________________
एक दृष्टि भरपूर -श्री तारादत्त "निर्विरोध"
ब्रह्मचर्य ने बांधा मन को, जैसे सत्य और संयम ने हर क्षरण बांध दिया जीवन को।
आत्मलीन होने के सुख ने किया दुखों से मुक्त, जीवन के हर बोझिल क्षरण को
किया गुणों से युक्त; सच ने बांध दिया वर्शन को और शब्द ने हर चिन्तन को, .. जैसे पवन-दिशा औ' नभ ने बांध दिया एकांत विजन को !
ब्रह्मचर्य है देह - साधना भोग भाव से दूर, भरी सृष्टि में जहाँ रिक्तता
एक दृष्टि भरपूर ऐसे बाँधा वेह-दहन को ब्रह्म और मानव के मन को, जैसे गंध बाँध देती है सुमन-सुमन से एक चमन को।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org