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श्री वीर परिनिर्वाण भूमि की झांकी
(प्राचार्य अनन्त प्रसाद जैन "लोकपाल") (लेखक के निष्कर्ष अन्तिम नहीं हैं । अभी भी विद्वानों में इस संबंध में पर्याप्त मतभेद है ।)
-पोल्याका
भगवान महावीर का निर्वाण जिस भूमि में हुमा उसका संक्षिप्त वर्णन कुछ जैन शास्त्रों में पाया जाता है-जिनके उद्धरण नीचे दिए जाते हैं :
(क) 1.- महापुराण के उत्तर पुराण में वर्णन है:
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इत्येत तीर्थनाथोपि विहृत्य विषयानबहून् ।।508।। क्रमात्पावापुरं प्राप्य मनोहर वनांतरे । बहूनां सरसा मध्ये महामरिणशिलातले ।।509।। स्थित्वा दिनद्वयं वीतविहारो वृद्ध निर्जरः । कृष्णा कार्तिक पक्षस्य चतुर्दश्यां निशात्यये ।।5100 स्वातियोगे तृतीयेद्ध शुक्लध्यानपरायणः । कृतत्रियोगसंरोधं समुच्छिन्नं क्रियं श्रितः ।।।।।। हता धाति चतुष्कः सन्मशरीरो गुणात्मकः ।
गतां मुनि सहस्रण निर्वाणं सर्व वांछितम् ।।51211 गाथा 509 के अनुसार अनेक सरोवरों से घिरे हुए मनोहर नामक उपवन में पावापुर में भगवान का निर्वाण हुआ ।
2-आचार्य पूज्यपाद कृत पंचकल्याणकभक्ति में लिखा है:(क) पद्मबनदीधिकाकुल, विषिष मखंडमंडितेरम्ये
पावानगरोद्याने व्युतसगैरण स्थितो मुनिः। कार्तिक कृष्णस्यान्ते स्वाता वृक्षे निहत्य कर्मरजः । अवशेषं संप्रापदव्य जरामरक्षयं सौख्यम् । परिनिवृत्त जिनेन्द्र ज्ञात्वा विवुधा ह्याथा शुचागम्यं । देवतरु चंदन कालागुरु सुरिभ गो शीर्षः । अग्निन्द्रा जिनदेहं मुकुटानल सुरभिधूप वर माल्यैः । अभ्यर्च्य गणधरानपि गतादिव्यं खं च वनभवने ।
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