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9
2
३
8
५
६
७
て
99
१२
गणित
२. द्वितीय प्रस्तार
स्त्री
अर्थ
22
| २३
2
28
२५
भोजन
३
राज
चोर
वैर
e
भाषा
१० गुणबन्ध
१०
群
परपारखण्ड
ما
देश
१८
परपरिवाद। १९ ୨୧ २० परजुगुप्सा २१ परपीडा 129
कलह 32
१३
परिग्रह
२३
अन. क्रोध। स्पर्शन स्त्यानगृध्दि स्नेह
मोह १८७५०
अने-मान
२५
अनं-माया
५०
प्रमान
२२५
प्र· माया
२५०
निष्ठुर प्रलोभ
२०५
१३ पर पैशुन्यस क्राध १३ १४ कन्दुर्प
३०० समान ३२५ देशकालानुचित समाया १५ १५
१४
३५० स लोभ
१६
२७५
ਮੰਡ 92 मूर्ख ६० १८ आत्म प्रशंसा
१७
अन लोभ
७५
अप्र. क्रोध 900
'अप्र· मान १२५
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अप्र· माया १५०
अप्र लभि
१७५ प्र क्रोध
300
हास्य
४००
रति ४२५
अरति
४५०
शोक
४७५
200 जुगुप्सा ५२५ विद
| कृष्याधारंभ पुरुष वेद
२४
५७५
संगीत वाद्य नपुंसक वेद ६००
२५
रसना ६२५
प्राण
१२५०
चक्षु १८७
श्रोत्र
२५००
मन ३१२५
निद्रा निद्रा ३७५०
प्रचलाप्रचना ७५०० निद्रा
99220
अचला
१५०००
४. नष्ट निकालने की विधि
गो. जी / जी. प्र. / ४४/८४/१० व भाषा / ४४ /११ / ६का भावार्थ :- जिस संख्याका नष्ट निकालना इष्ट है उसे भाज्य रूपसे ग्रहण करना और प्रमाद के विकथा आदि पाँच भेदोंकी अपनी-अपनी जो भेद संख्या हो सो भागहार रूपसे ग्रहण करना । यथा विकथाकी संख्या २५ है सो भागहार है। प्रणयकी संख्या २ है सो भागहार है ।
विवक्षित प्रस्तार के क्रमके अनुसार ही क्रम से उपरोक्त भागहारों को ग्रहण करके भाज्यको भाग देना । जैसे प्रथम प्रस्तारकी अपेक्ष प्रणयवाला भागाहार प्रथम है और विकथाबाला अन्तिम तथा द्वितीय प्रस्तारकी अपेक्षा विथावाला प्रथम है और प्रणयवाला अन्तिम
"
विक्षित रम्याको पहिले प्रथम भामहार या प्रभावको भेद संख्याभाग पुनः जो अन्ध आने उसे दूसरे भागाहारी भाग है, पुनः जो लब्ध आवे उसे तीसरे भाग्राहारसे भाग दें...इत्यादि क्रमसे बराबर अन्तिम प्रस्तार तक भाग देते जायें।
द्वितीयादि बार भाग कैसे पूर्व सन्धराशि में जोड़ दें। परन्तु यदि अवशेष बचा हो तो कुछ न जोड़े।
प्रत्येक स्थान में क्या अवशेष बचता है, इसपर से ही उस प्रस्तारका विवक्षित अक्ष जाना जाता है। यदि ० बचा हो तो उस प्रस्तारका
२२७
11 गणित ( क्रियाएँ)
अन्तिम भेद या अक्ष जानना और यदि कोई अंक शेष बचा हो तो
तेथनॉ अक्ष जानना । दे० पहिले यन्त्र ।
नं०
१
२
३
४
५
१. प्रथम प्रस्तारकी अपेक्षा
नं. 'प्रस्तार
उदाहरणार्थ ३५०००व आलाप बताओ ।
१
प्रणय
मित्रा
इन्द्रिय
प्रस्तार
विकथा
कषाय
इन्द्रिय
निद्रा
प्रणय
भाज्य
२
३
४
कषाय
५! विकथा अतः इष्ट आलाप मोही प्रचलायुक्त रसना इन्द्रियके वशीभूत प्रत्याख्यानक्रोधवाला कृष्याधारंभ करता हुआ ।
२. द्वितीय मस्तारको अपेक्षा
३५०००+ ०
joçooto
३५०० + ०
५८३+१ २५ २३+१ २५
भाज्य
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३५०००+ ०
१४०००
भागहार लब्ध शेष
१६+0
२
१+१
२+०
२५
२५
६
१७५००० मोह
३५०० 0 प्रचला
५८ ३ २
रसना
R3
ह
प्र. क्रोध
२४ कृष्याद्यारम्भ
भाजक लब्ध शेष अक्ष
० संगीतवाच
नपुं वेद
रसना
२
१४००
अक्ष
०
० प्रचला
१ ०
मोह अतः दृष्ट आला-संगीतवाद्यालाची नपुंसकमेदो, रसना के मला मोही ।
५६ 0
६
२
२
५. समुद्दिए निकालने की विधि
गो.जी./जी. प्र.४४/४/१५ व भाषा / ४४/१२/२ का भावार्थयत्री
अपेक्षा साधना हो तो इष्ट आलापके अक्षोके पृथक् पृथक् कोठो में दिये गये जो अंक उनको केवल जोड़ दीजिये। जो लब्ध आवे तेथ अक्ष जानना । - दे० पूर्वोक्त यन्त्र ।
गणितकी अपेक्षा साधना हो तो नष्ट प्राप्ति विधि से उलटी विधिका ग्रहण करना । भागहारके स्थानपर गुणकार विधिको अपनाना। प्रस्तार क्रम भी उलटा ग्रहण करना । अर्थात् प्रथम प्रस्तारकी अपेक्षा faकथा पहिले है और प्रणय अन्तमे । द्वितीय प्रस्तारकी अपेक्षा प्रणय पहिले है और विकथा अन्तमे ।
गुणकार विधि में पहिले '१' का अंक स्थापो। इसे प्रथम विवक्षित प्रस्तारकी भेद संख्या से गुणा करो विवक्षित असके आगे जितने कोठे या मंग शेष रहते है (दे०पूर्वोक्त यंत्र) तितने अंक लब्धमेसे घटावे । जो शेष रहे उसे पुन' द्वितीय विविक्षित प्रस्तारकी भेद संख्या से गुणा करे । लब्धमे से पुनः पूर्ववत् अक घटावें । इस प्रकार अन्तिम प्रस्तार तक बराबर गुणा करना व घटाना करते जायें । अन्त मे जो लग्ध हो सो हो इष्ट अक्षको संख्या जाननी ।
उदाहरणार्थ स्नेही निद्रा युक्त, मेनके वशीभूत अनन्तानुबन्धी क्रोधवाला मूर्ख कथालापीकी संख्या लानी हो तो -
यन्त्रकी अपेक्षा - प्रथम प्रस्तार के कोठो में दिये गये अक निम्न प्रकार है (देखो पूर्वोक्त यन्त्र ) - स्नेह - १; निद्रा - ६: मन - ५०; अनन्त कोष = ० मूर्खकथा - २४००० । सब अंकोको जोड़े - २४०५७
=
पाया ।
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