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क्षयोपशम
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२. क्षयोपशमके लक्षणोंका समन्वय
पडेगा। प्रश्न-तो तीसरे गुणस्थानमें औपशमिक भाव भी मान लिया जावे 1 उत्तर-नहीं, क्योंकि, तीसरे गुणस्थानमें औपशमिक भावका प्रतिपादन करनेवाला कोइ आर्ष वाक्य नहीं है।
५. फिर वेदक व क्षायोपशमिक सम्यक्त्वमें क्या अन्तर
त्वमें क्षयोपशम भाव कैसे ? उत्तर-यथास्थित अर्थ के श्रद्धानको घात करनेवाली शक्ति जब सम्यक्त्व प्रकृतिके स्पर्धकोंमें क्षीण हो जाती है, तब उनकी क्षायिक संज्ञा है । क्षीण हुए स्पर्धकोंके उपशमको अर्थात प्रसन्नताको क्षयोपशम कहते हैं । उसमें उत्पन्न होनेसे वेदक सम्यक्त्व
क्षायोपशमिक है। ध. ७/२,१,७३/१०८/७ सम्मत्तदेसघादिफयाणमणतगुणहाणीए उदयमागदाणमइदहरदेसधादित्तणेण उवसंताणं जेण खओवसमसण्णा अत्थि तेण तत्थुप्पणजोवपरिणामो खओवसमलद्धी सण्णिदो। तीए खबोबसमलद्धीए वेदगसम्मत्तं होदि ।-अनन्तगुण हानिके द्वारा उदयमें आये हुए तथा अत्यन्त अल्प देशधातित्वके रूपसे उपशान्त हुए सम्यक्त्व मोहनीय प्रकृतिके देशघातिस्पर्धकोंका चकि क्षयोपशम नाम दिया गया है, इसलिए उस क्षयोपशमसे उत्पन्न जीव परिणामको क्षयोपशमलब्धि कहते हैं। उसी क्षयोपशम लब्धिसे वेदक सम्यक्त्व होता है। २. क्षयोपशम सम्यग्दर्शनको कथंचित् उदयोपशमिक भी कहा जा सकता है
ध./१४/५.६.१९/२१/११ सम्मत्तदेसघादिफद्दयाणमुदएण सम्मत्तुप्पत्तीदो ओदइयं। ओवसमियं पितं. सव्वधादिफद्दयाणमुदयाभावादो। - सम्यक्त्वके देशवाति स्पर्धकोंके उदयसे सम्यक्त्वकी उत्पत्ति होती है, इसलिए तो वह औदयिक है। और वह औपशमिक भी है, क्योंकि वहाँ सर्वघाति स्पर्धकोका उदय नहीं पाया जाता। (दे० मिश्र/२/६/४)।
३. क्षायोपशमिक भावको उदयोपशमिकपने सम्बन्धी
ध.४१,७,७/२०३/६ उदयस्स विज्जमाणस्स खयव्यवएसविरोहादो। तदो एदे तिण्णि भावा उदोवसमियत्तं पत्ता। ण च एवं, एदेसिमुद
ओवसमियत्तपदुप्पायणमुत्ताभावा ।-प्रश्न-जिस प्रकृतिका उदय विद्यमान है, उसके क्षय संज्ञा होनेका विरोध है । इसलिए ये तीनों ही भाव ( देशसंयतादि) उदयोपशमिकपनेको प्राप्त होते हैं। उत्तरनहीं. क्योंकि इन गुणस्थानोंको उदयोपशमिकपना प्रतिपादन करनेवाले सूत्रका अभाव है। *क्षायोपशमिक भावको औदयिक नहीं कह सकते
-दे०मिश्र/२
ध. १/१,१,११/१७२/६ "उप्पज्जइ जदो तदो वेदयसम्मत्त खओवसमियमिदि केसिंचि आइरियाणं वक्खाणं तं किमिदि णेच्छिज्जदि, इदि
चेत्तण्ण, पुव्वं उत्तु त्तरादो। ध. १/१,१,११/१६६/५ वस्तुतस्तु सम्यमिथ्यात्वकर्मणो निरन्वयेनाप्ता
गम पर्यायविषयरुचिहननं प्रत्यसमर्थस्योदयात्सदसद्विषयश्रद्धोत्पद्यत इति-१. प्रश्न-जब क्षयोपशमसम्यक्त्व उत्पन्न होता है तब उसे वेदक सम्यग्दर्शन कहते हैं। ऐसा कितने ही आचार्योंका मत है, उसे यहाँ पर क्यों नहीं स्वीकार किया गया है । उत्तर-यह कहना ठीक नहीं है, क्योंकि इसका उत्तर पहले दे चुके हैं । २. यथा-वास्तवमें तो सम्यगमिथ्यात्व कर्म निरन्वय रूपसे आप्त, आगम और पदार्थविषयक श्रद्धाके नाश करनेके प्रति असमर्थ है, किन्तु उसके उदयसे सत्-समीचीन और असत-असमीचीन पदार्थको युगपत् विषय करने वाली श्रद्धा उत्पन्न होती है। ध.१/१,१,१४६/३६८/१कथमस्य वेदकसम्यग्दर्शनव्यपदेश इति चेदुच्यते। दर्शनमोहवेदको वेदक., तस्य सम्यग्दर्शनं वेदकसम्यग्दर्शनम् । कथं दर्शनमोहोदयवर्ता सम्यग्दर्शनस्य सम्भव इति चेन्न, दर्शनमोहनीयस्य देशघातिन उदये सत्यपि जीवस्वभावश्रद्धानस्यैकदेशे सत्यविरोधात् । =प्रश्न-क्षायोपशमिक सम्यग्दर्शनको वेदक सम्यग्दर्शन यह संज्ञा कैसे प्राप्त होतो है । उत्तर-दर्शनमोहनीय कर्मके उदयका बेदन करनेवाले जीवको वेदक कहते हैं, उसके जो सम्यग्दर्शन होता है उसे वेदक सम्यग्दर्शन कहते हैं। प्रश्न-जिनके दर्शनमोहनीय कर्मका उदय विद्यमान है, उनके सम्यग्दर्शन कैसे पाया जाता है ? उत्तर-नहीं, क्योंकि, दर्शनमोहनीयको देशघाति प्रकृतिके उदय रहनेपर भी जीवके स्वभावरूप श्रद्धानके एकदेश रहने में कोई विरोध नहीं आता है। गो.जी./जी.प्र./२/५०/१८ सम्यक्त्वप्रकृत्युदयस्य तत्त्वार्थ श्रद्धामस्य मलजननमात्र एवं व्यापाराव ततः कारणात् तस्य देशघातित्वं भवति। एवं सम्यक्त्वप्रकृत्युदयमनुभवतो जीवस्य जायमानं तत्त्वार्थश्रद्धान वेदकसम्यक्त्वमित्युच्यते । इदमेव क्षायोपशमिकसम्यक्त्वं नाम, दर्शनमोहसर्वघातिस्पर्धकानामुदयाभावलक्षणक्षये देशधातिस्पर्धकरूपसम्यक्त्वप्रकृत्युदये तस्यैवोपरितनानुदयप्राप्तस्पर्धकाना सदवस्थालक्षणोपशमे च सति समुत्पन्नत्वात् । -सम्यक्त्व प्रकृतिके उदयका तत्त्वार्थ श्रद्धान कौ मल उपजाबने मात्र ही विर्षे व्यापार है तीहिं कारणते तिस सम्यक्त्वप्रकृतिक देशघातिपना हैं ऐसे सम्यक्त्वप्रकृतिक उदयकों अनुभवता जीवके उत्पन्न भया जो तत्त्वार्थ श्रद्धान सो वेदक सम्यक्त्व है ऐसा कहिए है। यह ही वेदक सम्यक्त्व है सो क्षायोपशमिक सम्यक्त्व ऐसा नाम धारक है जात दर्शनमोहके सर्वघाति स्पर्धकनिका उदयका अभावरूप है लक्षण जाका ऐसा क्षय होते महुरि देशवातिस्पर्धकरूप सम्यक्त्व प्रकृतिका उदय होते बहुरि तिसहीका वर्तमान समय सम्बन्धीत ऊपरिके निषेक उदयकौं न प्राप्त भये तिनिसम्बन्धी स्पर्धकनिका सत्ता अवस्था रूप उपशम होते वेदक सम्यक्त्व हो हैं तात याहीका दूसरा नाम क्षायोपशमिक है भिन्न नाहीं है। * कम क्षयोपशम व आत्माभिमुख परिणाममें केवल भाषाका भेद है-दे० पद्धति ।
४ परन्तु सदवस्थारूप उपशमके कारण उसे औपशमिक नहीं कह सकते ध.१/१/१,११/१६६/७ [उपशमसम्यग्दृष्टौ सम्यग्मिथ्यात्वगुणं प्रतिपन्ने सति सम्यग्मिध्यात्वस्य क्षायोपशमिकत्वमनुपपन्न तत्र सम्यग्मिथ्यात्वानन्तानुबन्धिनामुदयक्षयाभावात् । तत्रोदयाभावलक्षण उपशमोऽस्तीति चेन्न, तस्यौपशमिकत्वप्रसङ्गात् । अस्तु चेन्न, तथाप्रतिपादकस्यार्षस्याभावात्। - [उपशम सम्यग्दृष्टिके सम्यग्मिथ्यात्व गुणस्थानको प्राप्त होनेपर उस सम्यग्मिथ्यात्व गुणस्थानमें क्षयोपशमपना नहीं बन सकता है, क्योंकि, उपशम सम्यक्त्वसे तृतीय गुणस्थानमें आये हुए जीवके ऐसी अवस्थामें सम्यक्-प्रकृति, मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धी इन तीनोंका उदयाभावी क्षय नहीं पाया जाता है। ] प्रश्न-उपशम सम्यवरवसे आये हुए जीवके तृतीय गुणस्थानमें सम्यकप्रकृति, मिथ्यात्व और अनन्तानुमन्धी इन तोनोंका उदयाभाव रूप उपशम तो पाया जाता है । उत्तर-नहीं, क्योंकि इस तरह तो तोसरे गुणस्थानमें औपशमिक भाव मानना
जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश
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