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६. मोक्ष तत्व :
मोक्ष रो प्ररथ है- सगला करमा सूं मुक्ति । राग अर द्वेष शे सम्पूर्ण नास । मोक्ष आतम विकास री चरम र पूर्ण अवस्था है । इस अवस्था में स्त्री-पुरुष, पशु-पक्षी, छोटा-बड़ा आदि रो कांई भेद नी रंगे । श्रातमा रा सगला करम नष्ट हुंवण पर वा लोक रै अग्र भाग में पोंच जावै । व्यावहारिक भाषा में उण ने सिद्धशिला कंवें । यू मोक्ष कोई स्थान नीं है । जिण भांत दीपक री ली रो सुभाव ऊपर जाव है, उणीज भांत करम मुक्त श्रातमा रो सुभाव पण ऊपर उठण (ऊर्ध्वग मी हुवण) रो है । करमां सूं मुक्त हुवण पर मातमा
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श्रापणे सुद्ध सुभाव सू चमकबा लागे । उणी रो नाम मुक्ति, निर्वाण र मोक्ष है ।
मोक्ष प्राप्ति रा चार उपाय है-सम्मक दर्शन, चारित्र र तप री आराधना । ज्ञान तत्व री जाणकारी हुवे । दर्शन सूं तत्व पर स बढ़े। चारित्र सूं करमां ने रोक्या जाने पर सू आत्मा रे बंध्योड़ा करमां रो क्षय हुवे। इस चारुं उपाय सूं जीव मोक्ष प्राप्त कर सकें । य री साधना में जाति, कुल, वंश आदि रो बंध कोनी । जो आतमा श्रापणे प्रातम गुणां ज प्रकट कर लेवें वा मोक्ष री अधिकारी ब जाने ।
तप
भव कोडिय संचियं कम्मं तवसा रिगज्जरिज्जइ ।
- उत्तरा ३०1६
श्ररथः करोडां भवां सूं संचित करियोड़ा करम तपस्या सू जीर्ण र नष्ट हु जावै ।
- अनुवाद : डा० शान्ता भानावत
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