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(ग) एक मान्यता है कि स्वामी शंकराचार्यजी मृत्यु नहीं होगी, इसीलिए धनतेरस से भैया
का नश्वर शरीर सत्यं ब्रह्म जगन्मिथ्या रूप दूज तक यह त्यौहार मनाया जाता है । अद्वैत का प्रचार करके दिवाली के दिन इस संबंध में जैनधर्मावलम्बियों की मान्यता परमतत्व में विलीन हो गया था । ब्रह्म की यह है कि भगवान राम, विष्णु और यमराज ज्योति के प्रतीक के रूप में दीपों की पंक्ति संबंधी कारणों को छोड़कर शेष कारण एक प्रज्वलित की जाती है।
माकस्मिक संयोग हैं, क्योंकि कार्तिक कृष्ण (घ) सम्राट अशोक ने दिग्विजय प्राप्त की थी
प्रमावस्या को दीप प्रज्वलित करने की प्रथा पौर दिग्विजय की प्रसन्नता में कार्तिक
पुरानी है जबकि स्वामी दयानन्द आदि की कृष्णा अमावस्था को नगर में दीपों की घटनाएं बहुत बाद की हैं और उस दिन पंक्ति प्रज्वलित कराई थी, तभी से इसका
घटित हो जाना एक संयोग की बात है। प्रचलन है।
भविष्य में भी ऐसा संभव है कि दिवाली के
दिन ही किसी महापुरुष का जन्म या स्वर्ग(ङ) भगवान राम ने दशहरे के दिन रावण का
वास हो जाय । वध किया था और उसके 20 दिन पश्चात्
भगवान राम के संबंध में उक्त घटना का अपने वनवास की अवधि पूरी कर कार्तिक
उल्लेख आदिकाव्य वाल्मीकि रामायण में नहीं की अमावस्या को अयोध्या पहुंचे थे । नगर
मिलता है। बल्कि आश्विन शुक्ल 10 दशहरे के के लोगों ने भगवान राम के प्रागमन में दीप
दिन को रावण वध के रूप में विशेष उल्लास के प्रज्वलित कर आरती उतार कर उनका
साथ मनाते हैं और राम का गुणगान करते हैं । स्वागत किया था। तभी से दीपावली मनाई
विष्णु ने राजा बलि से वामन (छोटे शरीर का) जाती है।
रूप धारण करके भूमि दान में मांगी थी यह घटना (च) स्वामी रामतीर्थ लाहौर के क्रिश्चियन
दिवाली की नहीं बल्कि रक्षा बन्धन (श्रावण शुक्ला कालेज में गणित के प्रोफेसर थे। श्री
पूर्णमासी) की है। राजा बलि की दानवीरता उतनी विवेकानन्द के भाषण से प्रभावित होकर
महत्वपूर्ण नहीं थी जितनी महत्वपूर्ण बात विष्णु - तपस्या करने हिमालय चले गए थे । वे
द्वारा शरीर को छोटा और फिर विशाल बनाकर अपने पापको राम के नाम से सम्बोधित
बलि के अत्याचार से त्राण करता था। करते थे। उन्होंने 1906 की दिवाली को
यमराज के संबंध में पांच दिन के उत्सव की रामगंगा में समाधि ली थी।
बात है जबकि दिवाली मुख्य रूप से कार्तिक की (छ) एक मान्यता है कि भगवान विष्णु ने राजा
अमावस्या को एक दिन मनाई जाती है। बलि की दानवीरता से प्रसन्न होकर धनतेरस जैन धर्मावलम्वियों का मानना यह है कि से लेकर तीन दिन तक उत्सव मनाने की कार्तिक कृष्णा त्रयोदशी की रास से भगवान महावीर प्रेरणा करके दीपमालिका त्योहार प्रारम्भ ने पावानगरी में 24 घण्टे का योग निरोध किया किया था ।
था और कार्तिक कृष्णा चतुर्दशी की रात को (ज) कुछ का कथन है कि यमराज ने वरदान स्वाति नक्षत्र के समय ई० पूर्व 26 को निर्वाण
मांगा था कि कार्तिक बदी 13 (धनतेरस) प्राप्त किया था। श्वेताम्वर साहित्य के अनुसार से कार्तिक शुक्ल दोज (भैया दूज) तक 5 कार्तिक कृष्णा अमावस्या की रात्रि को निर्धारण दिन जो लोग उत्सव मनावेंगे उनकी अकाल हुन्ना था। इस प्रकार 24 घण्टे का अन्तर है।
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