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दिवाली और उसका रूप
दिवाली दीपावलि का अपभ्रंश रूप है। संस्कृत के दीपावलि से दिवाली शब्द जन बोली के रूप में प्राया, बाद में इस शब्द ने माना रूप साहित्य में भी स्थिर कर लिया।
दीपावली का अर्थ है दीपों की पंक्ति । संस्कृत में पावलि तथा प्रावली ह स्व इकारान्त तथा दीर्घ इकारान्त दोनों प्रकार के शब्द पाए जाते हैं । जब इन् प्रत्यय होता है तब ह.स्व दीपावलि और जब विकल्प से होष् प्रत्यय होता है तब दीर्घ दीपावली शब्द व्याकरण के अनुसार निष्पन्न होता है। दीपावली शब्द के अर्थ से स्पष्ट है कि इस त्योहार में दीपों की पंक्ति प्रज्वलित कर ज्योति चमका कर प्रकाश किया जाता है।
किसी भी त्योहार का एक कारण होता है और उसके आधार पर उसकी परम्परा प्रचलित होती है। दीपावली के प्रचलन के सम्बन्ध में विभिन्न धारणाएं निम्न प्रकार हैं(क) स्वामी दयानन्द को 30 अक्टूबर 1883 को
दिवाली के दिन दूध में कांच दिया गया था और ठीक दिवाली के दिन संध्या 6 बजे दैदीप्यमान शरीर छोड़कर उनकी प्रात्मा स्वर्ग सिधार गई थी-आर्य समाज में ज्ञान का प्रकाश करने वाला चेतन दीप बुझ गया था। उसी की स्मृति को सजग करने के लिए दीपों की पंक्ति प्रज्वलित करते हैं
जिससे प्रात्मा में ज्ञान की प्रेरणा प्राप्त हो । (ख) सिक्ख भाइयों के छठे गुरु श्री हरिगोविन्द
का स्वर्गारोहण भी दिवाली के दिन हुआ था। उनकी पावन स्मृति का प्रतीक यह दिन है।
डा.कन्छेदीलाल शास्त्री . . राजकीय संस्कृत महाविद्यालय, शहडोल म०प्र०
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