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रेडियो फीचर
तीर्थकर
डॉ. नरेन्द्रभानावत पात्र परिचयवाचक-पुरुष-स्वर : वाचिका-स्त्री-स्वर । (समवेत स्वर में तीर्थकर स्तुति)
लोगस्स उज्जोअगरे, धम्मतित्थयरे जिणे ।
प्ररिहन्ते कितइस्सं, चउवीसपि केवली । वाचक-लोक में उद्योत करने वाले, धर्म तीर्थ के प्रवर्तक, 'राग-द्वेष के विजेता और कर्म शत्रु के
नाशक इन महापुरुषों की स्तुति कर कौन कृतकृत्य नहीं होता ? (स्तुति का पाठ स्वर)
चन्देसु निम्मलयरा प्राइच्चेसु अहियं पयासयरा ।
सागर वर गंभीरा, सिद्धा सिद्धि मम दिसन्तु ।। वाचिका-चन्द्र से भी अधिक निर्मल, सूर्य से भी अधिक तेजस्वी और समुद्र से भी पधिक गम्भीर
___ ये महापुरुष सबके वन्दनीय हैं।
वाचक-- संसार समुद्र में द्वीप के समान शरणागत के प्राधार, स्वयं प्रतियोष पाकर दूसरों को ,
__ प्रतिबोध देने वाले सर्वज्ञ, सर्वदर्शी ये महापुरुष तीर्थ कर ही हैं। वाचिका-तीर्थ कर ? (पाश्चर्य से) कौन होते हैं ये तीर्थकर ? वाचक-अपने पूर्व भव में विशिष्ट साधना से तीर्थकर नाम कर्म की प्रकृति बांधने वॉल, धर्मचक्र .. प्रवर्तन के लिए तीर्थ की स्थापना करने वाले, ये तीर्थकर प्रसाधारण महापुरुष
होते हैं। वाधिका-तीर्थ के संस्थापक तीर्थकर होते हैं, यह तो शाब्दिक अर्थ की ऊपरी बात हुई । सच्चे प्रयो
.. में तीर्थ' किसे कहते हैं ? वाचक-तीर्थ वह साधन है जिसको पाकर भव्य जीव संसार-समुद्र से पार उतरते हैं । साधु,
साध्वी, श्रावक और श्राविका ये चार तीर्थ माने गये हैं। तीर्थकर इस प्रकार के चतुर्विध " संघ की स्थापना कर धर्म प्रवर्तन का कार्य करते हैं। वाचिका–जो लोग विभिन्न तीर्थों की यात्रा करते हैं, उन तीर्थों का इन तीर्थंकरों से कोई सम्बन्ध
भी है ?
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