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काल
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६. कालानुयोग विषयक प्ररूपणाएं
१. सम्यक्प्रकृति व सभ्यग्मिथ्यात्वकी सत्त्व काल प्ररूपणा
प्रमाण १. (क.पा./२.२२/२/१२८६-२६४/२५३-२५६); २. (क.पा./२,२२/२/६१२३/२०५)
विशेषोंके प्रमाण उस उस विशेष के ऊपर दिये हैं।
जघन्य
- उत्कृष्ट
विषय
|प्रमाण नं०
| काल
विशेष
काल
विशेष
२६ प्रकृति स्थान
१समय
अर्ध पु० परि० पल्य/अरं० साधिक १३२ सागर
२८"
"
(क.पा.२/२.२२/११८ व १२३/१०० व १०८ मिथ्यात्वं से प्रथमोपशम सम्य के पश्चात् मिथ्याखकोप्राप्त पल्य/असं पश्चात् पुनः उपशम सम्यक्त्वी हुआ।२८ कीसत्ताबनायी पश्चात मिथ्यात्वमें जा वेदक सम्य० धारा।६६ सा० रहा । फिर मिथ्यात्वमें पत्य/असं० रहकर पुन' उपशम पूर्वक वेदकमें ६६ सा० रहकर मिथ्याष्टि हो गया और पत्य/अंस० में उद्वेलना द्वारा २६ प्रकृति स्थान को प्राप्त ।
१
अवस्थित विभक्ति स्थान
-
१ समय (क.पा-२/२,२२/६४२७/३६०)
उपशम सम्यक्त्व सम्मुख जो जीव अन्तरकरण करनेके अनन्तर मिथ्यात्वकी प्रथम स्थितिके द्वि चरम समयमें सम्यक्त्व प्रकृतिकी उद्वेलना करके २७ प्रकृति स्थानको प्राप्त होकर १ समय तक अल्पतर विभक्ति स्थानवाला होता है। अनन्तर मिथ्याष्टिके अन्तिम समय से २७ प्रकृति स्थानके साथ १ समय तक रहकर मिथ्यात्वके उपान्य समयसे तीसरे समयमें सम्य०को प्राप्तकर २८ प्रकृतिस्थानवाला हो जाता है। उसके अल्पतर और भुजगारके मध्यमें अवस्थित विभक्ति स्थानका जघन्य काल १ समय देखा जाता है।
एकेन्द्रियोंमें | सम्यक्प्रकृति 1 २८ प्रकृति स्थान
२
१
पत्य/असं०
समय (क.पा.२/२/२२/१२१/१०४)
उद्वेलनाके काल में एक समय शेष रहनेपर अविवक्षितसे विवक्षित मार्गणामें प्रवेश करके उद्वेलना करे
(क. पा. २/२,२२/११२३/२०५) क्योंकि यहाँ उपशम प्राप्तिकी योग्यता नहीं है इसलिए इस कालमें वृद्धि नहीं हो सकती। यदि उपशम सम्यक प्राप्त करके पुनः इन प्रकृतियों की नवीन सत्ता मना ले तो क्रम न टूटने से इस कालमें वृद्धि हो जाती। तब तो उत्कृष्ट १३२ सा० काल बन जाता जैसा कि ऊपर दिखाया है
पल्य/असं०
| सम्यग्मिथ्यात्व २१ समय (२७ प्रकृति स्थान)। अन्य कर्मोंका उदय काल शोक (ध.१४/५७१८)
१
छः मास
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