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________________ से सभी अपने प्रापको उत्कृष्ट एवं दूसरों को नोचा मानते थे । समाज में धर्म एवं दर्शन को लेकर प्राये दिन शास्त्रार्थ होते थे । स्वयं गौतम गणधर बनने से पूर्व वैदिक क्रियाकांडी विद्वान था और अपने ज्ञान को सर्वश्रेष्ठ मानता था । शास्त्रार्थों से - शान्ति के स्थान पर प्रशान्ति ही हाथ लगती थी और परस्पर में घृणा एवं द्वेष का वातावरण बन जाता था। यही नहीं एक दूसरे के अनुयायियों में परस्पर टकराव का भय बना रहता था । वैचारिक सहिष्णुता तो उनमें जरा भी नहीं बची थी । इसलिए महावीर ने जगत को अनकान्त सिद्धान्त के माध्यम से समन्वय दृष्टिकारण को अपनाने पर बल दिया । उन्होंने कहा कि धार्मिक सहिष्णुता देश एवं समाज के विकास में सबसे श्रावश्यक तत्व है । सभी धर्म अच्छे हैं किन्तु उनमें फैला हुआ प्राग्रहवाद सबसे बुरा है । वास्तव में व्यक्ति किसी वस्तु के जिस सत्य को समझता है वह पूर्ण सत्य नहीं है किन्तु वह प्रांशिक सत्य है । वह उसके ज्ञान व मान्यतानों का सत्य है । वस्तु के अन्य पक्ष भी सत्य हैं इसलिये दूसरे के दृष्टिकोण को समझकर आचरण करना समाज के सदस्यों का प्रथम कर्तव्य हैं। महावीर ने देश एवं समाज में शान्ति एवं एकता रखने के लिये सर्व धर्म समभाव पर जोर दिया । व्यक्ति एवं समाज को सभी धर्मों का प्रादर करना सिखलाया तथा एक दूसरे से प्रेम करने पर जोर दिया । महावीर काल में नारी समाज की भी चिन्तनीय स्थिति थी । उसे समाज में उचित स्थान प्राप्त नहीं था तथा उसे हीन एवं उपेक्षा भरी दृष्टि से देखा जाता था । वह शिक्षा से तो वंचित थी ही किन्तु आत्म साधना का भी कोई अधिकार नहीं था । दासी प्रथा का जोर था और राजमहलों एवं धनियों के यहां दासियों की लाइन लगी रहती थी, स्त्रियों का खुले बाजार में क्रय विक्रय होता था । स्वयं चन्दनबाला को भी इस प्रथा का शिकार Jain Education International 4-109 होना पड़ा था और वह राजमहलों से बिकती हुई एक श्रेष्ठि के हाथों में मा गयी थी । दासियां भी कितनी ही प्रकार की होती थी इनमें घाय, क्रीतदासी, कुलदासी, नातिदासी मादि उल्लेखनीय थी ! दासी प्रथा का प्रचलन न केवल सुविधा के लिए था किन्तु दासी रखना वैभव एवं प्रतिष्ठा की निशानी समझा जाता था । दासी प्रथा के साथ समाज में गणिका प्रथा का भी जोर था । बौद्ध भागमों के अनुसार मम्रपाली वंशाली गणराज्य की प्रधान नगर वधु थी । गणिकायें मनुष्य को वासना तृप्ति का शिकार बनती थो तथा समाज में घृणा एव तिर कार का पात्र बनती थी । भगवान महावीर ने नारी को समाज में वही स्थान देने को कहा जो किसी एक पुरुष को प्राप्त है । सर्व प्रथम उन्होंने बेड़ी पहिने हुई दासी चन्दन बाला से आहार ग्रहण कर दासी जाति को ही नहीं किन्तु नारी मात्र को समाज में उचित स्थान दिया । महावीर ने इसी चन्दनबाला को अपनी साध्वी संघ की प्रमुख बना कर दासियों से घृणा करने वाले समाज पर गहरी चोट की तथा समाज में उन्हें उचित स्थान देने पर बल दिया। भगवान महावीर ने राजा श्रेणिक की रानी चेलना को श्राविका संघ की प्रधान बना कर परस्पर के वर्ण भेद को समाप्त किया । उन्होंने अपने संघ में नारी मात्र को उचित स्थान दिया और उन्हें ग्रात्म साधना की पूर्ण स्वतंत्रता दी । जैनागमों में पत्नी को घम्मसहाया अर्थात् धर्म की सहायिका माना गया है । भगवान महावीर के संघ में छत्तीस हजार साध्वियों थी जिनमें सभी वर्ग की महिलायें थी । भगवान महावीर के युग में अध विश्वासों, मूढ़ताओं एवं झूठे चमत्कारों का जोर था । कोई भी व्यक्ति या साधु प्रशिक्षित एवं धर्म निष्ठ व्यक्तियों को धर्मं के नाम पर अथवा चमत्कार के नाम पर ठग लिया करता था । यज्ञों को स्वर्ग प्राप्ति का साधन बतलाया जाता था तथा उससे देवी देवतानों के प्रसन्न होने की बात कही जाती For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014031
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1975
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1975
Total Pages446
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size11 MB
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