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महावीर ! निर्वाण तुम्हारा
-डॉ. नरेन्द्र मानावत महावीर! निर्वाण तुम्हारा, नहीं मृत्यु का वरण, नहीं चेतन सत्ता का हरण, नहीं यह अस्ताचल की ओर सूर्य का गमन, नहीं यह एक देह का अन्य देह में रूपान्तरण ।
महावीर । निर्वाण तुम्हारा, जीवन की चरमोपलब्धि का श्रीष्ठ वरण
आत्मज्ञान की महाशक्ति का ऊर्वीकरण, जन्म-मरण के प्रावों से परे, काल के महाफलक पर अंकित अक्षय अव्याहत सुख ज्योति-किरण ।
महावीर ! निर्वाण तुम्हारा, प्राणिमात्र के लिए अभय का उठा चरण, दुखदग्धों के लिए लहराता शान्त तरण, गहरी अंध गुफाओं में बेसुध सोये, भवबद्ध आत्मा के लिए जागरण का प्रेरण ।
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