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ज्ञानमये
प्राचार्य अमृतचन्द्र ने लिखा है :-पात्म ज्ञावं स्वयं ज्ञानं, ज्ञानादन्यत् करोति किम् ?" प्रारम्भ साक्षात् शान है प्री' झाम ही साक्ष त् प्रात्मा है । भात्म-ज्ञान के प्रतिरिक्त कुछ भी नहीं। प्रात्मा अनंतगुणों का पिण्ड है ज्ञान उन प्रनत गुणो में एक प्रधान गुण है और प्रात्मा के सिवाय अन्यन्त्र नहीं पाया जाता, इसलिए मात्मा के ज्ञान गुण में ही मात्मा केअन्य समस्तगणों का समावेश हो जाता है । यथा :शाणं अप्पत्ति मद वटुदि णाणं विणाण अप्पणि । तहना गाणं प्रप्पा अप्पा गाणं व अण्णं वा ।
भारतीय दर्शन में चार्वाक दर्शन को छोड़कर, शेष समस्त दर्शन मात्म-सत्ता स्वकार करते हैं। परन्तु ज्ञान प्रात्मा का गुण है या प्रागन्तुक गुण है ? न्याय और वैशेषिक दर्शन मात्मा का स्वाभाविक गुण न मानकर भागन्तुक गुण मानते है । संसार अवस्था में ज्ञानगुण प्रात्मा में रहता है, परन्तु मुक्त अवस्था में ज्ञान नष्ट हो जाता है। साथ ही उक्त दोनों दर्शनों की मान्यता संसारी पात्मा का ज्ञान प्रनित्य है, पर ईश्वर का ज्ञान नित्य है । इसके विपरीत सांख्य और वेदान्त दर्शन ज्ञान को मात्मा का निज गुण स्वीकार करते हैं। वेदान्त दर्शन ज्ञान को ही भात्मा मानता है। ..
जनदर्शन एक माध्यात्मिक दर्शन है। इस दर्शन में मात्म-ससा के विषय में गंभीर रूप से विचार किया गया है। प्राचार्य कुन्दकुन्द ने समयसार, नियमसार, प्रवधनसार, पञ्चास्तिकाय, और अष्ट-पाहु । मागम युग से लेकर प्राज सक भी 'मात्मा का विषय बना हुआ है। इस विषय को लेकर नक्की कसौटी पर कसा गया, तब कहा गया कि
"श्री उदयचन्द्र प्रमाकर' शास्त्री. जरीवाग, नसिया, इन्दौर, म.प्र.
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