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ह-मस्तित्व भगवान महावीर का ही सिद्धांत समस्याओं का समाधान भी संयम से प्राप्त हो स सिद्धान्त का ही सुपरिणाम है कि अत्यन्त सकता है। थी विचारधारा वाले भी एक मंच पर बैठकर
भगवान् महावीर के निर्वाण समारोह के समस्याओं का समाधान खोजत है और उपलक्ष में इस वर्ष को संयम वर्ष के रूप में बल कर उस दिशा में प्रयास करते हैं। मनाने का निर्णय लिया गया है। इससे प्रात्मगत महावीर के अपरिग्रह दर्शन का फलित है- और व्यक्तिगत लाभ के साथ राष्ट्रगत लाभ भी नान का समाजवाद । उन्होंने कहा""अर्थ का प्राप्त होगा। संग्रह मत करो। गलत तरीकों से मर्जन मत
आज राष्ट्र जिन संकटपूर्ण स्थितियों से गुजर है। पर्जन के साथ विसर्जन का सूत्र भी उन्होंने
रहा है उनके समरधान के लिए न केवल जैन । क्योंकि पूजी का केन्द्रीकरण सामाजिक
अपितु समस्त देशवासियों के लिए संयम की साधना मता को बढ़ावा देता है। और विषमता ही
अत्यन्त आवश्यक है। . संयम अनेक प्रकार का संघर्ष का उत्स है । तत्कालीन समाज व्यवस्था
हो सकता है। अन्न, पानी, वस्त्र, विद्युत, याप्त विषमता के विरुद्ध महावीर ने समता
यातायात प्रादि विभिन्न प्रकार से उसका प्रयोग सिद्धान्त प्रतिष्ठित किया। उन्होंने कहा ''
हो सकता है। जो जितना संयम करेगी, वह केव मामुषोजातिः"। जातीयता, प्रान्तीयता,
उतना ही अधिक समाधान पीर राहत प्राप्त स्ट्रीयता, साम्प्रदायिकता, तथा भाषा प्रादि के
करेगा। माज के युग में सत्ता और सम्पत्ति का धार पर प्रखण्ड मानव जाति को विपक्त
व्यामोह भी क्रमशः बढ़ता जा रहा है। ये दोनों रना भयंकर भूल और मानवता के लिए पभिशाप
इतने मीठे प्रलोभन हैं कि उनके आकर्षण से बच
पाग और स्वयं को सुरक्षित रख पाना बहुत कठिन भारतीय संविधान में भी जाति, धर्म लिंग, रंग है। जन-सामान्य के लिए अनुकरणीय और दि परिप्रेक्ष्यों में पलने वाले भेदभेदों को कोई प्रशंसनीय वही व्यक्ति हो सकता है जो इनसे दूर जान नहीं है । नागरिकता के मूलभूत अधिकार रहा है। के लिए समान रूप से सुरक्षित हैं। हर व्यक्ति नी प्रतिभा, व्यक्तित्व और कर्तृत्व के बलपर प्राज तक का इतिहास यह बतलाता है कि घट के सर्वोच्च पद पर प्रतिष्ठित हो सकता है भले सता और सम्पत्ति के पीछे दौड़ने वाला अपनी वह किसी जाति या धर्म से सम्बन्धित हो। प्रतिष्ठा और गरिमा को कभी सुरक्षित नहीं रख भादशं केवल संविधान तक ही सीमित नहीं पाया। पपितु भारत ने समय समय पर इसको व्याव- एक संन्यासी था । वह सदा अपनी तप:साधना रिक रूप भी प्रदान किया है। यह उदार में लीन रहता था। उसकी साधना की सुवास टकोण भगवान महावीर के समतावादी सिद्धान्त दर-दर तक फैल गई। उसके अन्तःकरण से बहने क्रिय न्वयन है।
वली मैत्री, प्रम और करुणा की धारामों ने संयम भगवान महावीर द्वारा प्रदत्त मौनिक वायु-मण्डल और निकटवर्ती प्राणी हृदयों को र महत्वपूर्ण सूत्र हैं। जीवन की जटिलतानों इतना प्रभावित किया कि जन्म से शत्रता रखने
कठिनाइयों से राहत पाने का दिशा-दर्शन वाले प्राणी भी अपना पारस्परिक वैरभाव भूलकर से प्राप्त होता है, प्रभाव, मंहगाईप्रादि प्रेम से रहते थे ।
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