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बिहार का इतिहास और जैन पुरातत्व
-श्री दिगम्बरदास जैन, एडवोकेट, सहारनपुर
भारत एक महान और धार्मिक देश है। आदि शीतलनाथ, 20वें मुनिसुव्रतनाथ, 21वें नमिनाथ तीर्थकर भ० ऋषभदेव, भ० राम, श्री कृष्ण, तथा अन्तिम तीर्थंकर भ. महावीर की जन्मभूमि होने महात्मा बुद्ध, हजरत प्रादम, गुरु नानकदेव, का सौभाग्य भी बिहार को ही प्राप्त है । सब ही भ० महावीर जैसी महान प्रात्मानों को जन्म देने का तीर्थंकरों का धर्म प्रचार-स्थल तो यह प्रान्त मुख्य. गौरव भारत को ही प्राप्त है । हजरत ईसा और रूप से रहा ही है । मगध सम्राट् धेरिणक बिम्बमोहम्मद साहब भी भारत आये थे।
सार, अजातशत्रु कुणिक महाराजा चेटक, कलिंग भारत में भी बिहार प्रान्त धार्मिक एवं ऐति
सम्राट खारवेल, नन्द वन्शी महाराजा नन्दिवर्धन, हासिक दृष्टि से अपना विशेष महत्व रखता है।
__ सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य, अशोक, सम्प्रति प्रादि के
समय कई शतान्दियों तक बिहार में जैन धर्म राज भ. महावीर का सर्वप्रथम धर्मोपदेश, म. बुद्ध का
धर्म रहा तथा इन राजाओं ने जैन धर्म का प्रचार अधिकांश बिहार तथा म. ईसा का धर्म प्रचार
किया (देखिये महावीर जयन्ती स्मारिका 1974 अधिकतर बिहार प्रान्त में ही हवा । बनवास काल
खण्ड 2 पृष्ठ 19-32 पर हमारा 'महाराजा में भ. रामचन्द्र इस प्रान्त में पधारे थे जिसका
अशोक और जैन धर्म' शीर्षक निबंध तथा हमारा स्मारक राजगृही में है।
ग्रन्थ 'वधमान महावीर') यही कारण है कि इस प्राचीनकाल में बिहार को मगध देश कहते थे। प्रान्त में अत्यन्त महत्वपूर्ण जैन पुरातत्व स्थल हैं इस युग (पाषाण काल की समाप्ति तथा कृषियुग जिनमें से कुछ का परिचय यहां दिया जा रहा का प्रारम्भ) के प्रारम्भ में भ. ऋषभदेव ने यहां धर्म हैप्रचार किया। म. महावीर का भी इस प्रान्त में इतना अधिक बिहार हुवा कि मगध का नाम ही राजगृही—यह मगध देश की राजधानी थी। बिहार पड़ गया । यह प्रान्त भारत के उन 51 विपुलाचल. रत्नगिरि, उदयगिरि, स्वर्णगिरि तथा देशों में से एक है जिनकी स्थापना युग के प्रारम्भ वैभारगिरि इन पांच पहाड़ों के कारण इसे पंचपहाड़ी में भ. ऋषभदेव ने की थी। 24 में से 22 तीर्थ- भी कहते हैं। यहां ही के विपुलाचल पर भ. महा. करों का निर्वाण इस प्रान्त में हवा । दसवें वीर का सर्वप्रथम धर्मोपदेश हवा था। अन्तिम केवली
1. Jainism has been preached in Magadha (Bihar) by Lord Rshabha at the end of stone age and in the beginning of Agricultural age.
-P: C. Roy Chaudhary : Jainism in Bihar page 7,
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