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ने दिया था। उसी भगवान महावीर का निर्माण ने हेय मानकर त्याग दिया था यदि उसी के बस पर ब हम 1974की 13 नवम्बर से मना रहे हैं। यंत्र तंत्र कुछ करके कुछ रचकर अथवा खड़ाकर इस बह वर्ष समाप्त हो रहा है। अब हम अपने अन्दर सन्तोष कर लेते हैं तो वह मन को बहलाने वाला मात्र झांक कर इस बात का जायजा तो लें कि इस ही होगा। उससे न हमारा खुद का कल्याण होगा दौरान हमने कहां तक इन उपदेशों को अपने मोर न अन्य किसी का। यदि हमने अपने दैनिक जीवन में उतारा है और कहां तक सत्य, अहिंसा, जीवन में उसे थोड़ा सा भी उतारा है तो यह महस्तित्व और सहिष्णुता समभाव की गंगा निर्वास शती निश्चय ही. सार्थक कही जायगी। बदा पाये हैं। जिस सांसारिक सम्पदा को महावीर
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कर्तव्य-वीर
-श्री वीरबहमद "गापूस" जो अपने कर्तव्य-धैर्य में निष्ठा रखता सच पूछो तो शूरवीर-बलवान वही है ! सक्षम होकर भी जो अपने कर्तव्यो से उदासीन है वह काहे का वीर-बली है ? | . उसकी प्रात्म शक्ति क्षीरण है !
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