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में लिखा है कि मानभूमि के निवासी सराक जाति सिंहभूम-भ. महावीर के चिह्न सिंह पर के लोग रात्रि भोजन नहीं करते थे। वे पार्श्वनाथ इस जिले का यह नाम पड़ा है। यहां भी भ. को पूजते थे।1 यहां से जैन तीर्थकरों की अति महावीर का विहार हुआ था। मेजर टिकल के प्राचीन मूर्तियां प्राप्त हुई हैं जो आज कलकत्ते अनुसार प्राचीन काल में यह जैनधर्म का केन्द्र था। म्यूजियम में सुरक्षित हैं - चन्द्रगुप्त मौर्य का यहां से भी जैन तीर्थंकरों की अनेक प्राचीन मूर्तियां बंगाल की खाड़ी से अरब समुद्र तक राज्य था अतः प्राप्त हुई हैं। वहां से तीर्थंकरों की मूर्तियां एवं जैन मन्दिरों के
चौसा--जिला शाहबाद से चन्द्रमा चिह्न युक्त खण्डहर प्राप्त होना स्वाभाविक है । इसही जिले में खुदाई से अनन्तनाथ तीर्थंकर की भी मूर्ति प्राप्त
चन्द्रप्रभ, ऋषभदेव, पार्श्वनाथ, अभिनन्दननाथ, हुई है जो पटना संग्रहालय में सुरक्षित है। एक
सुमतिनाथ, पुष्पदन्त, श्रेयांसनाथ, अनन्तनाथ, मूर्ति शांतिनाथ की भी मिली है जो कलकत्ता
धर्मनाथ की मूर्तियां, धर्मचक्र और कल्पवृक्ष, तीर्थंकरों संग्रहालय में है और जिसका नम्बर एम. एमः
का चरण पट्ट10 तथा तीसरे तीर्थकर संभवनाथ की चौमुखी मूर्ति प्राप्त हुई है ।11 |
लोहानीपुर–से खुदाई में 17 तीर्थंकरों की ... पलामू... जिला मानभूमि से नेमिनाथ की मूर्ति
मूर्तियां मिली हैं जो पटना घंग्रहालय में नं. 6516 प्राप्त हुई है जो पटना संग्रहालय में है जिसका
से 6 ) 32 तक हैं। ये मूर्तियां अभिनन्दन, ऋषभनं. ए. एन. 3 है। यहां ही से बादामी रंग की श्री अभिनन्दन तीर्थंकर की मूर्ति मिली है जिसका
देव, सुमतिनाथ, श्रेयांसनाथ, वासुपूज्य, पद्मप्रभ,
शांतिनाथ, कुन्थुनाथ, अरहनाथ, मल्लिनाथ, पटना संग्रहालय न. ए, एन. 128 है । चौबीस ।
नमिनाथ, नेमिनाथ, अनन्तनाथ, धर्मनाथ, विमलनाथ तीर्थंकरों का एक पट्ट भी यहां से मिला है जो भी
और महावीर की हैं 112 उक्त संग्रहालय में है ......
कांची-- भी जैनधर्म का महत्वपूर्ण स्थान चन्दनक्यारी-जिला मानभूम से भी भ.
रहा है जहां से नौ देवों की कलापूर्ण मूर्तियां प्राप्त ऋषभदेव की एक प्राचीन मूर्ति मिली है जो भी उक्त संग्रहालय में है।' यहाँ ही से प्राप्त एक भ. ऋषभदेव और भगवान महावीर का एक अनुपम चापापुर- भागलपुर के निकट है। 12वें अद्वितीय पट्ट भी इस संग्रहालय में सुरक्षित हैं 18 तीर्थंकर वासुपूज्य के पांचों ही कल्याणक यहां
1. They (Sraks) are represented as having great scruples against taking life. They must not eat till they have seen Sun They venerate Parsvanath.
- Col Dalton : Journal of Asiatic Society Bengal p. 35 1868 A.D. 2. ibid page 56. 3: VOA Feb. 1967 p. 62. 4-5-6-7-8. जैन सिद्धान्त भास्कर, जनवरी, 1943 पेज 95. 9. (क) Journal of Asiatic Society Bengal, 1840 p. 686.
(ख) ब्रह्मचारी शीतलप्रसाद : बंगाल, बिहार और उड़ीसा के प्राचीन जैन स्मारक पृ. 65.. 10. जैनसिद्धान्त भास्कर, जनवरी, 1943 पृ. 15 12. जैन सिद्धान्त भास्कर, जनवरी 1943, पृ. 95. 11. Studies in Jain Art plate No. 6 Fig. 17. 13. V. P. Shah : Studies in Jain
Art: Fig. 77.. . .
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