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________________ 2-6 जम्बू स्वामी का जन्म भी यहाँ ही हुवा था जो यहां के नगर सेठ के पुत्र थे और जिन्होंने असंख्य धन सम्पत्ति के लात मार तथा आठ सुन्दर स्त्रियों का मोह त्याग जिन दीक्षा ग्रहण कर ली थी। 20 वें तीर्थंकर मुनिसुव्रत स्वामी का जन्म स्थल भी यह ही है । पुराणों के अनुसार वासुपूज्य के प्रतिरिक्त शेष 23 तीर्थंकरों का समवसरण यहां प्राया था। यहां कई जैन मन्दिर और गुफाएं हैं । विस्तार के लिए 'Cave temples of India | by Furguson & Burgess p. 1880' तथा 'Jain Caves & temples by Dr. Klouse. Fisher (World Jain Mission publication) ure Wonders of the Past (London) pa 1041 देखिए । कुण्डलपुर - भ. महावीर की जन्म भूमि है । यहां भ. महावीर का विशाल मन्दिर धौर प्रतिशयपूर्ण मूर्ति है जिसे तोड़ने भौरंगजेब अपनी सेना लेकर आया था सैनिक जब मूर्ति तोड़ने लगे तो मधुमक्खियों ने उन पर प्राक्रमण कर दिया एक सैनिक ने मूर्ति के पांव के अंगूठे पर फरसा मारा तो वहां से दुग्ध की धारा फूट निकली जिससे चकित और भयभीत होकर सैनिक भाग गए । पावापुरी - भ. महावीर की निर्वाणस्थली यहां एक सरोवर के मध्य संगमरमर का बड़ा श्राकर्षक मन्दिर है जिसमें 600 फीट लम्बे पुल पर होकर जाना पड़ता है। मंदिर और पुल यहां के राजा का बनवाया हुआ है । पाटलिपुत्र (पटना) के निकट गुलजार बाग से शीलव्रतधारियों में प्रसिद्ध सेठ सुदर्शन का निर्वाण हुआ था। पटना जंक्शन से एक मील की दूरी पर लोहानीपुर से एक नग्न मूर्ति का घड़ दिनांक 14-2-1997 को प्राप्त हुआ था जो पटना संग्रहालय में सुरक्षित है । चन्द्रगुप्त मौर्य के राजकाल में यूनानी इतिहासकार मैगस्थनीज उसकी सभा में राजदूत बनकर प्राया था। यहां ही 1600 ई. में गुरु गोविन्दसिंह का जन्म हुआ था । वैशाली - अपनी विशालता के कारण कहलाता था। महावीर काल में यहाँ का राजा हड़ जैन श्रद्धानी चेटक था जिसकी प्रतिज्ञा थी कि वह अपनी पुत्रियों का विवाह केवल जैन से ही करेगा । इसकी पुत्री त्रिशला भ. महावीर की माता श्री । इसी कारण महावीर वैशालिक कहलाते थे। 1 चीनी यात्री फाहियान (पांचवीं शताब्दी) तथा इसके 230 वर्ष बाद याने वाले हुएनसांग दोनों ने वैशाली को एक विशाल नगरी लिखा है । 2 Jain Education International मिथिला - मल्लिनाथ और नमिनाथ तीर्थंकरों की जन्मभूमि है। रामायणकाल में यहां का राजा जनक था जिसके नाम पर यह जनकपुरी भी कह लाती थी। राजा जनक जैन था और निज पर का भेद विज्ञानी प्रसिद्ध होने से लोग उसे विदेह भी कहते थे। अर्थात् शरीर में उसकी घासक्ति नहीं थी । तीर्थंकर अरहनाथ को अवधिज्ञान यहां के समीपस्थ वन में ही हुआ था । मानभूम भ. महावीर के इस नगर का यह नाम पड़ा। एसियाटिक सोसायटी बंगाल के I. Vaisali has a close association with Jainism. In past Mathura has been. called Vaisalika. -- Buddhism & Vaisali p. 8. वर्द्ध मान नाम पर: कर्नल डेलटन ने जनरल 1868 ई. 2. The Chinese pilgrim Fahian came to India in 5th century AD & visited Vaisali in his way from Kapil - Vastu to Patliputra 230 years later Hiven - Tsan visited. Both describe Vaisali to be a big city. - Ibid p. 42. For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014031
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1975
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1975
Total Pages446
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size11 MB
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