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वीर इस भू पर पुनः पाना पड़ेगा हास्य कवि- हजारीलाल जैन 'काका' पो० सकरार जिला झांसी
बढ़ रही दिन दिन समस्यायें अनोखी, नाथ इन पर ध्यान फिर लाना पड़ेगा, निबल जीवों की कराहें कह रही हैं, वीर इस भू पर पुनः आना पड़ेगा,
साधना, अब सुप्त होती जा रही है, वासना, सुरसा बनी मुह वा रही है, कर रही साम्राज्य हर मन पर कुटिलता
स्वार्थ की हर द्वार से बू आ रही है, इसलिये इन स्वार्थियों को सबक देने वीर इस भू पर पुनः आना पड़ेगा, निबल जीवों की कराहें कह रही हैं नाथ हम पर ध्यान फिर लाना पड़ेगा,
रो रहा अतर मगर मुंह पर हंसी है, हर अधर को चूमती अब बेबसी है, लालसा ने सत्य का सर छेद डाला
नाव संयम की भंवर में आ फंसी है, इसलिये संसार सागर से तिराने वीर इस भू पर पुनः आना पड़ेगा, नबल जीवों की कराहें कह रही हैं नाथ हम पर ध्यान फिर लाना पड़ेगा,
आज मानव अणु बमों पर जी रहा है, मृत्यु की पोशाक खुद ही सी रहा है, त्याग कर आध्यात्म का अमृत अनोखा
विष भरे विज्ञान का विष पी रहा है, इसलिये 'काका' दिशा का बोध देने वीर इस भू पर पुनः आना पड़ेगा, निबल जीवों की कराहें कह रही हैं नाथ हम पर ध्यान फिर लाना पड़ेगा,
इसलिये 'काका' दिश
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