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जैन शिल्प और कला
-श्री चन्दनमल 'चांद'
जैन धर्म मोक्ष मार्गी होते हये भी एकांगी नहीं क्षेत्र में मन्दिर बने वहां की शैली को अपनाते रहे । है । साहित्य शिल्प और कला आदि क्षेत्रों कई स्थानों पर तो जैनों ने मन्दिरों के नगर ही में जैनों की बहुमूल्य देन है। जैन स्थापत्य और बना दिये जैसे श्रवण बेलगोला, देवगढ़, आबू, शिल्प में भारत की गांधार, मथुरा और अमरावती पालीताण, सोनगिरि आदि । एक ही पहाड़ी पर तीनों कलाओं के नमूने मिलते हैं। स्तूप, गुफाएं, सैकड़ों भव्य, रमणीय मन्दिर विविध शैलियो में उपासना के भव्य रमणीक मन्दिर प्राकृतिक स्थलों बने हैं। मनोहर पत्थर की नक्कासी द्वारा सुसजित पर सम्पूर्ण भारत में आज भी बिखरे हुये हैं । जैन मन्दिरों के स्तम्भ विश्व में प्रसिद्ध हैं। महीन स्तूप सबसे पुराना स्वरूप है जिसका पता मथुरा खुदाई वाले अनेक खम्भे, किन्तु सबकी खुदाई के कंकाली टीले की खुदाई से मिला । इन स्तूपों अलग, सबकी दृश्यावलियां जुदा जुदा । दक्षिण का निर्माण भगवान महावीर और भगवान बुद्ध कर्नाटक के मुदविदरी मन्दिर को देखकर फर्गुसन के समय से भी पहले हना था । विदेशी विद्वान् ने लिखा है-"ऐसा लगता है मानों पत्थर पर डा० स्मिथ के अनुसार सम्राट अशोक के समय नहीं बल्कि काठ पर काम किया गया है । प्राज में बौद्ध स्तूप इतने बने कि जैन स्तूपों को भी मी राणकपुर के मन्दिरों की कलात्मकता और
झा जाने लगा । गुफाओं और कारीगरी देखकर विश्व के पर्यटक मुग्ध हो उठते दरो में जैन शिल्प, कला और कारीगरी की है। पत्थर पर महीन जालीदार झरोखे, श्यामल भव्यता के दर्शन होते हैं। सिंघलपुर, राजगृही, कुन्तल केशराशि एक-एक लट अलग-अलग । चित्र गिरनार एवं दक्षिण भारत के पहाड़ी रमणीय मानों सजीव हो उठे हैं । इसीलिए अनेक विदेशी स्थलों पर ये गुफाएं हैं । पांचवीं से बारहवीं कला-पारखी इन मन्दिरों की शिल्पकला देखकर शताब्दी के बीच गुफा-मन्दिर भी बने जो उड़ीसा ताजमहल को भी भूल जाते हैं । जैन स्थापत्य की के खण्डगिरि, उदयगिरि, बिहार के राजगृह, सबसे मुख्य देन निराधार स्तम्भों की है । बिना श्रवण बेलगोला के चन्द्रगिरि, महाराष्ट्र के घारा- किसी सहारे के ये खम्भे वासादीप के मन्दिर के शिव, मद्रास की कुलमुल पहाड़ियों में हैं । एलोरा सामने खड़े हैं । इन पर सुन्दर खुदाई की गई है। की गुफाओं में इन्द्रसभा और जगन्नाथ सभा ये दो केवल दक्षिण कन्नड़ में ही ऐसे पुराने बीस स्तम्भ जैन गुफाएं कला की दृष्टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं। उत्तर भारत में मथुरा, चितौड़गढ़ और कान्ह हैं । मन्दिरों की कारीगरी में जैन कला स्वतन्त्र के सुप्रसिद्ध मान-स्तम्भ भी उल्लेखनीय हैं । है । उसमें इण्डो-आर्यन या उत्तर में नागर तथा जैन धर्म जनधर्म हैं, जनता का धर्म है । कला दक्षिण में द्राविड़ियन शैली का समन्वय है। जिस जब धर्म के क्षेत्र में प्रवेश करती है अथवा कला
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