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सम्पादक
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कलम
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भगवान महावीर : जीवन और चिन्तन
भारत की इस पुण्यधरा ने सैंकड़ों ही नहीं अनगिनत ऐसे ज्योतिपुञ्जों को जन्म दिया है जो विश्व के ज्योतिर्लोक में आज भी अपने तेजोबल से न केवल स्वयं प्रकाशित होकर चमचमा रहे हैं अपितु विश्व का अन्धकार नष्ट कर जगत के प्राणियों का अपने निर्मल प्रखर प्रकाश से मार्ग-प्रदर्शन कर रहे हैं । ऐसे ही ज्योति-पुञ्जों में से एक भगवान महावीर भी हैं। उनका बताया मार्ग आज भी जगत् के प्राणियों को शाश्वत अखण्ड निराबाध सुख की प्राप्ति कराने में उतना ही सक्षम और समर्थ है जितना आज मे २५०० वर्ष पूर्व वह था और भविष्य में भी उसकी क्षमता में कोई कमी आने वाली नहीं है।
— आज से २५७३ वर्ष पूर्व महावीर ने वैशाली गणराज्य के क्षत्रिय कुण्ड ग्राम में अपने जन्म से इस भू को पवित्र किया था। उनके पिता का नाम सिद्धार्थ और माता का त्रिशला था। चैत्र शुक्ला त्रयोदशी का दिन था। उनका जन्म नाम महावीर था। उनकी आत्मा ने इस भव से पूर्व के कई भवों में घोर साधना की थी जिसका पुण्य कर्म उनके साथ था। वे अतिशय पुण्यशाली थे। इसी जन्म में होने वाले तीर्थंकर थे। वे तीर्थंकर प्रकृति नामक कर्म का बंध साथ लेकर ही जन्मे थे । इससे अधिक पुण्य प्रकृति अन्य कोई होती ही नहीं अतः उसके माता-पिता, कुटुम्बी तथा प्रजाजनों को निरन्तर श्री वृद्धि होना स्वाभाविक था। इस कारण लोग
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