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बांट।
(7) मान (8) माया (9) लोभ (10) राग (11) ६. बंध तत्व : द्वेष (12) कलह (13) अभ्याख्यान (झूठो नाम सुभ-असुभ करम जद प्रातमा र सागै चिपक लगायो, दोस देवणो) (14) पैशुन्य (चुगली) जागे तद वा अवस्था बध कहीजै । श्रे बंध चार (16) परनिन्दा (16) रति-अरति पाप में रुचि भांत रा हवं- (1) प्रकृति बंध, (2) स्थिति बंध, धरम में अरुचि (17) माया-मृषावाद, (कपट सू (3) अनुभाग बन्ध पर (4) प्रदेस बन्ध। . भूठ बोलणो) अर (18) मिथ्या दर्शन ।
प्रकृति बंध करमां रे सभाव न निश्चित करें। - व्यावहारिक दृष्टि सू आ बात कहीजे के
स्थिति बंध करमा रै काल रो निश्चय करै। अनुपाप करण सू नरक रो दुख मिल, लोक में अपयश
भाग फल रो निश्चित कर पर प्रदेस बध ग्रहण मिल पर निन्दा हुवै । पुण्य करण सू देवलोक रो
करियोड़ा करम पुद्गलां ने कमबेसी परिमाण में सुख मिलै, अर लोक में यश, सन्तान वैभव पादि री प्राप्ति हुदै । पण पूर्ण मुक्ति रै मारग पर बढ़रिणवा साधक खातर पाप पर पुण्य दोन्य हेय हैं। ७. संवर तत्व : सुभ-असुभ ने छोड़'र सुद्ध वीतराग भाव में रमण . करम रे प्रावण रो रास्तो रोकणो संवर है । करणोइज अध्यात्म रो लक्ष्य है।
संवर प्रातमा री राग-द्वेष मूलक असुद्ध वृत्तियां ५. प्रास्रव तत्व :
ने रोके । संवर रा पांच भेद इण भांत हैपुण्य-पाप रूप करमा रै भावण रो गस्तो (1) सम्यक्त्व-विपरीत मन्यता की मास्रव कही । प्रास्रव रा पांच भेद इस भाँत
राखणी। है-(1) मिथ्यात्व, (:) अविरति, (3) प्रमाद (2) व्रत-अठारह प्रकार रे पापां सू (4) कषाय अर (5) योग।
वचणो। मिथ्यात्व रो प्ररथ है विपरीत सरधा राखणी, (3) अप्रमाद--धरमप्रति उत्साह राखणो। तत्व ज्ञान नी हुवणो । इण में जीव जड़ पदारथां (4) अकषाय--क्रोध, मान, माया, लोभ मादि में चेतना, अतत्व में तत्व, अधरम में धरम बुद्धि
कषायां रो नास करणो। प्रादि विपरीत भावना री प्ररूपणा करे।
(5) प्रयोग-मन, वचन, काया री क्रियावां अविरति रो प्ररथ हुवै त्याग री भावना रो
रो रुकणो। प्रभाव, त्याग में अरुचि, भोग में सुख अर उत्साह ८. निर्जरा तत्व : री भावना।
प्रातमा में पलां तूं आयोड़ा करमां रो क्षय प्रमाद रो प्ररथ है-आतम कल्याण खातर करणो निर्जरा है। निर्जरा मातम सुद्धि प्राप्त प्राच्छा काम करण री प्रवृत्ति में उत्साह नी हुवणो, करण रै मारग में सीढियां रो काम कर। आ दो पालस्य, मद्य, मांस आदि रो सेवन करणो। भांत री हुवं-(1) सकाम निर्जरा पर (2)
कषाय रो मरथ है-क्रोध, मान, माया, लोभ प्रकाम निर्जरा । सकाम निर्जरा में विवेक सूतप री प्रवृत्ति ।
मादि री साधना करी जाव। सकाम निर्जरा में __ योग रो अरथ है-मन, वचन काया री सुभा- बिना ज्ञान पर संयम सूतप साधना करी जाय। सुभ प्रवति । योग दो मांत रा हुवं । सुभ योग बिना विवेक पर संयम सूकरियोड़ो तप बाल तप पर असुभ योग । सुभ योग सू पुण्य रो बंध हुवं कहीज। इण सकरम निर्जरा तो हुवे, पण भर असुभ योग सू पाप रो।
सांसारिक बंधण सू मुक्ति नी मिले ।
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