________________
गंध
२११
गजाधरलाल
__ * गन्ध नामकर्मके बन्ध, उदय, सत्त्व
--दे० वह वह नाम। गध-तिल्लोयपण्णतिके अनुसार नन्दीश्वर द्वीपका रक्षक व्यन्तर देव;
त्रि सा. व ह. पु. के अनुसार इक्षुवर समुद्रका रक्षक व्यन्तर देव-दे० व्यन्तर/४। गंधअष्टमी व्रत-३१२ दिन तक कुल २८८ उपवास तथा ६४पारणा। नमस्कार मन्त्रका त्रिकाल जाप्य । विधि--(तविधान संग्रह/
पृ. ११०)। गंधकूट-शिखरो पर्वतस्थ एक कूट व उसकी स्वामिनी देवी-दे०
लोक/१/४। गधकुटा-समवशरणके मध्य भगवान्के बैठनेका स्थान। -दे०
समवशरण। गंधमादन-१. विजयाको उत्तर श्रेणी में एक नगर-दे० विद्याधर । २. एक गजबन्त पर्वत दे० लोक/५/३,३. गन्धमादन पर्वतस्थ एक कूट व उसका रक्षक देव --दे० लोक/४/४,४. अन्धकवृष्णिके पुत्र हिमवान्का पुत्र नेमिनाथ भगवान का चचेरा भाई --दे० इतिहास१०/१० । ५. हालार और वरडों प्रान्तके बीचकी पर्वत श्रेणीको 'बरडों' कहते हैं । सम्भवतः इसी श्रेणीके किसी पर्वतका नाम गन्धमादन है। गंधमालो-गन्धमादन गजदन्तके गन्धमाली कूटका स्वामीदेव
-दे० लोक/७। गन्धमालिनी--१. अपर विदेहस्थ एक क्षेत्र --दे० लोक५/२२.
देवमाल वक्षारका एक कूट-दे० लोक/४,३. देवमाल वक्षारके गन्धमालिनी कूटका रक्षक देव-दे० लोक/४ ४. विदेह क्षेत्रस्थ एक विभंगा नदी-दे. लोकश, ५. गन्धमादन विजयाध पर्वतस्थ एक
कूट -दे० लोक/४। गंधर्व-१. कुन्थुनाथका शासक यक्ष-दे० तीर्थ कर/५/३,पा. पु/१७/ श्लोक-अर्जुनका मित्र व शिष्य था (६५-६७)। बनवासके समय सहायवनमें दुर्योधनको युद्ध में बाँध लिया था ( १०२-१०४ ) । गंधर्व-१. गंधर्वके वर्ण परिवार आदि-दे० व्यन्तर /१२।
(ई० पू० १८२-८२)।-दे० इतिहास ३/४ गंधवान्-हैरण्यवत क्षेत्रके मध्यमे कूटाकार एक वैताढ्य पर्वत -दे०
लोक/६/३। गंधसमृद्ध-विजयार्धकी दक्षिण श्रेणीका एक नगर--दे० विद्याधर । गंधहस्ती-१. आचार्य समन्तभद्र ( ई० श०२) कृत- तत्त्वार्थ सूत्र (मोक्षशास्त्र) पर संस्कृत भाषामें १६००० श्लोक प्रमाण विस्तृत
भाष्य है ।२सिद मेन गाणी का अपर नाम । (३० परिशिष्ट २॥ गंधा-अपर विदेहस्थ एक क्षेत्र अपर नाम वल्गु --दे० लोक/५/२। गंधिला-१.अपर विदेहस्थ एक क्षेत्र --दे० लोक/२/२ २. देवमाल
वक्षारका एक कूट व उसका रक्षक देव --दे० लोक/५/४। गंभीर-महोरग नामा जाति व्यन्तर देवका एक भेद- दे० महोरग। गंभीरमालिनी-अपरविदेहस्थ एक विभंगा नदी/अपरनाम गन्ध___ मालिनी --दे० लोकाशा गंभीरा-पूर्व आर्य खण्डस्थ एक नदी--दे० मनुष्य/४ । गगनचरी-विजया की दक्षिण श्रेणीका एक नगर-दे० विद्याधर । गगननंदन-विजयाध की उत्तर श्रेणीका एक नगर--दे० विद्याधर । गगनमंडल-विजयार्धकी उत्तर श्रेणीका एक नगर-दे० विद्याधर। गगनवल्लभ-विजयार्धकी उत्तर श्रेणीका एक नगर-दे०
विद्याधर। गच्छ-ध. १३/१,४,२६/६३/८ तिपुरिसओ गणो । तदुवरि गच्छो।
-तीन पुरुषोके समुदायको गण कहते है और इससे आगे गच्छ कहलाता है। गच्छपद- Number of Terms ,ज. प्र./प्र /१०६) विशेष-दे० गणित/11/५/३/४ । गज-१. सौधर्म स्वर्गका २६ वॉ पटल व इन्द्रक-दे० स्वर्ग ५/३ ।
२ चक्रवर्तीके चौदह रत्नोमेसे एक-दे० शलाकापुरुष/२ । ३. क्षेत्र
का प्रमाण विशेष/अपरनाम रिक्कू या किष्कु -दे० गणित/1/१/३। गजकुमार-(ह. पु./सर्ग/श्लोक-वसुदेवका पुत्र तथा कृष्णका छोटा भाई था (६०/१२६)। एक ब्राह्मणकी कन्यासे सम्बन्ध जुडा ही था कि मध्यमे ही दीक्षा धारण कर ली (६१/४)। तब इनके ससुरने इनके सरपर क्रोधसे प्रेरित होकर आग जला दी। उस उपसर्गको जोत मोक्षको प्राप्त किया ( ६१/५-७)। गजदंत-१. विदेह क्षेत्रस्थ सुमेरु पर्वतकी चारो विदिशाओमे सौमनस, विद्य प्रभ, गन्धमादन, माल्यवान नामक चार गजदन्ताकार पर्वत है। दो पर्वत सुमेरुसे निकलकर निषध पर्वत तक लम्बायमान स्थित है। और दो पर्वत सुमेरुसे निकल कर नील पर्वत पर्यन्त लम्बायमान स्थित है। विशेष-दे० लोक/३/११ । २. गजदन्तका नकशा -दे०लोक/८ । गजपुर-भरत क्षेत्रका एक नगर-दे० मनुष्य/४ । गजवती- भरतक्षेत्रके वरुण पर्वतस्थ एक नदी-दे० मनुष्य/४। गजाधरलाल- आगरा जिलेके जटौआ ग्राममे जन्म हुआ था।
पिताका नाम चुन्नीलाल जैन पद्मावतीपुरवाला था। कृति--पंचविशतिका, श्रेणिक चरित्र, तत्त्वार्थ राजवातिक; ४ अध्याय; विमलपुराण, मल्लिनाथ पुराण । स्वर्गवास-ई० १६६३ बाबई ( तत्त्वानुशासन/प्र०७० श्री लाल)
..गवपकमत
२. गन्धर्व देवका लक्षण ध, १३/५,५,१४०/३६१/8 इन्द्रादीनां गायका गन्धर्वा: ।-इन्द्रादिकोके गायकोंको गन्धर्व कहते हैं।
३. गन्धर्वके भेद ति. प./६/४० हाहाहूहूणारदतुंवरवासवकदंबमहसरया । गीदरदीगीदरसा वइरवतो हों ति गंधव्वा ।४01 =हाहा, हह, नारद, तुम्बर, वासव, कदम्ब, महास्वर, गीतरति, गीतरस और वज्रवान् ये दस गन्धर्वोके
भेद हैं । (त्रि. सा./२६३)। गन्धर्वगुफा-समेरुपर्वतके नन्दनादिवनोंके पश्चिममें स्थित एक
गुफा। इसमें वरुणदेव रहता है। --दे० लोक/३/६४|| गंधर्वपुर-विजया की उत्तर श्रेणीका एक नगर ---दे० विद्याधर । गन्धर्व विवाह-दे० विवाह । गधवसन-१. हिन्दू धर्म के भविष्य पुराणके अनुसार राजा विक्रमादित्यके पिताका नाम गन्धर्वसेन था। (ति. प./प्र. १४ H. L Jain.) २.शकवंशी राजा गर्दभिल्ल का अपर नाम । मालवा (मगध) देशमें गन्धर्वके स्थानपर श्वेताम्बर मान्यताके अनुसार गर्द भिल्लका नाम आता है । अथवा गर्दभी विद्या जाननेके कारण यह राजा गर्दभिल्लके नामसे प्रसिद्ध हो गया था। समय-वी.नि० ३४५-४४५
जनेन्द्र सिद्धान्त कोश
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org