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अपात्रे रमते नारी, निरोवर्षति माधवः । है और जब वह विरक्त होती है तो काले नाग की नीचमाश्रयते लक्ष्मी, प्रायेश निर्धनः ।। भांति उसका विष जीवन के लिए घातक होता है।
प्रर्थात नारी अपात्र में रमण करती है, मेध एक अन्य प्रसिद्ध कथन लीजिएपर्वत पर बरसता है, लक्ष्मी नीच का माश्रय लेती पटमं पि प्रावयाणं चितेयव्वो नरेण पडियारो। है और विधान प्रायः निर्धन रहता है।
न हि गेहम्मि पलिते अवडं खरिणउं तरइ कोई ।। रज्जावेंति न रज्जति लेंति हिययाहं न उण प्रति अर्थात् विपत्ति के पाने के पहले ही उसका छप्पण्णय बुद्धीमो जुवईमो दो विसरिसामो ॥ उपाय सोचना चाहिए। घर में आग लगने पर
अर्थात् स्त्रियां दूसरे का रंजन करती हैं, लेकिन क्या कोई कुपा खोद सकता है। यह भी ध्यान स्वयं रंजित नहीं होतीं। वे दूसरों का हृदय हरण देने योग्य है कि 'कुनां खोदने' वाली कहावत करती हैं, लेकिन पपना हृदय नहीं देतीं। दूसरों कितनी पुरानी है। मलधारी हेमचन्द्र सूरि की की छप्पन बुद्धियां उनकी दो बुद्धियों के बराबर 'उपदेशमालाप्रकरण' 506 मूल गाथाओं की एक हैं । इस कथन की अनुवृत्ति परवर्ती रचनाओं में भी दूसरी उपयोगी रचना है । है । क्षण में दरिद्रता मिटाने वाले भद्र-अभद्र धंधों
उसका यह कथन कितना विचित्र हैकी एक सची देने वाली गाथा इस प्रकार है:खेत्त उच्छूण सुमहसेवणं, जोरिणपोसणं चेव । जायमानो हरेदुर्भार्याम् वर्धमानो हरेद्धनं । निवईणं च पसामो खणेण निहणंति दारिद्द। "
प्रियमाणो हरेत् प्राणान्, नास्ति पुत्र समो रिपुः ।।
अर्थात् पुत्र पैदा होते ही भार्या का हरण कर मर्थात् ईख की खेती समुद्र यात्रा (विदेश में ।
लेता है, बडा होकर धन का हरण करता है. मरते जाकर धंधा करने) योनि-पोषण (वेश्या वृत्ति) और
समय प्राणों का हरण करता है। इसलिए पुत्र के राज्य कृपा- इस चार उपायों से क्षण भर में
समान और कोई शत्रु नहीं है कहने की भावदरिद्रता नष्ट हो जाती है। उस भादर्शवादी युग
श्यकता नहीं कि यह कथन अटपटा होते हुए भी में भी यथार्थ की इतनी प्रस्पष्ट अभिव्यक्ति
लौकिक अनुभव की दृष्टि से बावन तोले पाव रत्ती भी उल्लेखनीय है। ऐसे पोर भी बहुत से नीति
है। इस प्रकार के सहस्रों नीति परक उपयोगी कथन सहज सुलभ है। स्त्री के स्वभाव का वर्णन
कथन प्राचीन जैन-ग्रंथ-मंजूषामों में सुरक्षित हैं। करते हुए कहा है
इन कथनों का प्रचार और प्रसार धर्म की अपेक्षा महिला हु रत्तमता उच्छखंड व सक्करा चेव।
सामाजिक एवं राष्ट्रीय हित-साधन की दृष्टि से हरइ विरत्ता सा जीवियपि कसिणाहिगरलन्द ।।। कहीं अधिक आवश्यक है। काश, भ्रष्टाचार के
अर्थात् जब महिला मासक्त होती है तो उसमें इस अंधेरे युग में जैनागमों के नैतिक कथनों का गन्ने के पोरे अथवा शक्कर की भांति मिठास होता पुनीत प्रकाश फैल पाता ।
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