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में पेला जाना व जटायू पक्षी द्वारा जातिस्मरण व प्रतिबोध दिया जाना इस श्रध्याय के मुख्य विषय हैं।
चतुर्थ अधिकार में रामचन्द विलाप, सूर्पणखा माख्यान, खर-दूषरण युद्ध, शम्भु कुमार का मरण, रावण द्वारा सीताहरण, लंका गमन, मन्दोदरी द्वारा रावण की निन्दा, रावण द्वारा विद्या सिद्धि, हनुमान द्वारा लंकादहन आदि का वर्णन है ।
पंचम अधिकार में विभीषण मिलन व युद्ध वन है । षष्ठम अधिकार में पुन युद्ध वर्णन, लक्ष्मण द्वारा रावण की मृत्यु दिखाई गई है । यहां पर भी बताया गया है कि विभीषरण ने रावरण की मृत्यु के दुःख से छुरी से उदर विदीर्ण कर प्रात्मघात कर लिया। इसके बाद सीता मिलन, अयोध्यागमन, सुखभोग, सीता का गर्भवती होना, वन में उसका छोड़ा जाना, वज्रजंग विद्याधर द्वारा बहिन मानकर सीता वा संरक्षण किया जाना, लव-कुश की उत्पत्ति होना, नारद द्वारा लव-कुश को रामचन्द्र की नृशंसता का वर्णन करना, लक्ष्मण आदि से दोनों का सांकेत में युद्ध वन्त में पिता-पुत्र के बीच युद्ध के माध्यम से उनका परस्पर परिचय होना श्रादि सूचित किया गया है । अन्त में "इतिभट्टारक महीचन्द्रानुचर ब्रह्मश्री जयसागर विरचने सिताहरणाख्याने रामलक्ष्मण मुक्ति गमन नाम षष्ठो अधिकार, लिखकर ग्रन्थ को समाप्त कर दिया गया है ।
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ग्रन्थ की इस कथा को देखने से यह स्पष्ट है कि कवि ने विमल सूरि की परम्परा का अनुसरण किया है। काव्य को शायद मनोरंजक बनाने की दृष्टि से इधर-उधर के छोटे प्राख्यानों को भी सम्मिलित कर दिया है । ढाल, दोहा, त्रोटक, चौपाई आदि छन्दों का प्रयोग किया है । हर अधिकार में छन्दों की विविधता है । काव्यात्मक दृष्टि से इसमें लगभग सभी रसों का प्राचुर्य है । ववि की काव्य कुशलता श्रृंगार, वीर, शांत, अद्भुत, करुण आदि रसों के माध्यम से अभिव्यक्त हुई है। बीच-बीच में कवि ने अनेक प्रचलित संस्कृत श्लोकों को भी उद्धृत किया है । भाषा विज्ञान की दृष्टि से इस ग्रन्थ का अधिक महत्व है । फोकर' जैसे शब्दों का प्रयोग आकर्षक है । भाषा में जहां राजस्थानी, मराठी, और गुजराती का प्रभाव है वही बुन्देलखंडी बोली से भी कवि प्रभावित जान पड़ता है । मराठी और गुजराती की विभक्तियों का तो कवि ने अत्यन्त प्रयोग किया है । ऐसा लगता है कि ब्रह्म जयसागर ने यह कृति ऐसे स्थान पर लिखी है जहां पर उन्हें चारों भाषाओं से मिश्रित भाषा का रूप मिला हो । भाषा विज्ञान की दृष्टि से इसका प्रकाशन उपयोगी जान पड़ता है । भाषा विज्ञान के अतिरिक्त मूलकथा के पोषण के लिए प्रयुक्त विभिन्न श्राख्यानों का श्रालेखन भी इसकी एक अन्यतम विशेषता है ।
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