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भगवान महावीर की पचीसवीं निर्वाण भी थे, एक प्रसंग में उन्होंने कहा था कि - स्वतन्त्र शताब्दी की चर्चा आज देशव्यापी बन रही है। भारत का लोकतन्त्रात्मक संविधान पूर्णतः भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में अपनी अपनी योग्यता और अनाक्रमण, सहअस्तित्व, समता और संयम पर क्षमता के प्राचार पर भिन्न-भिन्न प्रकार के कार्य प्राधारित है। ये तत्व महावीर के मौलिक और क्रम मायोजित हो रहे हैं।
व्यावहारिक सिद्धान्त हैं अतः हम कह सकते है प्रश्न हो सकता है, भगवान् महावीर की कि भारतीय संविधान महावीर के सिद्धान्तों में निर्वाण शताश्दी क्यों मनाई जाए। हम भी मानव प्रभावित है अथवा महावीर के सिद्धान्तों ने भारतीय हैं। महावीर भी मानव थे। फिर ऐसी कौन सी विशे- लोकतन्त्र को मौलिक और वास्तविक दिशा दर्शन षता है जिसके कारण महावीर की निर्वाण शताब्दी दिया है। मनायी जा रही है ? हम महावीर का निर्वाण भारतीय संविधान ने अनाक्रमण-नीति को महोत्सव इसलिए मनाते हैं कि उन्होंने जो दर्शन स्वीकार किया है। आज से पढ़ाई हजार वर्ष दिया, जो मूल्य स्थापित किए और जो सिद्धान्त पहले भगवान महावीर ने यही कहा था-तुर्म निश्चित किए वे सर्वजनहिताय थे। उनमें युग माकांता मत बनो। किसी पर आक्रमण कर की समस्या का सम्यक् समाधान निहित है। उसकी सार्वभौम स्वतन्त्रता का अपहरण मत करो।
लोकतंत्र की बुनियाद
महावीर का दर्शन
-प्राचार्य श्री तुलसी
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महावीर ने अहिंसा, अपरिग्रह, अनेकान्त, आज इस अनाक्रमण नीति के पक्ष में समूचे विण संयम और समता के जो सूत्र दिये वे अध्यात्म की जनभावना जागृत हो रही है। कोई किर की दृष्टि से तो असाधारण थे ही, राजनैतिक पर आक्रमण करता है तो सब की अंगुली उस दृष्टि से भी उनके महत्व को नकारा नहीं जा पोर उठती है । इससे आक्रमण के लिए एकाए' सकता। वास्तव में वे लोकतंत्र शासन प्रणाली के किसी का साहस नहीं होता। युद्ध की भयाना प्राधारभत सूत्र हैं।
और विनाशकारी समस्या के समाधान में मनाक्रमा भारत के भूतपूर्व राष्ट्रपति डा. सर्वपल्ली नीति सफल और कारगर सिद्ध हुई है। विए राधाकृष्णन् जो न केवल राष्ट्रपति थे अपितु शान्ति की दिशा में इसे महावीर के सिद्धान्तों। भारतीय और पश्चिमी दर्शनों के मर्मज्ञ विद्वान् मूल्यवान योग कहा जा सकता है।
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