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महावीर के निर्वाण के समय अनेक देशों के कई लोग अपने यहां श्री गणेशाय नमः लिखते राजा उपस्थित थे। लोगों ने यह कहकर दीपक हैं। उनका आशय महावीर के प्रधान गणधर गण जलाए थे कि अब सचेतन धर्मचक्र प्रवर्तक ज्ञान + ईश (इन्द्रभूति गौतम) को नमस्कार करने से है । सूर्य अस्त हो गया है, भौतिक प्रकाश करना चाहिए। लक्ष्म्यै नमः का प्राशय महावीर को प्राप्त मुक्ति उसी दिन भगवान महावीर की वणी झेलने वाले लक्ष्मी को नमन करने से है । सिन्दूर से बनाए जाने प्रधान गणधर इन गौतम को केवलज्ञान बाल 12 काठा का प्राशय समवशरण म
बाले 12 कोठों का प्राशय समवशरण में बैठने के दिव्य-ज्ञान प्राप्त हुप्रा था। दीपकों की पंक्ति उनके लिए बने हुए 12 कोठों के प्रतीक से है । दिव्य ज्ञान की प्रतीक भी है।
व्यापारी की बहियों के बदले जाने से अनुमान ___भारतीय संस्कृति समन्वय वादी रही है, इस- किया जाता है कि इसी दिन वीर निर्वाण सम्वत् लिए भारतीय त्योहारों को सभी सम्प्रदाय एवं बदलता है। वर्ग के लोग मनाते हैं। महावीर स्वयं क्षत्रिय दीवाली तक लोग अपने अपने घर द्वारों की कुलोत्पन्न थे। इनके गणधर ब्राह्मण थे। श्रावक, सफाई कर लेते हैं, यह बहुत अच्छी बात है परन्तु श्राविकाएं अधिकांश वैश्य थे। महावीर की माता लोगों ने सारा ध्यान, रुपये, पैसे, तराजू, बांट त्रिशला के 7 बहनें और 11 भाई थे। 7 बहिनों में लीटर और मीटर की पूजा पर केन्द्रित कर दिया 5 राजघरानों में विवाहित थीं, दो अविवाहित रहीं, है। अच्छे उद्देश्य से प्रारम्भ किए गए इस उत्सव महावीर के मामा लोगों के विवाह संबंध भी राज- में अनेक बुराइयों ने अपना स्थान बना लिया है। घरानों में हुए थे, इन संबंधों के कारण महावीर के जुआ, सट्टा, मदिरापान इन बुराइयों को लोग द्वारा प्रसारित धर्म को ज्याश्रय प्राप्त हुआ और दिवाली के दिन अवश्यकरणीय और अच्छा समझते राजाओं के अनुकरण पर जनता में भी उनका धर्म हैं : पटाखों के प्रयोग से देश की बहुत सम्पत्ति तो प्रचार हुअा था । महावीर के संघ में अर्जुन माली, आग में जलती ही है परन्तु इससे कहीं कहीं, कभी सकडाल कुम्हार आदि के सम्मिलित होने के उल्लेख कभी भयंकर नुकसान भी हो जाते हैं। भी मिलते हैं। इस तरह चारों वर्गों के लोगों ने
काश यह त्योहार प्रात्मज्योति जगाने का उक्त उत्सव मनाया था।
प्रतीक बन जाय । प्रात्म गुणों के हानि लाभ का कुछ लोगों का कथन है कि रक्षाबन्धन ब्राह्मणों लेखा-जोखा दुकान के हिसाब की तरह कर लेवें का, दशहरा क्षत्रियों का, दीपावली वैश्यों का और दूसरों के प्रति पत्रों द्वारा शब्दों द्वारा व्यक्त पौर होली शूद्र वर्ण का त्यौहार है। परन्तु ऐसी की जाने वाली शुभकामनाएं केवल दिखावा न बात नहीं है । धार्मिक सहिष्णुता और समभाव के रहकर, वास्तव में आत्महित के साथ सबका हित कारण सभी लोग सभी त्यौहारों को उल्लास से चाहने लगें तो दिवाली सर्वोदय का त्योहार बन मनाते हैं।
सकती है।
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