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उपरोक्त के अतिरिक्त यह भी प्रावश्यक है कि को प्रभावहीन कर दिया है, अतः यह प्रावश्यक है बेकारी और गरीबी दूर करने को दैनिक भावश्य- कि धार्मिक साधुप्रों मोर नेतामों द्वारा प्राध्याकता की वस्तुओं जैसे वस्त्र, के उत्पादन के लिए त्मिकता और कर्तव्य भावना को प्रवाहित करने के ग्राम स्वावलम्बन पर आधारित अर्थ-व्यवस्था को प्रयत्न के अतिरिक्त शासन द्वारा भी उत्पादन और अपनाया जावे और उन उद्योगो से प्रतिस्पर्धा करने उपभोग को नियंत्रित किया जावे तभी चारित्र वाले और उपरोक्त अनुसार बजित विलासिता संकट और वेकारी तथा गरीबी की समस्या का मादि की वस्तुपों को उत्पन्न करने वाले बड़े-बड़े निराकरण किया जा सकेगा। यहाँ यह भी स्पष्ट कारखानों के उत्पादन को देश में न बिकने दिया। कर देना उचित है कि पारिश्रमिक, लाभ मादि पर जावे, उससे विदेशी ऋण चुकाया जावे।
नियत्रण की कोई प्रावश्यकता नहीं है क्योंकि
उत्पादन तथा अच्छा से अच्छा काम करने में उपरोक्त विवेचन से प्रगट होगा कि पाश्चात्य प्रोत्साहन देने को योग्यता तथा काम के अनुरूप भौतिक वादी प्रवाह ने स्वयं स्फूर्त कर्तव्य भावना वेतन, पारिश्रमिक तथा लाभ देना ही चाहिए।
समिमाए धम्मे पारिएहि पवेइए
. आचारांग सूत्र ११८।३ आर्य महापुरुसां नै धरम कह्यो है।
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अत्थेगइयारणं जीवाणं सुत्ततं साहू, अत्थेगइयारणं जीवाणं जागरियत्तं साहू ।।
-भगवती सूत्र १।२॥२॥ अधार्मिक प्रातमावां रो सूतो रैवणो आच्छो अर धरमनिष्ठ पातमावा रो जागतो रैवणो आच्छो ।
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