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प्राचीन ऐतिहासिक नगरी जूना ( बाहड़मेर ) तथा जैन तीर्थ नाकोडा
- श्री भूरचन्द जैन, बाड़मेर
बड़मेर - राजस्थान का पश्चिमी सीमावर्ती सनी बाड़मेर जिला ऐतिहासिक एवं पुरातत्व ट से महत्वपूर्ण स्थल रहा है। इस जिले में वि के रूप में अनेकों इतिहास प्रसिद्ध स्थल
अपने पुराने वैभव प्राचीन शिल्पकला को संजोये विद्यमान हैं। इस क्षेत्र का जूना बाहड़मेर जो वर्तमान बाड़मेर मुनावा पर स्थित जसाई रेलवे स्टेशन से करीबन हल दूर पहाड़ियों की गोद में आया हुआ है । डिमेर नगर से 14 मील और शिल्पकला के बेजोड़ इतिहास प्रसिद्ध किराडू से दक्षिण 12 मील की दूरी पर स्थित । पहाड़ियों
में बसा जूना आज सूना है । यहाँ वर्तमान तीन नगरी के अनेकों ईमारतों और भग्ना
रूप में तीन मन्दिरों के प्रारूप दृष्टिगोचर । यह प्राचीन स्थल 10वीं शताब्दी से शताब्दी तक आबाद रहा । विशाल पहाड़ियों में यह नगरी बसी हुई थी जिसके अवशेष जूना की पहाड़ियों पर दस मील के घेरे किले की प्राचीरों एवं ईमारतों से अवगत हैं । ये पुरातत्व की दृष्टि से अत्यन्त ही गं बने हुए हैं जिसका अभी तक किसी का सर्वेक्षण नहीं हुआ है ।
अब विनाश की कगार पर खड़ा है। यहां
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पर भी किराडू की भांति प्राक्रमणकारियों का तांता बना रहा। कर्नल टॉड के अनुसार वि०सं० 1082 ई० सन् 1027 ) में महमूद गजनवी के द्वारा गुजरात जाते समय चौहानों के इस दुर्ग जूना को भी विध्वंस किया गया। वि०सं० 1235 ( ई० सन् 1178 ) में चौहानों से संघर्ष लेते हुए शहाबुद्दीन मौहम्मद गोरी ने मुल्तान से लोद्रवा देवका किराह्न एवं जूना पर भी श्राश्रमण किया । किराडू के विख्यात सोमनाथ मन्दिर को तोड़ा लूटा और उसमें आग लगा दी । जूना के विख्यात जैन मन्दिरों प्रौर दुर्ग को भीषरण रूप से क्षतिग्रस्त किया । महमूद गजनवी एवं मौहम्मद गोरी के आक्रमण के भय से जूना स्थित जैन मन्दिरों की मूर्तियों की रक्षा के लिए उन्हें मन्दिरों एवं अन्य सुरक्षित स्थानों पर स्थित भंवरों में छिपाने की व्यवस्था की जाती रही ।
दस दिसम्बर 1970 को जूना की एक पहाड़ी पर वन विभाग के श्रमिकों द्वारा वृक्ष लगाते समय कुछ जंन प्रतिमाएँ मिली जो प्रति प्राचीन एवं खण्डित अवस्था में थी । यह स्थान जूना के किले को परिधि के अन्दर एवं वर्तमान खण्डित जैन मन्दिरों से करीबन एक फर्लांग दूर पहाड़ी पर स्थित है । इस पहाड़ी के भग्नावशेषों एवं अन्य स्थलों का अवलोकन करने पर ऐसा अनुभव होता
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