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खारवेल युवराज नियुक्त किया गया। वह नौ वर्षों कहे गये इस पशुधर्म की विद्वान द्विजों ने निन्दा तक युवराज रहा। युवराज के रूप में खारवेल के की है । समस्त पृथ्वी का पालन करते हुए राजर्षिउल्लेख से यह स्पष्ट हो जाता है कि इस समय प्रवर वेन ने काम से नष्ट बुद्धि होकर मनुष्यों को कलिंग का राजसिंहासन शासक विहीन था। यह भाई की स्त्री के साथ सम्भोग का नियम प्रचलित विस्मयजनक है कि लेख में खारवेल के पिता अथवा कर वर्णस कर बनाया।" तब (वेन के शासनकाल) पूर्वाधिकारी राजा का नाम नहीं दिया गया। ऐसा से जो मनुष्य मृतपति वाली विधवा स्त्री को सन्तान प्रतीत होता है कि उसका पिता जो एक स्वतन्त्र के लिये (देवर मादि के साथ) मोहवश नियुक्त शासक था, वृद्धावस्था के कारण शासन करने में करता है, उसकी सज्जन लोग निन्दा करते हैं।"? असमर्थ था, इसलिये खारवेल पिता की ओर से उपर्युक्त उदाहरण से ज्ञात होता है कि . सम्पूर्ण शासन कर रहा था अथवा ऐसे समय पर उसे पृथ्वी के शासक राजर्षि वेन के शासनकाल में पशुउत्तराधिकार प्राप्त हुआ जब वह अवयस्क था। धर्म होने से नियोग प्रथा समाप्त कर दी गयी। चौबीस वर्ष की आयु पूर्ण कर लेने पर कलिंग के पद्मपुराण में उल्लेख है कि वेन ने प्रारम्भ में शासक के रूप में उसका राज्याभिषेक हुमा । ऐसा अच्छी प्रकार शासन किया किन्तु कालान्तर में वह प्रतीत होता है कि प्रचलित परम्परा के अनुसार जैन हो गया। इस परिवर्तन के कारण जनेतर उन दिनों राज्याभिषेक के लिए पच्चीस वर्ष की साहित्य में वेन की भर्त्सना की गयी। प्रस्तुत पायु मावश्यक थी। इसीलिये अशोक का राज्या- अभिलेख से इस तथ्य की पुष्टि होती है कि ब्राह्मण भिषेक भी शासन सम्भालने के चार वर्ष बाद परम्परा में वेन का नाम आदर्श राजा के रूप में हुप्रा था।
नहीं लिया गया जबकि जैन परम्परा में उसका
उल्लेख सम्मान सहित हुपा है। अगर अभिलेख के खारवेल का उल्लेख शैशवावस्था से ही
उत्कीर्ण करते समय तक जैनों में राजा वेन की वर्द्धमान' और 'वेन तुल्य विजय वाले' के रूप में
प्रतिष्ठा न होती तो खारवेल के साथ कभी भी किया गया है। यहां पर वर्तमान का तात्पर्य
उसकी तुलना न की गयी होती। यह उल्लेखनीय है चौबीसवें तीर्थंकर महावीर से है जब कि वेन एक
कि ब्राह्मणों की दृष्टि में राजा वेन का मुख्य दोष वैदिक व्यक्तित्व है। जैन शास्त्रों के अनुसार
जाति प्रथा को समाप्त कर देना था। .. महावीर वर्द्धमान कहलाते थे क्योंकि जन्म के बाद थोड़े ही समय में उनके व्यक्तित्व का अतिशय अपने प्रथम शासन वर्ष में खारवेल. ने तूफान विकास हमा था। मनुस्मृति में कहा गया है कि से गिरे हुए (राजधानी के) गोपुर, प्राकार और "राजा वेन के शासनकाल में मनुष्यों के लिये भी निवासों का जीर्णोद्धार कराया । उसने ऋषि खिवीर
5. ऋग्वेद, 10, 123. 6. अयं द्विजहि विद्वद्भिः पशुधर्मो विगहितः ।
मनुष्याणामपि प्रोक्तो वेने राज्यं प्रशासति ।। स महीमखिला भुञ्जनराजर्षिप्रवरः पुराः । वर्णानां संकर चक्रे कामोपहत चेतनः ।। 9-66-67 ततः प्रभृति यो मोहात्प्रमीतपतिकां स्त्रियन् । नियोजयत्यपत्यार्थ तं विगर्हन्ति साधवः ।। 9.68
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