणका अक पर्यत अंक क्रमतें लिखने, सो ए भागहार भए । सो भाज्यनिकौ अंश कहिए भागहारनिको हार कहिए। क्रमतें पूर्व अशनिकरि अगले अंशको और पूर्व हारनिकरि अगले । हारको गुणि ( अर्थात पूर्वोक्त सर्व अंशोको परस्पर तथा हारोको परस्पर गुणा करनेसे उन उनका जो जो प्रमाण आवै) जो जो अंशनिका प्रमाण होइ ताकौ हार प्रमाणका भाग दीए जो जो प्रमाण आवै तितने तितने तहाँ भंग जानने। ___ उदाहरणार्थ-(षट् काय जीवोंकी हिसाके प्रकरणमें किसी जीवको एक कालमे किसी एक कायकी हिसा होती है, किसीको एक कालमे दो कायकी हिसा होती है। किसीको ३ की इत्यादि। वहाँ एक द्वि त्रि आदि सयोगो भंग निम्न प्रकार निकाले जा सकते है।
२. त्रैराशिक गणित विधि गो, जी./पूर्व परिचय/ ७०/१३ त्रैराशिकका जहाँ तहाँ प्रयोजन जान स्वरूप मात्र कहिए है। तहाँ तीन राशि हो है-प्रमाण, फल व इच्छा। तहाँ तिस विवक्षित प्रमाणकरि जो फल प्राप्त होइ सो प्रमाण राशि व फल राशि जाननी। बहुरि अपना इच्छित प्रमाण होइ सो इच्छाराशि जाननी।
तहाँ फलको इच्छाकरि गुणि प्रमाणका भाग दीए अपना इच्छित प्रमाणकरि जो फल ताका प्रमाण आवै है । इसका नाम लब्ध है। इहाँ प्रमाण और इच्छाकी एक जाति जाननी । बहुरि फल और लब्धकी एक जाति जाननी। __उदाहरणार्थ-पाँच रुपयाका सात मण अन्न आवै तौ सात रुपयाका केता अन्न आवै ऐसा त्रैराशिक कीया। इहाँ प्रमाण राशि ५ (रुपया) फल राशि ७ (मण) है, इच्छा राशि ७ (रुपया) है। तहाँ फलकरि इच्छाको गुणि प्रमाणका भाग दीए ४७-४६१४ . मन मात्र लब्धराशि भया।--अर्थात फल इच्छा
प्रमाण (ध/३/१.२,६/६६ तथा १,२.१४/१०० ). ५. श्रेणी व्यवहारगणित सामान्य १. श्रेणी व्यवहार परिचय
संकलन व्यकलन आदि पूर्वोक्त आठ बातोंका प्रयोग दो-चार राशियों तक सीमित न रखकर धारावाही रूपसे करना श्रणी व्यवहार गणित कहलाता है। अर्थात् समान वृद्धि या हानिको लिये अनेकों अंकों या राशियों की एक लम्बी अटूट धारा यो श्रेणीमे यह गणित काम आता है। यह दो प्रकारका है-संकलन व्यवहार श्रेणी ( Arathematical Progression) और गुणन व्यवहार श्रेणी (Geometrical Progression ) - तहाँ प्रथम विधिमें१,२,३,४... इस प्रकार एकवृद्धि क्रमवाली, या २,४,६,८ . इस प्रकार दोवृद्धि क्रमवाली, या इसी प्रकार ३,४,५ संख्यात, असंख्यात व अनन्त बृद्धि क्रमवाली धाराओंका ग्रहण किया जाता है, जो सर्वेधारा, समधारा आदि अनेकों भेदरूप हैं। द्वितीय विधिमे १,२,४,८...८ इस प्रकार दोगुणकारवाली, या १,३, ६,२७... इस प्रकार तीनगुणकारवाली, या इसी प्रकार ४,५,६, संख्यात, असंख्यात व अनन्त गुणकार वृद्धि क्रमवाली धाराओं का ग्रहण किया जाता है, जो कृतिधारा, घनधारा आदि अनेक भेदरूप है। इन सब धाराओका परिचय इस अधिकारमें दिया जायेगा।
समान-वृद्धि क्रमवाली ये धाराएँ कहींसे भी प्रारम्भ होकर तत्पश्चात नियमित समान-वृद्धि क्रमसे कहीं तक भी जा सकती हैं। उस धारा या श्रेणीके सर्व स्थानों में ग्रहण किये गये अंकों या राशियोंका संकलन या गुणनफल 'सर्वधन' कहलाता है। उसके सर्व स्थान 'गच्छ', तथा समान वृद्धि 'चय' कहलाता है। इन 'सर्वधन' आदि सैद्धान्तिक शब्दोंका भी परिचय इस अधिकारमें आगे दिया जायेगा।
दो-चार अंकों या राशियोंका संकलन या गुणन तो सामान्य विधिसे भी किया जाना सम्भव है, परन्तु पचास, सौ, संख्यात, असंख्यात व अनन्त राशियोवाली अटूट श्रेणियोंका संकलन आदि सामान्य विधिसे किया जाना सम्भव नहीं है। तिसके लिए जिन विशेष प्रक्रियाओंका प्रयोग किया जाता है, उनका परिचय भी इस अधिकारमें आगे दिया जानेवाला है।
२. सर्वधारा आदि श्रेणियोंका परिचय त्रि. सा./मू./५३-६१ धारेत्थ सव्वसमदिधणमाउगइदरवेकदो विदं । तस्स घणाघणमादी अंतं ठाणं च सव्वत्थ ॥५३॥ -- चौदह धाराएँ हैं
| भाज्य या अंश | ६ | ५ | ४ | ३ | २ | १ ||
| भाजक या हार | १ | २ | ३ | ४ | ३|६|| एक संयो० अंश नं.,१
हार नं.१ द्वि० संयोगी अंश नं १४२
हार नं १४२ त्रि० संयोगी-बंश नं १४२४३
६४५४४ हार नं १४२४३
१४२४३ चतु०संयोगी-अंश नं १४२४३४४
६x५४४४३ हार नं १४२४३४४ १४२४३४४ पंच संयोगी - अंश नं १४२४३४४४५६४५४४४३४२
हार नं १४२४३४४४५ १४२४३४४४५ छ. संयोगी- अंश नं. १४२४३xxx५४६६xxxx३४२४१
हार नं. १४२४३xxx५४६ । १४२४३xxx५४६ कुल भंग -६+१५+२०+१५+६+१
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जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश
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