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जय महावीर की गूंज उठी
-रचयिता : श्री गुलाबचन्द जैन पंचामा
के हुए जगत से क्यों उदास जिनके घर में वैभव विलास, रहते प्रतिदिन कर जोड़ खड़े मननिनित दासियां तथा दास,
(2) नृप तथा महानृप नतशिर हो प्राज्ञा पालन में हैं तत्पर, प्रामोद प्रमोदों. में वसन्त.. मधुमास बना छाया घर पर,
(3)
बह प्राने श्रम की कीमत भी अपने श्रम से कब सका प्रांक, सुख सुविधाओं की सीमा से क्या सभी दिवस कर रहा माप,
(4)
कमनीय कलित कामनियों की जब एक बड़ी लम्बी कतार, मातुर थी अपित करने को, अपना तन मनयोवन निसार
(5) सुख भोग विल सों के जितने ..... साधन जग में निर्माण हुए, ... .... सर्वत्र सुलभता से उनको *पुण्योदय से प्राप्त हुए, ...
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