________________
वह दीप जो एक बार जला
-धी उदयचन्द्र 'प्रभाकर' शास्त्री प्राध्यापक-सर. हु. दि. जैन संस्कृत महाविद्यालय जंचरीबाग, नसिया, इन्दौर (म.प्र.)
पूर्ण युवावस्था राज्यवृद्धि, सुख समृद्धि मावेग के दिन, अंकुरित बितन की भूमि में बिखर गये सिद्धांत की कसौटी को जब पता चला। सुदीर्घ साधना ने ज्ञान ज्योति प्रज्ज्वलित की तब रंग, द्वेष, मोह, तर्पस्वीं से मीन खड़े पाखिर, प्रात्म-जागृति का उपदेश भी तो मिला। धरती की गोद में उजले सितारों की तरह सत्य, अहिंसा, प्रेम मानवता के प्रश्न चिह्न बन गये प्रात्म-प्रवाह को जब पता चला। कौन खड़ा जीवन तट पर मौन पड़ा होश करो, अपने आदर्शों को सुसंस्कृत स्नेह से क्योंकि अमर पथ अब सुगम बन पड़ा। वो मौन, कौन महावीर था भला स्वं-पर प्रकाशक रत्नत्रयधारी प्रात्म से परमात्म निर्वाण पथ गामी वह दीप जो एक बार जला।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org