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इतिहास-पुरुष नेमि प्रभु की लोकप्रियता
-श्री कुन्दनलाल जैन
बाईसवें तीर्थकर भगवान नेमिनाथ की ऐतिहासिकता में अब किञ्चित भी संदेह नहीं रहा है, वे श्री कृष्ण के पारिवारिक जन थे और अरिष्टनेमि के नाम से प्रसिद्ध थे। महाभारत में ऋषभनाथ और नेमिनाथ के निर्वाण स्थलों का उल्लेख करते हुए लिखा है :
रेक्ताद्री जिनो नेमि युगादिविमलाचले ।
ऋषीणामाश्रमादेव मुक्तिमार्गस्य कारणम् ।। महाभारत स्कन्द पुराण के प्रभासखंड के वस्त्रापथ क्षेत्र माहात्म्य अध्याय 16 में नेमि प्रभु का गिरनार से मुक्ति लाभ का स्पष्ट उल्लेख है-उन्हें 'नेमिनाथ शिव' कहा है :
मनोभीष्टार्थ सिध्यर्थ ततः सिद्धिमवाप्तवान् ।
नेमिनाथ शिवेत्येवं नाम चक्रेथ वामनः ।। 96 ऋग्वेद में परिष्ट नेमि का अाह्वान करते हुए लिखा है :
तवां रथं वयद्याहुवेम स्तो मेरश्विना सविताय नव्यं । अरिष्ट नेमि परिद्यामियानं विद्या मेषं वृजन जीरदानम् ।।
ऋ० प्र०24०4,24 यजुर्वेद अध्याय 26 में अरिष्टनेमि से सम्बन्धित मंत्र देखिए :
“ॐ रक्ष रक्ष अरिष्ट नेमि स्वाहा" यजुर्वेद के अध्याय 9 के मंत्र 25 में नेमि प्रभु का उल्लेख निम्न प्रकार है :
वाजस्यमु प्रसव आभूवेमा, च विश्वा भुवनानि सर्वतः ।
स नेमि राजा परियाति विद्वान्, प्रजां पुष्टिवर्धयमानो अस्मै स्वाहा ।। सामवेद प्रपा 9 अध्याय 3 में अरिष्ट नेमि का उल्लेख निम्न प्रकार है :
स्वस्ति न इन्द्रो वृद्ध श्रवाः स्वस्ति नः पूषा विश्वदेवाः ।
स्वस्ति न स्ताक्ष्यों अरिष्ट नेमिः स्वस्तिनो वृहस्पतिर्दधातु ॥ छान्दोग्य उपनिषद के 311716 सूक्त के अनुसार श्री कृष्ण के गुरु घोर पांगिरस ऋषि धे और 'ज्ञातृ धर्म कथा' में अरिष्ट नेमि को आंगिरस का गुरु माना है। इसी काल में पांगिरस नामक प्रत्येक बुद्ध का उल्लेख इसी भासिय' में मिलता है, अतः मांगिरस और अरिष्ट नेमि समकालीन प्रतीत होते हैं, 'मोर चूकि अब श्री कृष्ण की ऐतिहासिकता में कोई संदेह नहीं रहा तो फिर मेन प्रभु की ऐतिहासिकता स्वयमेव सिद्ध हो जाती है।
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