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. भ० महावीर एक चरित्र या चारित्र
(श्री प्रवीणचन्द्र छाबड़ा, जयपुर) भ. महावीर के 2500 वें निर्वाण वर्ष में भ० महावीर के चरित्र को चर्चा इतनी अधिक हुई कि विद्वान् लोग उनके जीवन की छोटी से छोटी घटनाओं की खोज में लगे रहे। प्रायः यह महसूस किया गया कि महावीर के जीवन सम्बन्धी घटनामों का उल्लेख बहुत कम मिलता है जैसे उन्होंने कब विहार किया, किस समय कौन सी घटना उनके जीवन में घटित हुई मादि । माज हम भगवान को चरित्र के रूप में देखना ज्यादा चाहते हैं। हमारा सारा दृष्टिकोण नायक के साथ बनता पौर चलता है । महावीर चरित्र नायक बनें और हम उस चरित्र पर गाथाए लिखें। यह एक ऐसी भावना है जो निराकार को साकार बनाती है।
जैन-दर्शन, संस्कृति मोर मान्यता में भ० भादिनाथ से लेकर महावीर तक का एक ही स्वरूप और भाव है। यदि चिह्न हटा दिये जावें तो मूर्तियों में भी भेद करना संभव नहीं है। महावीर ने अपने जीवन की घटनाओं को कभी स्वीकार नहीं किया। उनका सम्बन्ध शरीर के साथ पा मोर उनके लिए शरीर साधन था साध्य नहीं। अतः शरीर के साथ सम्बन्ध रखने वाला चरित्र महत्वहीन होकर रह गया। वे चरित्र न रहकर चारित्र हो गए। चरित्र का कोई रूप संस्कार या मोकार नहीं होता, वह घटना प्रधान भी नहीं होता, वह कभी नायक नहीं हो सकता । प्रत्येक चरित्र में चारित्र हो ही यह आवश्यक नहीं है। चरित्र तो शरीर का गुण है और महावीर गुणातीत थे। इसी कारण चरित्र के साथ चलने वाली सब विशिष्ट अथवा अविशिष्ट घटनाएं शरीर के साथ महत्वहीन होकर रह गई।
___ महावीर को चरित्र में देखा भी नहीं जा सकता। वे यदि घटना प्रधान होते तो मात्र चरित्रनायक होकर रह जाते। उन्होंने कर्मों का संवरण किया, उनका निर्जरा की फिर कर्मों से सम्बन्धित घटनामों का महत्व कहा ? इतिहासकार चाहे महावीर को चरित्र बनाने का कितना ही प्रयत्न करें, पर, महावीर का इन सबसे कोई सम्बन्ध नहीं। उनके बचपन से लेकर अन्त तक क्या घटनाएं घटी वे कभी महावीर के लिए महत्वपूर्ण नहीं रहीं। हम जो पकड़ में विश्वास रखते हैं, अवश्य ही महावीर को पकड़े रखना चाहते हैं। उनके चरित्र पर ऊहापोह करके अपने को धन्य भी मानते हैं, पर चारित्र शरीर अथवा कर्मों से सम्बन्धित घटनामों को कभी मान्यता, महत्व नहीं दे सकता।
. जीवन की घटनाएं मात्र अवसर है, संयोग है । लेकिन महावीर अवसर या संयोग नहीं थे। उनको घटनाओं में देखना, जानना उनको समझने में कठिनाई पैदा करेगा। जैन संस्कृति और परम्परा घटनामों से सत्य को नहीं प्रांकती । घटनाओं में सत्य छिप जाता है । महावीर को स्वयं दर्शन थे, ज्ञान थे, चारित्र थे। महावीर की मुक्ति में कारण उनका चरित्र नहीं चारित्र था, रत्नत्रय था। उनके साथ कोई लीला नहीं थी और न लीलामय होकर चलना उन्हें स्वीकार ही था । वे चरित्रमय नहीं चारित्रमय थे। इस तथ्य को समझ कर ही हम वास्तविक महावीर को समझ सकते हैं।
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