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खरदूषण
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खरदूषण - प० पु०/ ६ / श्लोक मेघप्रभका पुत्र था (२२) । रावणकी बहन चन्द्रनखाको हर कर (२५) उससे विवाह किया (१०/२८ ) । खरभाग १ लोक प्रारम्भ स्थित पृथ्वी विविध प्रकारके रनोंसे युक्त है. इसलिए उसे चित्रा पृथिवी कहते है। चित्राके सौन भाग है; उनमें से प्रथम भागका नाम खरभाग है। विशेष - दे० रत्नप्रभा/२ २. अधोलोक में खर पंकादि पृथिवियोका अवस्थान - दे०
भवन / ४॥
खवंट -- दे० कर्मट ।
खलोनित - कायोत्सर्गका अतिचार - दे० व्युत्सर्ग/ १ । खातिकाणी द्वितीयण ।
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खाद्य . आ /६४४ .../ खादति वादियं पू---६४४) जो लावा जाये रोटी लड्डू आदि खाद्य है (अन. ७/१२/२६०); (ला. सं./ २/१६-१७) । खारवेल - - कलिंग देशका कुरुवंशी राजा था। समय-- ई पू. १६० ॥ खारीका प्रमाण निशेष गति / २/१/२० खुशाल चन्द सांगानेर निवासी खण्डेलवाल जैन सांगानेरवासी 4० तखमीदासके शिष्य थे दिलो जसपुरा वि० सं० १७८० ई० १७२३ में प्र० जिनदास हरिवंश के अनुसार हरिवंशपुराणका पद्यानुवाद किया है। इसके अतिरिक्त, पद्मपुराम उसरपुराण, धन्यकुमार चरित्र जम्परित्र यशोधर चरित्र और व्रतकथा कोष । समय- वि० श० १८ उत्तरार्ध । (ती./४/३०३) | टिति प /४/१३३८. सिरिदपरिवेट ... पर्वत और नदीसे घिरा हुआ महलाता है। ६. १२/१४.६३/३३/० सरितपर्वतावरुद्ध छे नाम-नदो और पर्वतसे अवरुद्ध नगर की खेट संज्ञा है । (म. पु. / १६/१६१); (त्रि सा./६७६) । खेद - नि. सा. ( ता.वृ./६/१४/४) अनिष्टलाभः खेद' । - अनिष्टकी प्राप्ति ( अर्थात् कोई वस्तु अनिष्ट लगना) वह खेद है। स्त
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गंगदेव-तावतार के अनुसार आपका नाम (दे० इतिहास) देन था। आप भद्रबाहु प्रथम ( श्रुतकेवली ) के पश्चात दसवें ११वें अंग
पूर्वधारी हुए थे। समय बी०नि० २१६-३२६ (ई० पू० ११२१९८ ) । (दे० इतिहास ४/४ ) | गंगराज पोरल नरेश विष्णुवर्धन के मन्त्री मे ००१०५ अपने गुरु शुभचन्द्रको निषद्यका बनवायी थी। तथा श० सं० १०३७ चिराजकी समाधि की स्मृतिमें स्तम्भ खडा कराया था। समयश० १०१५-१०५० ( ई० १०१३-११२८ ); ( घ./२/प्र. ११ ) । गंगा-१. पूर्वीमध्य आर्य की एक नदी ३०/३/१९८१. कश्मीरने महनेवाली कृष्ण गंगा ही पौराणिक गंगा नदी हो सकती है । (ज. प./ प्र १३६ A N. up and H 1 ) -- दे० कृष्ण गंगा । गंगाकुण्ड - भरतक्षेत्रस्थ एक कुण्ड जिसमे से गंगा नदी निकलती है। दे० लोक/३/१० गंगाकूटस्थ एक फूट] दे० लोक ३/४ गंगादेवी गगाकुण्ड तथा गंगाटकी स्वामिनी देवी-दे० लोक /७ । गंगा नदी - भरत क्षेत्रकी प्रधान नदी -दे० लोक/७ ॥
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गंडरादित्य शिलाहार राजा थे। निम्ब समय- श० १०३०-१०५८९ ई० ११०८-११३६ /ष Jain ).
गंडविमुक्तदेव मन्दिसंप के देशीयम के अनुसार मामनन्दि मुनि कोल्हापुरी के शिष्य तथा भानुकोति व कीर्ति के गुरु थे। समय वि० १९६०-१९१० ई० ११३३-१९६३) (व.सं. २/४ HI.Jain ) दे० इतिहास / ७ / १२ नन्दिसंध देशीय गणके अनुसार (दे० इतिहास ) माघनन्दि कोल्लापुरीयके शिष्य देवकीर्तिके शिष्य थे अपरनाम वादि चतुर्मुख था। इनके अनेक श्रावक शिष्य थे । यथा = १ माणिक्य भण्डारी मरियानी दण्डनायक, २. महाप्रधान सर्वाधिकारी ज्येष्ठ ज्येष्ठ दण्डनायक भरतिमय्यः ३ हेडगे बुचिमरयंगल, ४. जगदेकदानी हेडगे कोरय्य । तदनुसार इनका समय-- ई० ११५८-११८२ होता है । दे० इतिहास / ७/५ । गंध-१. गन्धका लक्षण
गंध
स. सि / २ /२०/१७८/६ गन्ध्यत इति गन्ध: - गन्धनं गन्धः । स.सि./ ५ / २३/२६४ / १ गन्ध्यते गन्धनमात्रं वा गन्धः । - १. जो सूंघा जाता है वह गन्ध है ...गन्धन गन्ध है । २ अथवा जो सुँघा जाता है अथवा पन्ध कहते हैं। ( रा ०/२/१०/१/११२/११); (ध. १/१,१,३३/२४४/१ ); (विशेष - दे० वर्ण / १) |
० निक्षेप / ५/६ ( बहुत द्रव्योंके संयोगसे उत्पादित द्रव्य गन्ध है ) ।
इसने सामन्त थे। खं. २ / १०६ H. L.
२. गन्ध के भेद
स.सि./५/२३/२४/९ द्वेषाः सुरभिरसुरभिरिति एते मूलभेदाः प्रत्येकं संख्ये या संख्येयानन्तभेदाश्च भवन्ति । - सुगन्ध और दुर्गन्धके भेद से वह दो प्रकारका है. ये तो मूल भेद है। वैसे प्रत्येक के संख्यात, असंख्यास और अनन्त भेद होते है। रामा
४८५); ( प प्र / टी / १/२१/२६/१ ); (द्र. सं/टी /७/१६/१२); (गो. जी /जी. प्र. /४७६/८८५/१५ ) ।
३. गन्ध नामकर्मका लक्षण
स.सि / ८ / ११ / ३१०/१० यदुदयप्रभवो गन्धस्तद् गन्धनाम । -जिसके उदयहोती है वह गन्ध नाम/१२ १०/१००/१६) (गो.जी. ४/११/२/१३)।
घ. ६९.११.२०५६ जस्स कम्मर उदव जीवसरी जादिपणियों गंध उपनदि तर कम्मर गधा नार कारणे कज्जुनधारादो जिससे जीवके शरीर में जातिके प्रति नियत गन्ध उत्पन्न होता है उस कर्मस्कन्धकी गन्ध यह संज्ञा कारण कार्य के उपचार की नयी है। (१३/२५० १०२/३६४/७ ) ।
जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश
१. गन्ध नामकर्मके भेद
. . ६/१६-१/१८/०४ गधणामकम्मं त दुनिहं सुरहिगंध दूरहिगंधं चैव ॥२८॥ जो गन्ध नामकर्म है यह दो प्रकारका हैसुरभि गन्ध और दुरभि गन्ध (प.. १३/५/सू. १९१/३००); (पं. स. प्र./२/५/०७/३१) (स. सि./८/११/२६०/९१) (रा. बा./ सं. ); (रा.वा./ ८/११/१०/५७७/१७ ) ( गो. क/जी. प्र./३२/२६/१, ३३ / २६ /१४ ) । * नामकमोंके गन्ध आदि सकारण है या निष्कारण --- ३० वर्ण १४ ।
* जल आदिमें भी गंधकी सिद्धि
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-२०१०
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