________________
भगवान महावीर के प्रति
-मुनि भी 'दिनकर'
तुमने संतोष का सूत्र दिया, वह जीवन की मूल पूजी है और अहिंसा की बात मानों, मातृत्व की सतरंज्जी है। ऐसी अनेक बातें हैं जो अपनी-अपनी जगह काम की पर स्याद्वाद एक ऐसा तत्व है, जो सब वस्तुओं की कुञ्जी है।
तुम्हारे सिद्धान्तों को लोगों ने स्वीकार किया और उनके अक्षर-अक्षर पर पूरा विचार किया। पता नहीं तुम्हारे सिद्धान्त कितने रहस्यमय थे कि उनका भक्त और अभक्त सभी ने सत्कार किया।
तुमने मनुष्य-मनुष्य को प्राध्यामित्कता का पाठ पढ़ाया और मेल जोल के लिए आगे उसका हाथ बढ़ाया । यह सारा तुम्हारी वाणी का ही प्रभाव था कि आदमी ने अहिंसा की प्रतिष्ठा के लिए, अपना शीश चढ़ाया।
तुम्हारी वाणी का ही प्रभाव था कि शेर और बकरी साथ रहे
और उसी का प्रभाव था कि सांप और नकुल भी साथ रहे । इस विषम समय में उतना तो नहीं हो पाता पर कम से कम आदमी-आदमी तो हिल मिल कर साथ रहे ।
लोगों ने हृदय से स्वीकार किया जो बातें तुमने सिखाई थी लोगों ने उन पर अमल किया जो बातें तुमने बताई थी। हमें तो आश्चर्य होता है तुम्हारा चमत्कार देखकर पता नहीं इस प्रकार की लगन, तुमने, लोगों में कैसे लगाई थी।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org