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वस्तु की तरह उसका विनिमय होने लगा था। उपासकों में से थे। राजनैतिक और धार्मिक-सभी प्रकार के उचित, भगवान महावीर के समता धर्म के संदेश से अधिकारों से वह वंचिता थी। उसमें भी स्वातन्त्र जातिवाद की जड़ें खोखनाई। जो अपने को जन्म का भाव जगा । चन्दनवाला, मृगावती और जयन्ति से ही हीन और दीन मानते थे, जो दासत्व को प्रादि भनेक नारियाँ राज्य वैभव को ठुकरा कर प्राप्त थे और जिनको छू लेना भी पाप था। ऐसे साधना के पथ पर बढ़ चली। छत्तीस हजार हीन दीन व्यक्तियों में भी नई चेतना की लहर साध्वियों पर सफल नेतृत्व कर साध्वी शिरोमणि दौड़ी। दर्ण भेद व वर्ग भेद की दीवारें टूटने चन्दनवाला ने नारी समाज का माल ऊंचा किया। लगी। एक अोर 44.0शिष्यों के परिवार सहित १३. धनाबीश न्यक्तियों की परिग्रह के प्रति आसक्ति इन्द्रभूति गौतम प्रादि ग्यारह ब्राह्मण विद्वानों ने, की ग्रन्थि ढीली होने लगी। बारह करोड़ स्वर्ण शालिभद्र धन्नजी अ दि श्री सम्पन्न श्रेष्ठीजनों ने मुद्राओं का स्वामी चार समुद्री जहाजों का अधि- श्रमण संघ का अनुगमन किया दूसरी ओर एक कारी तथा चालीस हजार गायों का प्रतिपालक दिन में सात प्राणियों की हत्या कर देने वाले माली कृषिकार 'प्रानन्द' अपने विशाल परिग्रह की सीमा अर्जुन को तथा चंडालकुलोत्पन्न हरिकेशी को निर्धारण कर भगवान महावीर का व्रतधारी उपा- भी भगवान महावीर के धर्म संघ में प्रविष्ट होने सक बन गया। महावीर का व्रतधारी उपासक का अवसर मिला। सम्राट श्रेणिक के लिए संत किसी पर कार्य का प्रतिभार नहीं डाल मेघकुमार जितना वंदनीय था, संत हरिकेशी भी सकता। किसी का अतिशोषण नहीं कर सकता, सी प्रकार अर्चा के योग्य था। संत की भूमिका किसी का वृत्ति बिच्छेद नहीं कर सकता, किसी की पर हरिजन और महाजन, क्षत्रिय और ब्राह्मण धरोहर को नकार नहीं सकता, किसी को धोखा सब समान रूप से वंद्य थे। नहीं दे सकता। और किसी भी प्राणी की निष्प्र- भगवान महावीर के उपदेशों से समाज को, योजन हिंसा नहीं कर सकता। भगवान महावीर तसवीर बहुत शानदार ढंग से उभरी। जन के संघ में आनंद जैसे ही कामदेव आदि दस व्रत. सामन्य ने समझा यह बहुत बड़ी सामाजिक क्रांति धारी प्रमुख श्रमणोपासक थे।
राजा महाराजाओं ने भी जीवन जगत के यथार्थ की भूमिका पर तथ्य यह है कि भगवान रहस्यों को समझा। उनमें प्रात्मा के अमरत्व महावीर ने न कोई सामाजिक क्रांति की न राजप्राप्ति की प्यास जगो। त्याग के प्रति पाकर्षण नैतिक क्रांति को उन्होंने अन्त:क्रांति की। अपने बढ़ा। फलस्वरूप दशाणभद्र आदि पाठ प्रमुख स्व को जागृत किया। जन-जन के मानस में भी राजानों ने मेधकुमार, नन्दिसेन प्रादि राजकुमारों अन्तः क्रान्ति के स्फुलिंग छोड़े ! मोह माया के ने, विशाल राज परिवारों ने, मंत्रियों और सामंतों दुर्भेद्य किले को तोड़कर समता के महा साम्राज्य ने महाव्रतों की दीक्षा स्वीकार कर जीवन को में प्रवेश पाने की बात कही। भगवान महावीर पवित्र किया। सम्राट श्रेणिक, कौणिक (अजात- की यह अध्यात्म क्रान्ति थी। स्व क्रान्ति थी। शत्रु) वैशाली गणतंत्र का प्रमुख संचालक चेटक अन्तः क्रांति थी। सामाजिक क्रांति इस अन्तःक्रांति मोर महामेधावी मंत्री अभयकुमार उनके प्रमुख की एक सहचर घटना थी।
1. नो इहलोगट्टयाए प्रायार महिज्जा ।
नो परलोगट्टयाए मायार महिलैजा ।। दशवं 51417
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