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क्योंकि वर्तमान में उसका अधिकांश थोड़े से साधन सम्पन्न लोगों की भोग तृष्णा को. पूरा करने मौर युद्ध सामग्री के निर्माण में दुरुपयोग किया जा रहा है । अनेक व्यक्ति ध्यान व प्रारणायाम को ही माध्यात्मिकता समझे हुए हैं, यह भी ठीक नहीं है । यह प्रवश्य है कि वे मानसिक तथा शारीरिक स्वास्थ्य के साधक होने से प्राध्यात्मिक प्रगति के भी साधक हैं ।
तथा
राजकीय नियंत्रण द्वारा, भोग विलास व शानशौकत के जीवन के लिए धनवानों के धन निरु पयोगीकरण की तथा ग्राम स्वावलंबन पर श्राधारित अथ व्यवस्था की प्रावश्यकता उ५ क्त से प्रगट है कि श्राध्यात्मवाद संसार में सुख शांत के लिए प्रत्यंत आवश्यक है । परन्तु यह पाश्चात्य भोग वादी सभ्यता इतनी व्यापक हो गई है कि जो लोग इसे बुरा समझते हैं वे भी बेबस होकर इसी के प्रवाह में बड़े जा रहे हैं। स्वयं स्फूत सयम, अपरिग्रह व अणुव्रत पालन के उपदेश सदाचार समितियाँ बढ़ती हुई अनतिकता के प्रवाह को बदलने में प्रसफल रहे हैं क्योकि हम रे धर्म गुरुयों के पास भी भौतिकता का ही प्रोसाहन मिल रहा है, घन व सत्ता की ही पूछ है ओर निश्चय धर्म का उपदेश दिया जाता है मोर धर्म नीलाम किया जाता है। भोर जो प्रधिक से अधिक धन देता है उसी का घर्म रक्षक के रूप में सम्मान किया जाता है, चाहे वह धन उसने धनुचित उपायों से कमाया हो । धाये दिन धार्मिक संस्थाओं के समारोह होते हैं, वहां यही प्रयत्न रहता है कि किसी धनिक या सत्ताधारी से उद् घाटन करावें या मुख्य अतिथि बनायें आजकल के बड़े-बड़े उद्योगपति सो पाश्चात्य भौतिकवाद के प्रतिनिधि ही हैं और प्राजकल की परिस्थितियो मे धन को प्रतिष्ठा देना भनैतिकता को प्रोत्साहन देना है। प्रतः इस विकट पाश्चात्य भोगवादी प्रवाह को बदलने को स्वयं स्कूतं सयम मोर नैतिकता को प्रोत्साहित
।
एक
दूसरी
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करने के लिए जहाँ एक चोर यह प्रावश्यक है कि हमारे साधु और नेता धन को पावर व प्रतिष्ठा देना बंद करें वहाँ यह भी अवश्यक है कि राजकीय नियंत्रण द्वारा, भोग विलास व वैभवशाली जीवन के लिए धनवानों के धन को निरुपयोगी कर दिया जावे । जब गरीवी के बीच विलासिता और वैभव के प्रदर्शन का कोई भोवित्य नहीं है तो विलासिता के साधनों के उत्पादन व प्रायात की इजाजत क्यों ? वर्तमान के बंभव व विलासिता के साधनों की उपलब्धि ही चरित्र संकट का एक मुख्य कारण है और टैक्सचोरी, ब्लेक मार्केट श्रादि अनुचित उपायों से धन कमाने की तृष्णा को बढ़ावा दे रही है अतः आवश्यक है कि ग्राम जनता को गरीबी तथा उत्सदन में सक्षम रहने की आवश्यकता का विचार रखते हुए रहन-सहन का अधिकतम स्तर नियत करके उत्पादन को तदनुरूप नियंत्रित किया जः वे उदाहरण के लिए रहने के मकानों का स्वर नियत कर दिया जावे, प्राप व व्यापार के लिए जमीन व मकान रखन पर रोक हो । रेल, सिनमा प्रादि में केवल एक श्रेणी हो । शकाखानों में केवल जनरल व डं हों । घरेलू उपयोग के लिए प्रइवेट कार रखने पर रोक हा । लक्जरी कार रखने की इजाजत न हो। बिलासिता के साधनों से युक्त काई होटल न युक्त काई होटल न हो। लॉटरियों तथा सट्टे आदि से धन कमाये धन को तृष्ण पैदा होती है, उन पर तथा शराब जैसा हानिकर वस्तुओं पर रोक हो विलासिता तथा वैभव को बेश कीमती वस्तुए कि जिन्हें धनो व्यक्ति हो खरीद सकते हैं, साधारण प्राय बात नहीं, उन पर शक हो इससे धनिकों का धन वैभवशाली जीवन बिताने के लिए निरुपयोगी हो जावेगा और अनंत्रिक उपायों से धन कमाने की तृष्ण को रोक लगेगी रूस धोर फोन ने प्ररम्भ में ऐसा ही किया था। लोकतंत्र भी तभी सफल हो सकता है जब उत्पादन और उपभोग को समष्टि के हित के अनुरूप नियंत्रित किया जावे।
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