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६. कालानुयोग विषयक प्ररूपणाएं
जघन्य
प्रमाण घ./१४
विषय
।
विशेष
काल
उस्कृष्ट
विशेष
काल
आवाधा काल नहीं है
स्व भुज्यमान आयु
५. पाँच शरीरबद्ध निषेकोंका सत्ता काल ध./१४/२४६-२४८ औदारिक
१ समय वैक्रियक आहारक
तेजस २४८ कार्माण
१ समय+ १ आवली
३ पत्य ३३ सागर अन्तर्मु० ६६ सागर ७० को-को सागर
२४७
आबाधा काल सहित
.. पाँच शरीरोंकी संघातन परिशातन कृति
(ध.६/४,१,७१/३८०-४०१) नोट-(देखो वहाँ ही)
७. योगस्थानोंका अवस्थान काल
(गो. जी./जो. प्र./२४२/२३३/१) उपपाद स्थान
१ समय एकान्तानुवृद्धि परिणाम योग
२ समय
१समय
विग्रह गति
८समय
केवलि समुद्धात
एकजीवापेक्षया
उत्तर प्रकृति
।
मूल प्रकृति
१/४१-८३/४५-६८
विषय
नानाजीवापेक्षया || विषय पद विशेष । मूल प्रकृति
उत्तर प्रकृति ४. अष्टकर्मके चतुर्बन्ध सम्बन्धी ओघ आदेश प्ररूपणा
(म.म./पु.न..../.../पृष्ठ नं०...) १. प्रकृति ज. उ. पद
१/३३२-३६४/२३६-२४६ भुजगारादि
हानि-वृद्धि २. स्थिति | ज. उ. पद
२/१८७-२०३/११०-११८ ३/५२२-५५४/२४३-२५६ भुजगारादि २/३१६-३२५/१६६-१६६ ३/७५ ३७६-३८०
हानि-वृद्धि २/४०१-४०२/२०१-२०२ / ३/...(ताड़पत्र नष्ट) ३. अनुभाग ज. उ. पद ४/२४०-२५३/१०६-११६ । १/४०५-४०६/२११-२१६
भुजगारादि ४/२६८-२६६/१३७-१३८ ५३८-५४१/३०६-३१२
हानि-वृद्धि ४/३६५ /१६६ १/६२२ /३६७-३६८ ४. प्रदेश ज. उ, पद ६/६४४८-१०
भुजगारादि ६/१३७-१३६/७३-७६ हानि-वृद्धि
२/६७-६६/४७-५८ २/२७५-२८०/१४८-१५१ | २/३६७-३६६/१८७-१८८ ४/८०-१९७/२६-४३ ४/१७२- (१२६-१२७ । ४/३५७-३५८/१२-१३ ६/६०-८६/२८-४५ ६/१०४-१०६/५५-५७
२/१४६-२१६/३१४-३६५ ३/७२०-७३२/३३३-३३६ ३/८७६-८८१/४१७-४१८ ४/४७७-५५४/२३८-३१४ १/४५७- /२४४ ५/३१५ ३६१ ६/२२५-२४७/१३४-१५४
| १. अष्टकर्मके चतुःउदोरणा सम्बन्धी ओघ आदेश प्ररूपणा १ प्रकृति | ज. उ. पद
घ. १५/४७
ध. १५/७३ भुजगारादि ध. १५/५२
ध.१५/१७ हानि-वृद्धि
ध.१६/१७ भंगापेक्षा ज,उ.पद | ध, १५/५०
घ. १५/८५
ध. १५/४४ ध. १५/५१
ध. १५/६१ ध.१५/८७ ध. १६/१७ ध. १५/३
ध १५/४६
जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश
भा०२-१६
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