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कालक
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किनर
प्रसिद्ध कवि थे। कृति-१. शकुन्तला. विक्रमोर्वशी, मेघदूत, रघुवंश, कुमारसम्भव, मालविकाग्निमित्र । .. ज्ञा./प्र.१ पं. पन्नालाल बाकलीवाल 'राजाके दरबार में एक रत्न थे। आप शुभचन्द्राचार्य प्रथमके समकालीन थे। आपके साथ भक्तामर स्तोत्रके रचयिता आचार्य श्री मानुतंगका शास्त्रार्थ हुआ था। समय-ई. १०२१
कालक-एक ग्रह-दे० 'ग्रह'। कालकूट-भरत क्षेत्र आर्य खण्डका एक देश-दे० मनुष्य/४ । कालकेतु-एक ग्रह-दे० 'ग्रह'। कालकेशपुर-विजयाकी दक्षिण श्रेणीका एक नगर ।
-दे० 'विद्याधर' कालक्रम-दे० 'क्रम'। कालतोया-पूर्व आर्य खण्डस्थ एक नदी-दे० मनुष्य/४। कालनय-दे० नय/ काल परिवर्तन-दे० संसार/२। काल प्रदेश-Time instant (ध./५/प्र० २७) कालमही-पूर्व आर्य खण्डस्थ एक नदी-दे० मनुष्य/४ । कालमुखी-एक विद्या-दे० 'विद्या'। काललब्धि-दे. नियतिरि। कालवाद-कालवादका मिथ्या निर्देश गो.क./मू /८७४/१०६५ कालो सव्वं जणयदि कालो सब्व विणस्सदे भूदं । जागत्ति हि सुत्तेसु वि ण सक्कदे वंचिदु कालो ८७६ -- काल ही सर्वकौ उपजावै है काल ही सर्वको विनाशै है। सूताप्राणिनि विर्षे भी काल ही प्रगट जागे है कालके दिगनेकौं बंचनेकौं समर्थ न होहए है। जैसे कालही करि सबकौं मानना सो कालबादका अर्थ जानना।८७१। * कालवादका सम्यक् निर्देश दे० नय/1।। कालव्यभिचार-दे० नय/III/६] । कालशुद्धि-दे० 'शुद्धि'। कालसंवर-ह.पु./४३/श्लोक-मेधकूट नगरका राजा (४६-५०) असुर
द्वारा पर्वतपर छोड़े गये कृष्णके पुत्र प्रदयुम्नका पालन किया था। (४३/५७-६१) कालातीत हेत्वाभास-दे० 'कालात्ययापदिष्ट' । कालात्ययापदिष्ट हेत्वाभास न्या.सू./म्.ब.टी /१/२/६/४७/१५ कालात्ययापदिष्टः कालातीतः ।।... निदर्शनं नित्यः शब्दः संयोगव्यङ्ग्यवाद रूपवत । साधन कालके अभाव हो जानेपर प्रयुक्त किया हेतु कालात्ययापदिष्ट है हा.. जैसेशब्द नित्य है संयोग द्वारा व्यक्त होनेसे रूपकी नाई। (श्नो.वा./४/न्या.२७३/४२६/२७) न्या.दी./३/६४०/८७/३ बाधित विषयः कालात्ययापदिष्टः । यथा-अग्निरनुष्ण पदार्थत्वात् इति । अत्र हि पदार्थत्वं हेतुः स्वविषयेऽनुष्णत्वे उष्णत्वग्राहकेण प्रत्यक्षेण बाधिते प्रवर्तमानोऽबाधितविषयत्वाभावा. कालात्ययापदिष्टः । = जिस हेतुका विषय-साध्य प्रत्यक्षादि प्रमाणोसे बाधित हो वह कालात्ययापदिष्ट हेत्वाभास है । जैसे-'अग्नि ठण्डी है क्योंकि वह पदार्थ है' यहाँ 'पदार्थ स्व' हेतु अपने विषय ठण्डापनमें,' जो कि अग्निकी गर्मीको ग्रहण करनेवाले प्रत्यक्षसे बाधित है, प्रवृत्त है। अत अबाधित विषयता न होनेके कारण पदार्थत्व हेतु कालात्ययापदिष्ट है। (पं.ध./पू./४०५) कालिदास-१. राजा विक्रमादित्य नं.१ के दरबारके नवरत्नोंमेंसे एक थे। समय-ई.पू. ११७-५७ (ज्ञा./प्र.१ पं. पन्नालाल बाकलीबाल ) २. वर्तमान इतिहास चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य ई. ३७५-४१३ के
कालो-१. भगवान् पुष्पदन्तकी शासक यक्षिणी- तीर्थंकर/५/३
२ एक विद्या-दे० 'विद्या' । कालोघट्टपुरो-वर्तमान कलकत्ता । (म.पु./प्र.६/पं. पन्नालाल) कालुष्य-पं.का./मू./१३८ कोधो व जदा माणो माया लोभो व चित्तमासेज । जीवस्स कुणदि खोट्ट कलुसो त्ति य तं बुधा वेंति ११३८। -जब क्रोध, मान, माया अथवा लोभ चित्तका आश्रय पाकर जीवको क्षोभ करते हैं, तब उसे ज्ञानी 'कलुषता' कहते हैं। नि. सा./ता. वृ./६६/१३० क्रोधमानमायालोभाभिधान श्चतुभिः कषायैः क्षुभितं चित्तं कालुष्यम् । =क्रोध, मान, माया और लोभ नामक
चार कषायोंसे क्षुब्ध हुआ चित्त सो कलुषता है। कालेयक-औदारिक शरीरमें कालेयकों का प्रमाण
--दे औदारिक/१/७। कालोव-मध्यलोकका द्वितीय सागर-दे० लोकल/३ । कालोल-दूसरे नरकका नवमा पटल-दे० नरका ५११९ । काव्यानुशासन-१. हेमचन्द्र सूरि (ई० १०८८-११७३) कृत और २. वाग्भट्ट द्वारा (वि०श०१४ मध्य) में रचित काव्य शिक्षा ग्रन्थ ।
(दे०बह वह नाम) काव्यालंकार टीका-पं. आशाधर (ई०११७३-१२४३) कृत एक
काव्य शिक्षा विपयक ग्रन्थ ---दे० आशाधर । काशमार-१. म.पू./प्र.४४ पं. पन्नालाल 'भारतके उत्तरमें एक देश है। श्रीनगर राजधानी है। वर्तमानमें भी इसका नाम काशमीर ही
है। २. भरतक्षेत्र आर्यखण्डका एक देश-दे० मनुष्य/४। काशी-भरतक्षेत्र मध्य आर्य खण्डका एक देश-दे० मनुष्य/४। काष्ठकर्म-दे० निक्षेप/४। काष्ठा-कालका एक प्रमाण विशेष -दे० गणित/I/१/४ । काष्ठासंघ-दिगम्बर साधुओंका संघ-दे० इतिहास/८/४। काष्ठी-एक ग्रह -दे० 'ग्रह'। किनर-१. किंनरदेवका लक्षण ध.१३/५,५,१४०/३६१/८ गीतरतयः किन्नरः। -गानमें रति करनेवाले
किन्नर कहलाते हैं। * व्यन्तर देवोंका एक भेद है-दे० व्यं तर/१२
२. किमार देवके भेद ति.प./६/३४ ते किंपुरिसा किंणरहिदयंगमरुवपालि किंणरया। किणरणिदिदणामा मणरम्मा किंणरुत्तमया ।३४। रतिपियजेट्ठा। -कि पुरुष, 'किन्नर, हृदयंगम, रूपपाली, किन्नरकिन्नर, अनिन्दित, मनोरम, किन्नरोत्तम, रतिप्रिय और ज्येष्ठ, ये दश प्रकारके किन्नर जातिके देव होते हैं । (ति.सा./२५७-२५८) * किंनर देवोंके वर्ण परिवार व अवस्थानादि
-दे० व्यन्तर/२/१।
जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश
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