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क्षयोपशम
२. आवृतभाव गुणांशकी उपलब्धि
दे. मिश्र / २ / सम्यग्मिध्यात्व कर्म में सम्यक्त्वका निरन्वय घात करनेकी शक्ति नहीं है। उसका उदय होनेपर जो शबलित श्रद्धान उत्पन्न होता है, उसमें जितना श्रद्धाका अंश है वह सम्यक्त्वका अवयव है । इसलिए मिश्रगुणस्थान क्षायोपशमिक है।
४. देशात उदय मात्रकी अपेक्षा
३. योपशम /२/५ सम्यक् श्रद्धानको पातनेमें असमर्थ सम्यक्त्व प्रकृतिके उदयसे होनेके कारण वेदक सम्यक्त्व क्षायोपशमिक है। दे/२/६/सम्यग्मिथ्यात्व के उदयसे मित्रगुणस्थान होता है, क्योंकि यहाँ मिथ्यात्व अनन्तानुबन्धी और सम्यक्त्वप्रकृति, इनमें से किसीका भी उदयाभावी क्षय नहीं है।
दे संयतासंयत / ०] [संज्वलन व मोकषायके क्षयोपशम संज्ञाषाले देशपाती स्पर्धकोंके उदयसे होनेके कारण संयतासंयत गुणस्थान क्षायोपशमिक है ।
दे. मतिज्ञान / २/४ मिध्यात्वके सर्वपाठी स्पर्धकोंके उदयसे तथा अपनेअपने ज्ञानावरणीयके देशघाती स्पर्धकोंके उदयसे होनेके कारण मति अज्ञान आदि तीनों अज्ञान क्षायोपशमिक हैं।
५. गुणके एक देशक्षयकी अपेक्षा
(दे० उपशीर्षक नं० २ क व २ ख )
६. क्षायोपशमिकको औदयिक आदि नहीं कह सकते
दे, क्षयोपशम / २/३ देश संयत बादि दोन गुणस्थानोंको उदयोपशमिक कहनेवाला कोई उपदेश प्राप्त नहीं है।
क्षयोपशम /२/४ मिध्यास्त्र, अनन्तानुबन्धी और सम्यक्प्रकृति इन तीनोंका सदवस्थारूप उपशम रहनेपर भी मिश्र गुणस्थानको औपशमिक नहीं कह सकते ।
३. मिश्र/२/१० सम्यग्मिध्यानके उदयसे होनेसे मित्रगुणस्थान औदमिक नहीं हो जाता ।
दे. संयत / २/४ संनके उदयसे होनेपर भी संयत गुणस्थानको बदयिक नहीं कह सकते ।
३. क्षयोपशमिक भावके भेद
ष. खं./१४/५,६/११/१८ जो सो तदुभयपच्चइयो जीवभावबंधो णाम तस्स हमो पिसो खओवसामय एईदियलद्धित्ति या सओक्सनियं बीइं दिलद्धिसिना खओवसमियं सीईदियलद्धि विना खओवसमियं चउरिदियतद्विति वा खओवसमियं पंचिदियलद्धित्तिमा खओवसमियं मदिअण्णाणि त्ति वा खओवसमियं सुदअण्णाणि ति या ओवसमये विहंगमाथि सिवा खओवसमिर्य आभिणिबोहियशाणितया खजीव समियं सुरणानिति वा स्वओवसमियं बोहि णाणित्तिमा स्वोवसमियं मणपज्जनणाणि ति वा स्वओवसमियं
समिति वा खओवसमिर्य अच्चमद समितिमा खजोनसमियं ओसिणि त्ति वा खओवसमियं सम्ममिच्छत्तलद्धि त्ति वा ओसमियं सम्मद्धितिया जोक्स मिर्य संणमासंमलद्धि चिवा खओवसमियं संजमलद्धित्ति वा खओवसमियं रागलद्धिति माओवसमय लाहल वा खओवसमियं भोगत दिवा खओवसनियं परिभोगलद्धि सिमा खओवसमि मोरियल माओवसमियं से आयारघरे तिवा खओवसमियं सूदयधरे न्ति वा खओवसमियं ठाणधरेत्ति वा खओवसमियं समवायघरे त्ति वा खओयसमियं विग्राहकणघरे ति वा खओवसमियं माहधम्मधरे ति या जोक्समियं उनारायणरेति वा खवसमियं अंधरे ति वा खओवसमियं अतरोववादियदसमरे ति वा खओअसमियं पण्णजागरणपरेति वा खओवसमियं विवागतधरे सिमा खओवसमिय
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२. क्षयोपशमके लक्षणोंका समन्वय
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दिट्टिवादधरेति वा खओवसमिथ गणि त्ति वा खओवसमियं वाचगे त्ति वा खओक्समियं दसपुव्वहरे त्ति वा खओवसमियं चोइसपुव्वहरे त्ति वा जे चामण्णे एवमादिया खओवसमियभावा सो सव्वो तदुभयपच्चइओ जीवभावबंधो णाम | १६ | । * जो तदुभय ( क्षायोपशमिक ) atarnaa है उसका निर्देश इस प्रकार है। एकेन्द्रियलब्धि, द्वीन्द्रिय सन्धि श्री पंचेन्द्रियन्धि मध्यज्ञानी बता श्रुताज्ञानी, विभंगज्ञानी, आभिनिबोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी अवधिज्ञानी, मन:पर्ययज्ञानी, पदर्शनी अचदर्शनी अवधिदर्शनी, सम्यग्मिध्यात्वलब्धि, सम्यक्त्वलब्धि, संयमासंयमलब्धि, संयमलब्धि, दानसन्धि सामलन्धि भोगलब्धि, परिभोगलब्धि, वीर्य, आचारघर सूत्रस्थानवर, समयायधर, व्याख्याभिधर, नाथधर्मघर उपासकाध्ययनधर, अन्तर अनुत्तरोपनादिकदशधर प्रश्नव्याकरणधर, विपाक प्रधर दृष्टिवादवर, मणी, वाचक, दशपूर्वर तथा क्षायोपशमिक चतुर्दश पूर्वधर; ये तथा इसी प्रकारके और भी दूसरे जो क्षायोपशमिक भाव है वह सब तदुभयप्रत्ययिक जीव भावबन्ध हैं।
रा. सू./२/५ ज्ञानाज्ञानदर्शनसम्ययश्चतुस्त्रित्रिभेदाः सम्यतमचारिसंयमासंयमाथ 12 क्षायोपशमिक भावके १८ भेद हैं-चार ज्ञान,
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तीन अज्ञान, तीन दर्शन पाँच दानादि सन्धि, सम्यक्त्व, चारित्र और संयमासंयम (प. २/१.७१/८/१६९) (६.५/११२/१.७१/ १११/३); (न.च./३०९) (त.सा./२/४-५ ) ( गो ./मू./१००); (गो.क./मू./०१०)।
४. क्षयोपशम सर्वात्मप्रदेशों में होता है।
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ध. १/१,१,२३/२३३ / २ सर्व जीवावयवेषु क्षयोपशमस्योत्पत्त्यभ्युपगमात् । - जीवके सम्पूर्ण प्रदेशों में क्षयोपशमकी उत्पत्ति स्वीकार की है। ५. अन्य सम्बन्धित विषय
१. गुणस्थानों व मार्गणा स्थानोंमें क्षायोपशमिक भावोंका सत्व । -दे० भाव / २ २. गुणस्थानो व मार्गणा स्थानों में क्षायोपशमिक भावों विषयक शंका-समाधान | - दे० वह वह नाम ३. क्षायोपशमिक भावका कथंचित् मूर्तत्व । ४. क्षायोपशमिक भाव बन्धका कारण नहीं,
-दे० मूर्त /८ औदयिक है ।
- दे० भाव / २ - दे० भाव/२
५. क्षायोपशमिक भान जीवका निज तत्व है। ६. मिय्याशानको क्षायोपशमिक कहने सम्बन्धी । -३०
ज्ञान / III/३/४ -दे० भाव/२
७. क्षायोपशमिक भानको मिश्र भाव कहते हैं। ८. क्षायोपशमिक भावको मिश्र कहने सम्बन्धी शंका-समाधान । -दे० मिश्र/२
२. क्षयोपशमके लक्षणों का समन्वय
★ वेदक सम्यग्दर्शन – दे० सम्यग्दर्शन / IV / ४ |
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२. वेदक सम्यग्दर्शनको क्षयोपशम कैसे कहते हो, औदविक क्यों नहीं
ध. ५/१,७,५/२००/७ कधं पुण घडदे । जहट्ठियट्ठसद्दहणघायण सत्ती सम्मतफखीणाति तेसिं खइयसण्णा । खयाणमुवसमो पस
दाखक्समो । तरपुष्पण्णादी स्वओोमसमियं वेदसम्मत मदि घडदे । = प्रश्न – ( क्षयोपशमके प्रथम लक्षण के अनुसार ) वेदक सम्य
जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश
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